Tuesday 25 September 2012

Shayar Ibn-e-Insha, शायर इब्ने इंशा, (ابن انشاء)

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Shayar Ibn-e-Insha
June 15, 1927 died January 11, 1978
1.
ये बातें झूठी बातें हैं, ये लोगों ने फैलाई हैं
 ये बातें झूठी बातें हैं, ये लोगों ने फैलाई हैं।
तुम इन्शा जी का नाम न लो, क्या इन्शा जी सौदाई हैं?

हैं लाखों रोग ज़माने में क्यों इश्क है रुसवा बेचारा
हैं और भी वज़हें वहशत की इन्शा को रखतीं दुखियारा।
हाँ, बेकल-बेकल रहता है, हो पीत में जिसमें जी हारा
पर शाम से लेकर सुबहो तलक यूँ कौन फिरे है आवारा।
ये बातें झूठी बातें हैं, ये लोगों ने फैलाई हैं।
तुम इन्शा जी का नाम न लो, क्या इन्शा जी सौदाई हैं?

ये बात अजीब सुनते हो, वो दुनिया से बे आस हुए
इक नाम सुना और ग़श खाया, इक ज़िक्र पे आप उदास हुए
वो इल्म में अफलातून सुने, वो शेर में तुलसीदास हुए
वो तीस बरस के होते हैं, वो बी.ए. एम.ए. पास हुए
ये बातें झूठी बातें हैं, ये लोगों ने फैलाई हैं।
तुम इन्शा जी का नाम न लो, क्या इन्शा जी सौदाई हैं?

गर इश्क किया है तब क्या है, क्यों शाद नहीं आबाद नहीं
जो जान लिए बिन टल ना सके ये ऐसी भी उफ़ताद नहीं।
ये बात तो तुम भी मानोगे वो कैस नहीं फ़रहाद नहीं
क्या हिज्र का दारू मुश्किल है, क्या वस्ल के नुस्खे याद नहीं।
ये बातें झूठी बातें हैं, ये लोगों ने फैलाई हैं।
तुम इन्शा जी का नाम न लो, क्या इन्शा जी सौदाई हैं?

वो लड़की अच्छीलड़की है, तुम नाम न लो हम जान गए
वो जिस के लंबे गेसू हैं, पहचान गए पहचान गए
हाँ, साथ हमारे इंशा भी उस घर में थे मेहमान गए
पर उससे तो कुछ बात न की, अंजान रहे अंजान गए
ये बातें झूठी बातें हैं, ये लोगों ने फैलाई हैं।
तुम इन्शा जी का नाम न लो, क्या इन्शा जी सौदाई हैं?

जो हमसे कहो हम करते हैं, क्या इन्शा को समझाना है।
उस लड़की से भी कह लेंगे गो अब कुछ और ज़माना है।
या छोड़ें या तक़मील करें ये इश्क है या अफ़साना है।
ये कैसा गोरखधंधा है, ये कैसा तानाबाना है।
ये बातें कैसी बातें हैं, जो लोगों ने फैलाई हैं ?
तुम इन्शा जी का नाम न लो, क्या इन्शा जी सौदाई हैं?

yeh batain jhooti batain hain, yeh logon ne phelai hain
tum insha ji ka naam na lo, kya insha ji saudaaii hain?

hain lakhoon rog zamane mein, kyon ishq hai ruswa bechara
hain aur bhi wajhain wehshat ki, insan ko rakhti dukhiara
haan baykal baykal rehta hai, ho peet main jis nay jii hara
per shaam say lay kar subh talak yoon kon phiray ga awaara?
yeh batain jhooti batain hain, yeh logon nay phelai hain
tum insha ji ka naam na lo, kia insha ji saudaaii hain?

yeh baat ajeeb sunate ho, wo duniya say bay aass huay
ik naam suna aur ghash khaya, ik zikr pay aap udaass huay
wo ilm main aflatoon sunay, wo sher main tulsi daas huay
wo tees baras kay hotay hain, wo B.A. M.A. paas huay
yeh batain jhooti batain hain, yeh logon nay phelai hain
tum insha ji ka naam na lo, kia insha ji saudaaii hain?

