Meena Kumari
1 August 1932 - 31 March 1972
परिचय: मशहूर हिंदी फिल्म अदाकारा ट्रेजडी क्वीन मीना कुमारी जिनके बचपन का नाम महजबीं था का जन्म १९३३ में बम्बई में अत्यधिक निर्धन परिवार में हुआ था. मीना ने सात वर्ष की उम्र से ही बाल कलाकार के रूप में फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था. बाल कलाकार के तौर पर फिल्म 'फरजंद-ए-वतन' उनकी पहली फिल्म थी. बतौर कलाकार १९५२ में प्रदर्षित बैजू बावरा उनकी प्रथम सुपर हिट फिल्म थी. उन्हें मैं चुप रहूंगी फिल्म के लिए फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला था.वे अपने पिता के परिवार के लिए कमाऊ पूत थी. अपने पति के साथ मिल कर शुरू की गयी पाकीजा फिल्म १४ बरस में पूरी हो पाई, जिसे उनकी मौत ने सुपर हिट बना दिया. मीना कुमारी एक बेहतरीन व सवेदनशील अदाकारा तो थी ही वे एक बढिया ग़ज़लकारा भी थी. उनका ४० बरस का जीवन हकीकत में भी ट्रेजडी भरा ही रहा. अपने केरियर के शिखर पर उन्होंने अपने से १५ बरस बड़े, पहले से ही शादीशुदा व बाल बच्चेदार फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही से विवाह किया व लिखा की ' दिल सा जब साथी पाया, बैचेनी भी वो साथ ले आया', लेकिन विवाह के ६ बरस बाद ही तलाक हो गया तब मीना ने लिखा की 'तलाक तो दे रहे हो, नज़र कहर के साथ; जवानी भी मेरी लौटा दो मेहर के साथ'. मीना कुमारी अपने पूरे जीवन में सच्चे प्यार के लिए तरसती ही रही. उनके धर्मेन्द्र व गीतकार गुलज़ार के साथ भी प्रेम प्रसंग मिडिया की सुर्ख़ियों में रहे, लेकिन इन सभी रिश्तों ने उन्हें राहत-सुकून देने के बजे बेहिसाब दर्द ही दिए. इस अकेलेपन व रुसवाई से पीछा छुड़ाने के लिए उन्होंने शराबखोरी का सहारा लिया. वे अपने बाथरूम में भी डेटोल की शीशी में शराब भर कर रखती थी, ऐसा उनके मिलनेवाले कहते है. आखिरकार ३० मार्च १९७२ को लीवर सोरोसिस के कारण उन्हें इस दुनिया से विदा होना पडा और इसी के साथ उनके बेहिसाब दर्द का भी अंत हो ही गया. उनके इस दर्द व तड़प को उनकी शायरी में देखा व महसूस किया जा सकता है.
1.
आबलापा कोई इस दश्त में आया होगा
आबलापा कोई इस दश्त में आया होगा
आबलापा कोई इस दश्त में आया होगा
वरना आंधी में दिया किस ने जलाया होगा
ज़र्रे ज़र्रे पे जड़े होंगे कुंवारे सजदे
एक एक बुत को खुदा उस ने बनाया होगा
प्यास जलते हुए काँटों की बुझाई होगी
रिसते पानी को हथेली पे सजाया होगा
मिल गया होगा अगर कोई सुनहरी पत्थर
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा
खून के छींटे कहीं पोछ न लें राहों से
किस ने वीराने को गुलज़ार बनाया होगा
मायने: आबलापा=जिसके पैरो में छाले हो, दश्त=जंगल
ablapa koi is dasht main aya hoga
warna andhi main diya kis ne jalaya hoga
zarre zarre pe jare honge kunware sajde
ek ek but ko Khuda us ne banaya hoga
pyas jalte huye kanton ki bujhai hogi
riste pani ko hatheli pe sajaya hoga
mil gaya hoga agar koi sunahari patthar
apna tuta hua dil yad to aya hoga
khun k chinte kahin poch na len rehron se
kis ne wirane ko gulzar banaya hoga
वरना आंधी में दिया किस ने जलाया होगा
ज़र्रे ज़र्रे पे जड़े होंगे कुंवारे सजदे
एक एक बुत को खुदा उस ने बनाया होगा
प्यास जलते हुए काँटों की बुझाई होगी
रिसते पानी को हथेली पे सजाया होगा
मिल गया होगा अगर कोई सुनहरी पत्थर
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा
खून के छींटे कहीं पोछ न लें राहों से
किस ने वीराने को गुलज़ार बनाया होगा
मायने: आबलापा=जिसके पैरो में छाले हो, दश्त=जंगल
ablapa koi is dasht main aya hoga
warna andhi main diya kis ne jalaya hoga
zarre zarre pe jare honge kunware sajde
ek ek but ko Khuda us ne banaya hoga
pyas jalte huye kanton ki bujhai hogi
riste pani ko hatheli pe sajaya hoga
mil gaya hoga agar koi sunahari patthar
apna tuta hua dil yad to aya hoga
khun k chinte kahin poch na len rehron se
kis ne wirane ko gulzar banaya hoga
2.
