Thursday 28 January 2016

Habib Jalib Poetry

Habib Jalib
(23 March1928-13 March 1993)
Apano ne wo dard diye, begaane yaad aate hai
Dekh ke is basti ki haalat veerane yaad aate hai

iss nagari me qadam qadam pe sar ko jhukaanaa paR.ta hai 
iss nagari me qadam qadam par butkhaane yaad aate hai

Aankhen purnam ho jaati hai gurbat ke sehraon me 
jab uss rimjhim ki waadi ke afsaane yaad aate hai

Aise aise dard mile hai naye dayaaro me hamko
bichhade huye kuchh log, puraane yaarane yaad aate hai

Jinake karan aaj hamaare haal pe duniyaa hansti hai
kitane zaalim chehre jaane pahchaane yaad aate hai

Yun na looti thi galion galion daulat apane ashqo ki 
rote hai tau hamko apane gamkhaane yaad aate hai

Koi tau parcham le kar nikale apane girebaan ka "Jalib"
chaaro jaanib sannataa hai, deewaane yaad aate hai
-Habib Jalib
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अपनों ने वो रंग दिए है, बेगाने याद आते है 
देख के इस बस्ती की हालत वीराने याद आते है

इस नगरी में क़दम क़दम पे सर को झुकाना पड़ता है 
इस नगरी में क़दम क़दम पर बुतखाने याद आते है

आँखें पुरनम हो जाती है ग़ुरबत के सहराओं में 
जब उस रिमझिम की वादी के अफ़साने याद आते है

ऐसे ऐसे दर्द मिले है नए दयारों में हमको 
बिछड़े हुए कुछ लोग, पुराने याराने याद आते है

जिनके कारण आज हमारे हाल पे दुनिया हंसती है 
कितने ज़ालिम चेहरे जाने पहचाने याद आते है

यूँ न लूटी थी गलियों गलियों दौलत अपने अश्क़ों की 
रोते है तो हमको अपने ग़मख़ाने याद आते है

कोई तो परचम ले कर निकले अपने गरेबान का "जालिब"
चारो जानिब सन्नाटा है, दीवाने याद आते है 
-हबीब जालिब

Tuesday 9 April 2013

वो बहकती रातें

आज किसी ने
तुम्हारा ज़िक्र छेड़ा
और याद आ गई
मोहब्बत की बातें

वो नज़र के सलाम,
वो निगाहों से बातें,
वो महकते दिन,
वो बहकती रातें

दिल को रहता था
हरपल, मेरे हमदम
तुम्हारा ही इंतज़ार, इंतज़ार
बस इंतज़ार

हर आहट पर
लगता था
ये तुम हो,
तुम ही हो,
तुम ही तो, नहीं हो।

ख़त में भी लिखा करते थे
हम तुम्हें
ऐसी कितनी ही बातें

तुम कभी
मिलो तो सही, जानम,
हम कह देंगे तुमसे
कि किस तरह
तुम्हारें बिन
हमने काटे है दिन
गुजारी है रातें
-आराधना सिंह

Sunday 7 April 2013

देखा जब भी

देखा जब भी
गुजरे हुए सालो की तरफ
याद आया
मोहब्बतों का वो ज़माना

जब
दिल की तेज़ होती
धडकनों को छिपाते थे
सुबहो-शाम तुम्हारा ही
इंतज़ार करते
फिर भी ये बातें
तुन्हीं से छिपाते थे

और तुम भी तो
एक मेरी खातिर
सारे ज़माने से
कितना झूठ
बोल जाते थे

फुरसत में सोचो तो
लगता है
ये लम्हां
अभी अभी तो
गुज़रा है

मोहब्बतों में
यही दिलचस्प है, कि
किरदार तो मरते रहते है
लेकिन
इसकी दास्ताँ हमेशा
दोहराई जाती है
और यादें,
वो तो
सदाबहार जवां,
अमर बनी रहती है
-आराधना सिंह

क्या ज़माने थे

वो भी
क्या ज़माने थे
जब हम तुम्हें
ख़त लिखा करते थे

एक-एक
लफ्ज़ लिखने
से पहले
सौ-सौ बार
सोचा करते थे

ख़त में तुम्हें
दिल का
हर वाकया,
पैगामे-मुहब्बत
लिखा करते थे

होते थे तुम
हमारे खुदा
और हम तुमसे
ख़त के बहाने
फ़रियाद
किया करते थे

मुद्दतों बाद
मिलने पर
तुमने कहा,
तो तुम्हें
याद है
कि कभी तुम, हमें
ख़त लिखा करते थे

कहाँ गए वो ज़माने
जब तुम
हमारे हुआ करते थे
-आराधना सिंह

मेरे कदम

मेरे कदम
आज भी भटकते हुए
तुम्हारें दर की तरफ
क्यूँ जाते है ?

जैसे कि तुम
बुलाते हो मुझे,
मेरे कानों में सदा,
ये ही सदा
क्यूँ गूंजती है ?

दिल
सँभलने को तो
जैसे भी हो
संभल ही जाता है

लेकिन फिर
मुझे हरपल
तुम्हारा इंतज़ार
क्यूँ रहता है ?

मुझे हरदम
तुम्हारी इतनी याद
क्यूँ आती है ?
-आराधना सिंह

कुछ दिन पहले

कुछ दिन पहले
देखा था,
मैंने तुम्हें,
तुम्हारी पूरी
शानो-शौकत के साथ

सच में सनम,
दिल को करार,
नज़रों को सुकून
मिला

उन लम्हें को
नज़रों में
हमेशा के लिए
कैद करते हुए
दिल ने कहा,
रुक भी जाओ,
कहीं नहीं जाओ ..
मेरी ज़िन्दगी है, यहाँ
यही है, मेरी ज़िन्दगी !
-आराधना सिंह

Friday 5 April 2013

मोहब्बतों का वो ज़माना

देखा जब भी
गुजरे हुए सालो की तरफ
याद आया
मोहब्बतों का वो ज़माना

जब
दिल की तेज़ होती
धडकनों को छिपाते थे
सुबहो-शाम तुम्हारा ही
इंतज़ार करते
फिर भी ये बातें
तुन्हीं से छिपाते थे

और तुम भी तो
एक मेरी खातिर
सारे ज़माने से
कितना झूठ
बोल जाते थे

फुरसत में सोचो तो
लगता है
ये लम्हां
अभी अभी तो
गुज़रा है

मोहब्बतों में
यही दिलचस्प है, कि
किरदार तो मरते रहते है
लेकिन
इसकी दास्ताँ हमेशा
दोहराई जाती है
और यादें,
वो तो
सदाबहार जवां,
अमर बनी रहती है
-आराधना सिंह