gar ishq kia hai tab kia hai? kion shaad nahi abaad nahi?
jo jaan liay bin tal na sakay, yeh aisi bhi uftaad nahi
yay baat tu tum bhi mano gay, wo Qais nahi Farhaad nahi
kia hijr ka daro mushkil hai? kia visl kay nuskhay yaad nahi?
yeh batain jhooti batain hain, yeh logon nay phelai hain
tum insha ji ka naam na lo, kia insha ji saudaaii hain?

wo ladaki achi larki hai, tum naam na lo hum jaan gaye
wo jis ke laambay gaisoo hain, pehchaan gaye pehchan gaye
han saath humare insha bhi uss ghar me the mehmaan gaye
per us se tu kuch baat na ki, anjaan rahe anjaan gaye
yeh batain jhooti batain hain, yeh logon nay phelai hain
tum insha ji ka naam na lo, kia insha ji saudaaii hain?

jo hum se kaho hum karte hain, kia insha ko samjhana hai?
uss larki se bhi keh len gay, goh ab kuch aur zamana hai
ya chhoden, ya takmeel karen, ye ishq hai ya afsaana hai?
ye kaisa gorakh dhanda, hai ye kaisa tana bana hai?
ye batain kaisi batain hain, jo logon ne phelai hain?
tum insha ji ka naam na lo, kia insha ji saudaaii hain?
2.  
सुनते हैं फिर छुप छुप उनके घर में आते जाते हो
 सुनते हैं फिर छुप छुप उनके घर में आते जाते हो
इंशा साहब नाहक जी को वहशत में उलझाते हो

दिल की बात छुपानी मुश्किल, लेकिन खूब छुपाते हो
बन में दाना, शहर के अन्दर दीवाने कहलाते हो

बेकल बेकल रहते हो, पर महफ़िल के आदाब के साथ
आँख चुरा कर देख भी लेते हो, भोले भी बन जाते हो

प्रीत में ऐसे लाख जतन हैं, लेकिन एक दिन सब नाकाम
आप जहां में रुसवा होगे, वज़ह हमें फरमाते हो

हम से नाम जुनून का कायम, हम से दश्त की आबादी
हम से दर्द का शिकवा करते, हम को ज़ख्म दिखाते हो ?
sunte haiN phir chhup chhup unke ghar meN aate jaate ho
Insha saahab naahaq jii ko vahshat meN uljhaate ho

dil kii baat chhupaanii mushkil,lekin Khuub chhupaate ho
ban meN daanaa,sha’hr ke andar diivane kehlaate ho

bekal bekal rahte ho, par mehfil ke aadaab ke saath
aaNkh churaa kar dekh bhii lete ho, bhole bhii ban jaate ho

peet meN aise laakh jatan haiN, lekin ek din sab nakaam
aap jahaan meN rusvaa hoge, vaaz hameN farmaate ho

ham se naam junuuN kaa qaayam, ham se dasht kii aabaadii
ham se dard ka shikvaa karte, ham ko zakhm dikhaate ho?
 


3.
 दिल ने हमारे बैठे बैठे कैसे कैसे रोग लगाये 
दिल ने हमारे बैठे बैठे कैसे कैसे रोग लगाये
तुम ने किसी का नाम लिया और आँखों में अपनी आंसू आये

जितनी जुबानें उतने किस्से अपनी उदासी के कारण के
लेकिन लोग अभी तक यह सादा सी पहेली बूझ न पाए

इश्क किया है? किस से किया है? कब से किया है? कैसे किया है?
लोगों को इक बात मिली, अपने को तो लेकिन रोना आये

राह में यूँही चलते चलते उनका दामन थाम लिया था
हम उन से कुछ मांगें चाहें, हमसे तो यह सोचा भी न जाये

नज्म-ए-सहर के चेहरे से इंशा इतनी भी उम्मीदें न लगाओ
ऐसा भी हम ने देखा है अक्सर रात कटे और सुबह न आये 