ये रात ये तन्हाई
ये रात ये तन्हाई
ये दिल के धड़कने की आवाज़
ये सन्नाटा
ये डूबते तारों की
खामोश ग़ज़ल-कहानी
ये वक़्त की पलकों पर
सोती हुई वीरानी
जज़्बात-ए-मुहब्बत की
ये आखिरी अंगडाई
बजती हुई हर जानिब
ये मौत की शहनाई
सब तुम को बुलाते हैं
पल भर को तुम आ जाओ
बंद होती मेरी आँखों में
मुहब्बत का
इक ख़्वाब सजा जाओ
ye rat ye tanhai
ye dil k dharakne ki awaz
ye sannata
ye dubte taron ki
khamosh gazalkhwani
ye waqt ki palkon par
soti hui wirani
jazbat-e-muhabbat ki
ye akhri angrai
bajti hui har janib
ye maut ki shahnai
sab tum ko bulate hain
pal bhar ko tum a jao
band hoti meri ankhon main
muhabbat ka
ik Khwab saja jao
ये रात ये तन्हाई
ये दिल के धड़कने की आवाज़
ये सन्नाटा
ये डूबते तारों की
खामोश ग़ज़ल-कहानी
ये वक़्त की पलकों पर
सोती हुई वीरानी
जज़्बात-ए-मुहब्बत की
ये आखिरी अंगडाई
बजती हुई हर जानिब
ये मौत की शहनाई
सब तुम को बुलाते हैं
पल भर को तुम आ जाओ
बंद होती मेरी आँखों में
मुहब्बत का
इक ख़्वाब सजा जाओ
ye rat ye tanhai
ye dil k dharakne ki awaz
ye sannata
ye dubte taron ki
khamosh gazalkhwani
ye waqt ki palkon par
soti hui wirani
jazbat-e-muhabbat ki
ye akhri angrai
bajti hui har janib
ye maut ki shahnai
sab tum ko bulate hain
pal bhar ko tum a jao
band hoti meri ankhon main
muhabbat ka
ik Khwab saja jao
3.
आगाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता
आगाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता
जब ज़ुल्फ़ की कालिख में घुल जाए कोई राही
बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं होता
हँस हँस के जवान दिल के हम क्यों न चुनें टुकडे
हर शख्स की किस्मत में इनाम नहीं होता
बहते हुए आंसू ने आँखों से कहा थम कर
जो मै से पिघल जाए वो जाम नहीं होता
दिन डूबे हैं या डूबी बरात लिए कश्ती
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता
agaz to hota hai anjam nahin hota
jab meri kahani main wo nam nahin hota
jab zulf ki kalikh main ghul jaye koi rahi
badnam sahi lekin gumnam nahin hota
hans hans k jawan dil k ham kyon na chunen tukre
har shakhs ki qismat main inam nahin hota
bahte hue ansu ne ankhon se kaha tham kar
jo mai se pighal jaye wo jam nahin hota
din dube hain ya dubi barat liye kashti
sahil pe magar koi kohram nahin hota
आगाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता
जब ज़ुल्फ़ की कालिख में घुल जाए कोई राही
बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं होता
हँस हँस के जवान दिल के हम क्यों न चुनें टुकडे
हर शख्स की किस्मत में इनाम नहीं होता
बहते हुए आंसू ने आँखों से कहा थम कर
जो मै से पिघल जाए वो जाम नहीं होता
दिन डूबे हैं या डूबी बरात लिए कश्ती
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता
agaz to hota hai anjam nahin hota
jab meri kahani main wo nam nahin hota
jab zulf ki kalikh main ghul jaye koi rahi
badnam sahi lekin gumnam nahin hota
hans hans k jawan dil k ham kyon na chunen tukre
har shakhs ki qismat main inam nahin hota
bahte hue ansu ne ankhon se kaha tham kar
jo mai se pighal jaye wo jam nahin hota
din dube hain ya dubi barat liye kashti
sahil pe magar koi kohram nahin hota
4.
चाँद तन्हा है आसमान तन्हा
चाँद तन्हा है आसमान तन्हा
दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हा
बुझ गई आस छुप गया तारा
थर-थराता रहा धुंआ तन्हा
ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है और जान तन्हा
हमसफ़र कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे तन्हा तन्हा
जलती बुझती सी रौशनी के परे
सिमटा सिमटा सा एक मकान तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेंगे ये जहां तन्हा
chand tanha hai asman tanha
dil mila hai kahan kahan tanha
bujh gai as chup gaya tara
thartharata raha dhuan tanha
zindagi kya isi ko kahte hain
jism tanha hai aur jan tanha
hamsafar koi gar mile bhi kahin
donon chalte rahe tanha tanha
jalti bujhti si raushani k pare
simta simta sa ek makan tanha
rah dekha karega sadiyon tak
chor jayenge ye jahan tanha
5.
