Saturday 21 July 2012

होंठो पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते

होंठो पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते
साहिल पे समंदर के खजाने नहीं आते

पलकें भी चमक उठती है सोते में हमारी
आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते

दिल उजड़ी हुयी एक सराय की तरह है
अब लोग यहाँ रात बिताने नहीं आते

क्या सोच कर आये हो मुहब्बत की गली में
जब नाज़ हसीनो के उठाने नहीं आते

अहबाब भी गैरो की अदा सीख गए है
आते है मगर दिल को दुखाने नहीं आते
~ बशीर बद्र
मायने : फसाना=कथा, साहिल=किनारा, नाज़=नखरे, अहबाब=मित्रगण

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