यूं तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
यूं तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
काँधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे
बैठे रहे हैं रास्ता में दिल का खंडहर सजा कर
शायद इसी तरफ से एक दिन बहार गुज़रे
बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतरे कोई तो पार गुज़रे
तू ने भी हम को देखा, हमने भी तुझको देखा
तू दिल ही हार गुज़रा, हम जान हार गुज़रे
yuun teri rahguzar se diwana waar guzre
kandhe pe apne rakh k apna mazaar guzre
baithe rahe hain rasta main dil ka khandar saja kar
shayad isi taraf se ek din bahar guzre
bahti hui ye nadiya ghulte hue kinare
koi to paar utre koi to paar guzre
tuu ne bhi ham ko dekha hamne bhi tujhko dekha
tuu dil hi har guzra ham jaan har guzre
6.
पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
रात खैरात की सदके की सहर होती है
सांस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब
दिल ही दुखता है न अब आस्तीन तर होती है
जैसे जागी हुई आँखों में चुभें कांच के ख़्वाब
रात इस तरह दीवानों की बसर होती है
गम ही दुश्मन है मेरा, गम ही को दिल ढूँढ़ता है
एक लम्हे की जुदाई भी अगर होती है
एक मरकज़ की तलाश एक भटकती खुश्बू
कभी मंजिल कभी तम्हीद-ए-सफ़र होती है
मायने:
मरकज़=फोकस करना; तम्हीद=आरम्भ
poochhte ho to suno kaise basar hoti hai
rat khairat k sadqe ki sahar hoti hai
sans bharne ko to jina nahin kahte ya rab
dil hi dukhta hai na ab asteen tar hoti hai
jaise jagi hui ankhon main chubhen kanch ke khwab
rat is tarah diwanon ki basar hoti hai
gam hi dushman hai mera gam hi ko dil dhundta hai
ek lamhe ki judai bhi agar hoti hai
ek markaz ki talash ek bhatakti khushbu
kabhi manzil kabhi tamhid-e-safar hoti hai
7.
मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
मुझे मंदिरों ने दी निदा
मुझे मस्जिदों ने दी सज़ा
मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
मेरी साँस भी रुकती नहीं
मेरे पाँव भी थमते नहीं
मेरी आह भी गिरती नहीं
मेरे हाथ जो बढ़ते नहीं
कि मैं रास्ते पे चल पड़ी
यह जो ज़ख़्म कि भरते नहीं
यही ग़म हैं जो मरते नहीं
इनसे मिली मुझको क़ज़ा
मुझे साहिलों ने दी सज़ा
कि मैं रास्ते पे चल पड़ी
सभी की आँखें सुर्ख़ हैं
सभी के चेहरे ज़र्द हैं
क्यों नक्शे पा आएं नज़र
यह तो रास्ते की ग़र्द हैं
मेरा दर्द कुछ ऐसे बहा
मेरा दम ही कुछ ऐसे रुका
मैं कि रास्ते पे चल पड़ी
8.
मेरे महबूब
मेरे महबूब
जब दोपहर को
समुन्दर की लहरें
मेरे दिल की धड़कनों से हमआहंग होकर उठती हैं तो
आफ़ताब की हयात आफ़री शुआओं से मुझे
तेरी जुदाई को बर्दाश्त करनें की क़ुव्वत मिलती है
मायने: क़ुव्वत = ताक़त, बल, क़ुवत
9.
मेरा माज़ी
मेरा माज़ी
मेरी तन्हाई का ये अंधा शिगाफ़
ये के सांसों की तरह मेरे साथ चलता रहा
जो मेरी नब्ज़ की मानिन्द मेरे साथ जिया
जिसको आते हुए जाते हुए बेशुमार लम्हे
अपनी संगलाख़ उंगलियों से गहरा करते रहे, करते गये
किसी की ओक पा लेने को लहू बहता रहा
किसी को हम-नफ़स कहने की जुस्तुजू में रहा
कोई तो हो जो बेसाख़्ता इसको पहचाने
तड़प के पलटे, अचानक इसे पुकार उठे
मेरे हम-शाख़
मेरे हम-शाख़ मेरी उदासियों के हिस्सेदार
मेरे अधूरेपन के दोस्त
तमाम ज़ख्म जो तेरे हैं
मेरे दर्द तमाम
तेरी कराह का रिश्ता है मेरी आहों से
तू एक मस्जिद-ए-वीरां है, मैं तेरी अज़ान
अज़ान जो अपनी ही वीरानगी से टकरा कर
थकी छुपी हुई बेवा ज़मीं के दामन पर
पढ़े नमाज़ ख़ुदा जाने किसको सिजदा करे
10.
मुहब्बत
मुहब्बत
बहार की फूलों की तरह मुझे अपने जिस्म के रोएं रोएं से
फूटती मालूम हो रही है
मुझे अपने आप पर एक
ऐसे बजरे का गुमान हो रहा है जिसके रेशमी बादबान
तने हुए हों और जिसे
पुरअसरार हवाओं के झोंके आहिस्ता आहिस्ता दूर दूर
पुर सुकून झीलों
रौशन पहाड़ों और
फूलों से ढके हुए गुमनाम ज़ंजीरों की तरफ लिये जा रहे हों
वह और मैं
जब ख़ामोश हो जाते हैं तो हमें
अपने अनकहे, अनसुने अल्फ़ाज़ में
जुगनुओं की मानिंद रह रहकर चमकते दिखाई देते हैं
हमारी गुफ़्तगू की ज़बान
वही है जो
दरख़्तों, फूलों, सितारों और आबशारों की है
यह घने जंगल
और तारीक रात की गुफ़्तगू है जो दिन निकलने पर
अपने पीछे
रौशनी और शबनम के आँसु छोड़ जाती है, महबूब
आह
मुहब्बत !
11.
यह न सोचो
यह न सोचो कल क्या हो
कौन कहे इस पल क्या हो
रोओ मत, न रोने दो
ऐसी भी जल-थल क्या हो
बहती नदी की बांधे बांध
चुल्लू में हलचल क्या हो
हर छन हो जब आस बना
हर छन फिर निर्बल क्या हो
रात ही गर चुपचाप मिले
सुबह फिर चंचल क्या हो
आज ही आज की कहें-सुने
क्यों सोचें कल, कल क्या हो.
12.
रात सुनसान है
रात सुनसान है
तारीक है दिल का आंगन
आसमां पर कोइ तारा न जमीं पर जुगनू
टिमटिमाते हैं मेरी तरसी हुइ आँखों में
कुछ दिये
तुम जिन्हे देखोगे तो कहोगे : आंसू
दफ़अतन जाग उठी दिल में वही प्यास, जिसे
प्यार की प्यास कहूं मैं तो जल उठती है ज़बां
सर्द एहसास की भट्टी में सुलगता है बदन
प्यास - यह प्यास इसी तरह मिटेगी शायद
आए ऐसे में कोई ज़हर ही दे दे मुझको
13.
सुबह से शाम तलक
सुबह से शाम तलक
दुसरों के लिए कुछ करना है
जिसमें ख़ुद अपना कुछ नक़्श नहीं
रंग उस पैकरे-तस्वीर ही में भरना है
ज़िन्दगी क्या है, कभी सोचने लगता है यह ज़हन
और फिर रूह पे छा जाते हैं
दर्द के साये, उदासी सा धुंआ, दुख की घटा
दिल में रह रहके ख़्याल आता है
ज़िन्दगी यह है तो फिर मौत किसे कहते हैं?
प्यार इक ख़्वाब था, इस ख़्वाब की ता'बीर न पूछ
क्या मिली जुर्म-ए-वफ़ा की ता'बीर न पूछ
13.
सियाह नक़ाब में
सियाह नक़ाब में उसका संदली चेहरा
जैसे रात की तारीकी में
किसी ख़ानक़ाह का
खुला और रौशन ताक़
जहां मोमबत्तियाँ जल रही हो
ख़ामोश
बेज़बान मोमबत्तियाँ
या
वह सुनहरी जिल्दवाली किताब जो
ग़मगीन मुहब्बत के मुक़द्दस अशआर से मुंतख़िब हो
एक पाकीज़ा मंज़र
सियाह नक़ाब में उसका संदली चेहरा
14.
हर मसर्रत
हर मसर्रत
एक बरबादशुदा ग़म है
हर ग़म
एक बरबादशुदा मसर्रत
और हर तारीक़ी
एक तबाहशुदा रौशनी है
और हर रौशनी
एक तबाहशुदा तारीक़ी
इसी तरह
हर हाल
एक फ़ना शुदा माज़ी
और हर माज़ी
एक फ़ना शुदा हाल
15.
मुहब्बत
मुहब्बत
क़ौस ए कुज़ह की तरह
क़ायनात के एक किनारे से
दूसरे किनारे तक तनी हुई है
और इसके दोनों सिरे
दर्द के अथह समुन्दर में डुबे हुए हैं
16.
हाँ, कोई और होगा
हाँ, कोई और होगा तूने जो देखा होगा
हम नहीं आग से बच-बचके गुज़रने वाले
न इन्तज़ार, न आहट, न तमन्ना, न उम्मीद
ज़िन्दगी है कि यूँ बेहिस हुई जाती है
इतना कह कर बीत गई हर ठंडी भीगी रात
सुखके लम्हे, दुख के साथी, तेरे ख़ाली हात
हाँ, बात कुछ और थी, कुछ और ही बात हो गई
और आँख ही आँख में तमाम रात हो गई
कई उलझे हुए ख़यालात का मजमा है यह मेरा वुजूद
कभी वफ़ा से शिकायत कभी वफ़ा मौजूद
जिन्दगी आँख से टपका हुआ बेरंग कतरा
तेरे दामन की पनाह पाता तो आँसू होता
17.
दिन गुज़रता नहीं
दिन गुज़रता नहीं आता रात
काटे से भी नहीं कटती
रात और दिन के इस तसलसुल में
उम्र बांटे से भी नही बंटती
अकेलेपन के अन्धेरें में दूर दूर तलक
यह एक ख़ौफ़ जी पे धुँआ बनके छाया है
फिसल के आँख से यह छन पिघल न जाए कहीं
पलक पलक ने जिसे राह से उठाया है
शाम का उदास सन्नाटा
धुंधलका, देख, बड़ जाता है
नहीं मालूम यह धुंआ क्यों है
दिल तो ख़ुश है कि जलता जाता है
तेरी आवाज़ में तारे से क्यों चमकने लगे
किसकी आँखों की तरन्नुम को चुरा लाई है
किसकी आग़ोश की ठंडक पे है डाका डाला
किसकी बांहों से तू शबनम उठा लाई है
18.
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली
रिमझिम-रिमझिम बूँदों में, ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली
जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज़ सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली
मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली
होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में, सादा-सी जो बात मिली
प्रस्तुत सभी शायरी गुलज़ार द्वारा सम्पादित पुस्तक 'मीना कुमारी की शायरी' से साभार ली गयी है.
चाँद तन्हा है आसमान तन्हा
दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हा
बुझ गई आस छुप गया तारा
थर-थराता रहा धुंआ तन्हा
ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है और जान तन्हा
हमसफ़र कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे तन्हा तन्हा
जलती बुझती सी रौशनी के परे
सिमटा सिमटा सा एक मकान तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेंगे ये जहां तन्हा
chand tanha hai asman tanha
dil mila hai kahan kahan tanha
bujh gai as chup gaya tara
thartharata raha dhuan tanha
zindagi kya isi ko kahte hain
jism tanha hai aur jan tanha
hamsafar koi gar mile bhi kahin
donon chalte rahe tanha tanha
jalti bujhti si raushani k pare
simta simta sa ek makan tanha
rah dekha karega sadiyon tak
chor jayenge ye jahan tanha
5.
यूं तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
यूं तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
काँधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे
बैठे रहे हैं रास्ता में दिल का खंडहर सजा कर
शायद इसी तरफ से एक दिन बहार गुज़रे
बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतरे कोई तो पार गुज़रे
तू ने भी हम को देखा, हमने भी तुझको देखा
तू दिल ही हार गुज़रा, हम जान हार गुज़रे
yuun teri rahguzar se diwana waar guzre
kandhe pe apne rakh k apna mazaar guzre
baithe rahe hain rasta main dil ka khandar saja kar
shayad isi taraf se ek din bahar guzre
bahti hui ye nadiya ghulte hue kinare
koi to paar utre koi to paar guzre
tuu ne bhi ham ko dekha hamne bhi tujhko dekha
tuu dil hi har guzra ham jaan har guzre
6.
पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
रात खैरात की सदके की सहर होती है
सांस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब
दिल ही दुखता है न अब आस्तीन तर होती है
जैसे जागी हुई आँखों में चुभें कांच के ख़्वाब
रात इस तरह दीवानों की बसर होती है
गम ही दुश्मन है मेरा, गम ही को दिल ढूँढ़ता है
एक लम्हे की जुदाई भी अगर होती है
एक मरकज़ की तलाश एक भटकती खुश्बू
कभी मंजिल कभी तम्हीद-ए-सफ़र होती है
मायने:
मरकज़=फोकस करना; तम्हीद=आरम्भ
poochhte ho to suno kaise basar hoti hai
rat khairat k sadqe ki sahar hoti hai
sans bharne ko to jina nahin kahte ya rab
dil hi dukhta hai na ab asteen tar hoti hai
jaise jagi hui ankhon main chubhen kanch ke khwab
rat is tarah diwanon ki basar hoti hai
gam hi dushman hai mera gam hi ko dil dhundta hai
ek lamhe ki judai bhi agar hoti hai
ek markaz ki talash ek bhatakti khushbu
kabhi manzil kabhi tamhid-e-safar hoti hai
7.
मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
मुझे मंदिरों ने दी निदा
मुझे मस्जिदों ने दी सज़ा
मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
मेरी साँस भी रुकती नहीं
मेरे पाँव भी थमते नहीं
मेरी आह भी गिरती नहीं
मेरे हाथ जो बढ़ते नहीं
कि मैं रास्ते पे चल पड़ी
यह जो ज़ख़्म कि भरते नहीं
यही ग़म हैं जो मरते नहीं
इनसे मिली मुझको क़ज़ा
मुझे साहिलों ने दी सज़ा
कि मैं रास्ते पे चल पड़ी
सभी की आँखें सुर्ख़ हैं
सभी के चेहरे ज़र्द हैं
क्यों नक्शे पा आएं नज़र
यह तो रास्ते की ग़र्द हैं
मेरा दर्द कुछ ऐसे बहा
मेरा दम ही कुछ ऐसे रुका
मैं कि रास्ते पे चल पड़ी
8.
मेरे महबूब
मेरे महबूब
जब दोपहर को
समुन्दर की लहरें
मेरे दिल की धड़कनों से हमआहंग होकर उठती हैं तो
आफ़ताब की हयात आफ़री शुआओं से मुझे
तेरी जुदाई को बर्दाश्त करनें की क़ुव्वत मिलती है
मायने: क़ुव्वत = ताक़त, बल, क़ुवत
9.
मेरा माज़ी
मेरा माज़ी
मेरी तन्हाई का ये अंधा शिगाफ़
ये के सांसों की तरह मेरे साथ चलता रहा
जो मेरी नब्ज़ की मानिन्द मेरे साथ जिया
जिसको आते हुए जाते हुए बेशुमार लम्हे
अपनी संगलाख़ उंगलियों से गहरा करते रहे, करते गये
किसी की ओक पा लेने को लहू बहता रहा
किसी को हम-नफ़स कहने की जुस्तुजू में रहा
कोई तो हो जो बेसाख़्ता इसको पहचाने
तड़प के पलटे, अचानक इसे पुकार उठे
मेरे हम-शाख़
मेरे हम-शाख़ मेरी उदासियों के हिस्सेदार
मेरे अधूरेपन के दोस्त
तमाम ज़ख्म जो तेरे हैं
मेरे दर्द तमाम
तेरी कराह का रिश्ता है मेरी आहों से
तू एक मस्जिद-ए-वीरां है, मैं तेरी अज़ान
अज़ान जो अपनी ही वीरानगी से टकरा कर
थकी छुपी हुई बेवा ज़मीं के दामन पर
पढ़े नमाज़ ख़ुदा जाने किसको सिजदा करे
10.
मुहब्बत
मुहब्बत
बहार की फूलों की तरह मुझे अपने जिस्म के रोएं रोएं से
फूटती मालूम हो रही है
मुझे अपने आप पर एक
ऐसे बजरे का गुमान हो रहा है जिसके रेशमी बादबान
तने हुए हों और जिसे
पुरअसरार हवाओं के झोंके आहिस्ता आहिस्ता दूर दूर
पुर सुकून झीलों
रौशन पहाड़ों और
फूलों से ढके हुए गुमनाम ज़ंजीरों की तरफ लिये जा रहे हों
वह और मैं
जब ख़ामोश हो जाते हैं तो हमें
अपने अनकहे, अनसुने अल्फ़ाज़ में
जुगनुओं की मानिंद रह रहकर चमकते दिखाई देते हैं
हमारी गुफ़्तगू की ज़बान
वही है जो
दरख़्तों, फूलों, सितारों और आबशारों की है
यह घने जंगल
और तारीक रात की गुफ़्तगू है जो दिन निकलने पर
अपने पीछे
रौशनी और शबनम के आँसु छोड़ जाती है, महबूब
आह
मुहब्बत !
11.
यह न सोचो
यह न सोचो कल क्या हो
कौन कहे इस पल क्या हो
रोओ मत, न रोने दो
ऐसी भी जल-थल क्या हो
बहती नदी की बांधे बांध
चुल्लू में हलचल क्या हो
हर छन हो जब आस बना
हर छन फिर निर्बल क्या हो
रात ही गर चुपचाप मिले
सुबह फिर चंचल क्या हो
आज ही आज की कहें-सुने
क्यों सोचें कल, कल क्या हो.
12.
रात सुनसान है
रात सुनसान है
तारीक है दिल का आंगन
आसमां पर कोइ तारा न जमीं पर जुगनू
टिमटिमाते हैं मेरी तरसी हुइ आँखों में
कुछ दिये
तुम जिन्हे देखोगे तो कहोगे : आंसू
दफ़अतन जाग उठी दिल में वही प्यास, जिसे
प्यार की प्यास कहूं मैं तो जल उठती है ज़बां
सर्द एहसास की भट्टी में सुलगता है बदन
प्यास - यह प्यास इसी तरह मिटेगी शायद
आए ऐसे में कोई ज़हर ही दे दे मुझको
13.
सुबह से शाम तलक
सुबह से शाम तलक
दुसरों के लिए कुछ करना है
जिसमें ख़ुद अपना कुछ नक़्श नहीं
रंग उस पैकरे-तस्वीर ही में भरना है
ज़िन्दगी क्या है, कभी सोचने लगता है यह ज़हन
और फिर रूह पे छा जाते हैं
दर्द के साये, उदासी सा धुंआ, दुख की घटा
दिल में रह रहके ख़्याल आता है
ज़िन्दगी यह है तो फिर मौत किसे कहते हैं?
प्यार इक ख़्वाब था, इस ख़्वाब की ता'बीर न पूछ
क्या मिली जुर्म-ए-वफ़ा की ता'बीर न पूछ
13.
सियाह नक़ाब में
सियाह नक़ाब में उसका संदली चेहरा
जैसे रात की तारीकी में
किसी ख़ानक़ाह का
खुला और रौशन ताक़
जहां मोमबत्तियाँ जल रही हो
ख़ामोश
बेज़बान मोमबत्तियाँ
या
वह सुनहरी जिल्दवाली किताब जो
ग़मगीन मुहब्बत के मुक़द्दस अशआर से मुंतख़िब हो
एक पाकीज़ा मंज़र
सियाह नक़ाब में उसका संदली चेहरा
14.
हर मसर्रत
हर मसर्रत
एक बरबादशुदा ग़म है
हर ग़म
एक बरबादशुदा मसर्रत
और हर तारीक़ी
एक तबाहशुदा रौशनी है
और हर रौशनी
एक तबाहशुदा तारीक़ी
इसी तरह
हर हाल
एक फ़ना शुदा माज़ी
और हर माज़ी
एक फ़ना शुदा हाल
15.
मुहब्बत
मुहब्बत
क़ौस ए कुज़ह की तरह
क़ायनात के एक किनारे से
दूसरे किनारे तक तनी हुई है
और इसके दोनों सिरे
दर्द के अथह समुन्दर में डुबे हुए हैं
16.
हाँ, कोई और होगा
हाँ, कोई और होगा तूने जो देखा होगा
हम नहीं आग से बच-बचके गुज़रने वाले
न इन्तज़ार, न आहट, न तमन्ना, न उम्मीद
ज़िन्दगी है कि यूँ बेहिस हुई जाती है
इतना कह कर बीत गई हर ठंडी भीगी रात
सुखके लम्हे, दुख के साथी, तेरे ख़ाली हात
हाँ, बात कुछ और थी, कुछ और ही बात हो गई
और आँख ही आँख में तमाम रात हो गई
कई उलझे हुए ख़यालात का मजमा है यह मेरा वुजूद
कभी वफ़ा से शिकायत कभी वफ़ा मौजूद
जिन्दगी आँख से टपका हुआ बेरंग कतरा
तेरे दामन की पनाह पाता तो आँसू होता
17.
दिन गुज़रता नहीं
दिन गुज़रता नहीं आता रात
काटे से भी नहीं कटती
रात और दिन के इस तसलसुल में
उम्र बांटे से भी नही बंटती
अकेलेपन के अन्धेरें में दूर दूर तलक
यह एक ख़ौफ़ जी पे धुँआ बनके छाया है
फिसल के आँख से यह छन पिघल न जाए कहीं
पलक पलक ने जिसे राह से उठाया है
शाम का उदास सन्नाटा
धुंधलका, देख, बड़ जाता है
नहीं मालूम यह धुंआ क्यों है
दिल तो ख़ुश है कि जलता जाता है
तेरी आवाज़ में तारे से क्यों चमकने लगे
किसकी आँखों की तरन्नुम को चुरा लाई है
किसकी आग़ोश की ठंडक पे है डाका डाला
किसकी बांहों से तू शबनम उठा लाई है
18.
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली
रिमझिम-रिमझिम बूँदों में, ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली
जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज़ सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली
मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली
होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में, सादा-सी जो बात मिली
प्रस्तुत सभी शायरी गुलज़ार द्वारा सम्पादित पुस्तक 'मीना कुमारी की शायरी' से साभार ली गयी है.
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http://wanderingunlost.com/
it gives goosebumps to read all this and know that she was such a gem!! i wish we had gems like her even today too!!love her for what she was!!
ReplyDeletewell said..I felt the same but the most her deep sorrow about the life..
Deletehow True she was..
I love you sugandha
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IT ..
Beautifully written,, just loved them.
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ReplyDeleteShe is one of the most versatile poetess I have ever seen. Truly passionate and philosophical.
ReplyDeleteAn austrous and naive belle in Hindi cinematography. There is non like her shall recarnate on this land as an soft polite and philosophical actress.
For more couplets and quatern of meena kumari Whatsapp me .9135353700
ReplyDeleteShe was a priceless gift to this world. She had a great thought with purity and reality.
ReplyDeleteThanks.... This collection is priceless. Learnt a completely new facet of this great actress.
ReplyDeleteThanks.... This collection is priceless. Learnt a completely new facet of this great actress.
ReplyDeleteमीना जी की शायरी ने दिल को झकझोर के रख दिया ।
ReplyDeleteकाश उस वक़्त के जो लोग किसी भी रूप में उनके साथ जुड़े थे , वो लोग अपनी अपनी इंसानियत दिखाते उनके दर्द को महसूस करके उन्हें उस दर्द से बाहर निकलने की कोशिश करते ।
कोई तो आगे बढ़कर उन्हें ज़िन्दगी भर की खुशियां देने का वादा करता और उस महान शायरा ,महान अदाकारा, और उस दर्द में डूबी हुई शख्सियत को जीने की वजह देता।
मगर अफ़सोस कि उन लोगों ने सिर्फ उन्हें दर्द ही दिए , उन्हें चोटें ही दीं।
लगता है कि बस अपना भविष्य उज्ज्वल बनाने के लिए सभी ने उन्हें सिर्फ इस्तेमाल ही किया ।
बहूत अफ़सोस की बात है कि हमने एक अनमोल हीरा इतनी जल्दी और इतनी आसानी से खो दिया ।
मीना कुमारी जैसे कलाकार बार बार जन्म नही लेते ।
भगवान उनकी आत्मा को वो शांति और सुख प्रदान करे जिसके लिए वो सारी जिंदगी तरसती रहीं ।
मेरी और से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि ।
(सुनील सनम)
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ReplyDeleteमीना कुमारी जी की शायरी यहां पोस्ट करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteKhoobsurat shairi
ReplyDeleteReally heart touching collection. She was a great poetry. Awesome..........
ReplyDeleteek sher mujhe unka likha hua properly yaad ni aa raha kuch Yoon tha
ReplyDeletekya padhoge tum meri taqdaar ka fasana
berang zindagi ke kisse haine feeqe feeqe.
please somebody correct if remember it
Meena Ji's shayari is really heart touching nd it makes us to stop nd think about it .....
tm kia kroge sun ke mujhse meri kahani...
Deleteberang zindagi ke kisse hain feeqe feeqe
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ReplyDeleteMeena Kumariji, you were so beautiful I don't even have words to express,very talented- singer,actor & a shaayer too.Your shaayaries are so beautiful.You been an ideal woman.Your films are so good,full of emotions.How much you had sorrow in you still you acted in films.Pakizah is so nice film, it's only because of you is the best film.Thank you so much Meena Kumariji for giving such nice films to us.I miss you so much.Our film industry lost a gem.l don't think our film industry can get all rounder actress like Meena Kumariji. I miss you a lot.
ReplyDeleteमरहूम मीना जी की एक गज़ल पढ़ी थी,जिसके बोल हैं- सुबह के नूर में बेनूर हो गये झूमर,रहा न कोई भी वीरान हुआ जलसाघर। मोम के जिस्म में धागे का सफ़र ख़त्म हुआ, शमा की आँख लगी इंतज़ार ख़त्म हुआ।
ReplyDeleteमैं पूरी गजल पढ़ना चाहता हूँ, अगर आप इस गज़ल को छाप दें तो मेहरबानी होगी।
माँ को शत नमन एवं श्रधान्जलि, वो हर युग में इस संसार के हर किसी के दिल मे धडकती रहें, मेरी हर पूजा उनकी याद से शुरु होकर उनकी दुआओं के साथ अंत हो, इन्हीं आखरी अभिलाषाओं के साथ....
ReplyDeleteबेहिसाब दर्द का सफर....हर लब्ज में दिखाई देता है !
ReplyDeleteBahot achchi shayari hai wah wah.
ReplyDeleteBina dekhe tumhari tasvir bana sakta hun apne honton se tumhare honton ko sajha sakta hun
Meena thi kabhi zeenat e mehfil e la o lab
ReplyDeletePakeezah hui to khuda ne bula liya
मीना जी की शायरी ने दिल को झकझोर के रख दिया ।
ReplyDeleteकाश उस वक़्त के जो लोग किसी भी रूप में उनके साथ जुड़े थे , वो लोग अपनी अपनी इंसानियत दिखाते उनके दर्द को महसूस करके उन्हें उस दर्द से बाहर निकलने की कोशिश करते ।
कोई तो आगे बढ़कर उन्हें ज़िन्दगी भर की खुशियां देने का वादा करता और उस महान शायरा ,महान अदाकारा, और उस दर्द में डूबी हुई शख्सियत को जीने की वजह देता।
मगर अफ़सोस कि उन लोगों ने सिर्फ उन्हें दर्द ही दिए , उन्हें चोटें ही दीं।
लगता है कि बस अपना भविष्य उज्ज्वल बनाने के लिए सभी ने उन्हें सिर्फ इस्तेमाल ही किया ।
बहूत अफ़सोस की बात है कि हमने एक अनमोल हीरा इतनी जल्दी और इतनी आसानी से खो दिया ।
मीना कुमारी जैसे कलाकार बार बार जन्म नही लेते ।
भगवान उनकी आत्मा को वो शांति और सुख प्रदान करे जिसके लिए वो सारी जिंदगी तरसती रहीं ।
मेरी और से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि जसबीर कडू जे.जे.
Kya kahoon!! Kya kisi insaan me itna sab kuch ho sakta hai khuda se gujarish hai paak ruh ka khayal rakhe or wapis is jahan me na bheje barbar dil ka dukhna- dhukhana theek nahi
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