Dil ne hamaray baithay baithay kaisay kaisay rog lagaye
tum ne kisi ka naam lia aur ankhon mein apni ansu aaye

Jitni zubanain utnay qissay apni udasi ke karan ke
laikin log abhi tak yeh sada si pahaili boojh na paye

Ishq kia hai? kis se kia hai? kab se kia hai? kaisay kai hai?
logon ko ik baat mili, apnay ko to laikin rona aaye

Raah mein yunhi chalty chalty unka daman tham lia tha
ham un se kuch mangain chahain, hamse tou yeh socha bhi na jaye

Najm-e seher ke chehray se Insha itni bhi umeedain na lagao
aisa bhi ham ne daikha hai aksar raat katay aur subha na aaye


4.
 एक छोटा सा लड़का था मैं जिन दिनों 
एक छोटा सा लड़का था मैं जिन दिनों
एक मेले में पहुंचा हुमकता हुआ

जी मचलता था हर इक शय पे मगर
जेब खाली थी, कुछ मोल न ले सका

लौट आया, लिए हसरतें सैंकड़ों
एक छोटा सा लड़का था मैं जिन दिनों

खैर मेहरूमिओं के वोह दिन तो गए
आज मेला लगा है उसी शान से

जी में आता है इक इक दुकान मोल लूं
जो मैं चाहूं तो सारा जहां मोल लूं

नारसाई का अब जी में धड़का कहाँ
पर वोह छोटा सा अल्हड़ सा लड़का कहाँ ?


Aik chota sa larka tha main jin dino
aik melay mein pohoncha humakta hua

ji machalta tha har ik shay pe magar
jaib khali thi, kuch mol na le saka

laut aya liye hasratain sainkron
aik chota sa larka tha main jin dino

khair mehroomion ke woh din tou gaye
aaj maila laga hai usi shan se

ji mein ata hai ik ik dukan mol loon
jo main chahoon tou sara jahan mol loon

naarsayi ka ab ji mein dharka kahan
par woh chota sa alhar sa larka kahan? 


5.
 चल इंशा अपने गाँव में
यहाँ उजले उजले रूप बहुत
पर असली कम, बहरूप बहुत

इस पेड़ के नीचे क्या रुकना
जहाँ साये कम, धुप बहुत

चल इंशा अपने गाँव मैं
बेठेंगे सुख की छाओं में


क्यूँ तेरी आँख सवाली है ?
यहाँ हर एक बात निराली है
इस देस बसेरा मत करना
यहाँ मुफलिस होना गाली है

चल इंशा अपने गाँव में

जहाँ सच्चे रिश्ते यारों के
जहाँ वादे पक्के प्यारों के

जहाँ सजदा करे वफ़ा पांव में
चल इंशा अपने गाँव में

6.
इंशा जी उठो अब कूच करो इंशा जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी का लगाना क्या
वहशी को सुकूं से क्या मतलब जोगी का नगर में ठिकाना क्या

इस दिल के दरीदा दामन को देखो तो सही सोचो तो सही
जिस झोली में सौ छेद हुए उस झोली का फैलाना क्या

 शब बीती चांद भी डूब चला जंज़ीर पड़ी दरवाजे में
 क्यों देर गए घर आए हो सजनी से करोगे बहाना क्या

 फिर हिज्र की लंबी रात मियां संजोग की तो यही एक घड़ी
 जो दिल में है लब पर आने दो शरमाना क्या घबराना क्या

 उस रोज़ जो उनको देखा है अब ख्वाब का आलम लगता है
 उस रोज़ जो उनसे बात हुई वो बात भी थी अफसाना क्या

 उस हुस्न के सच्चे मोती को हम देख सकें पर छू न सकें
जिसे देख सकें पर छू न सकें वह दौलत क्या वो ख़ज़ाना क्या

उसको भी जला दुखते हुए मन एक शोला लाल भभूका बन
यूं आंसू बन बह जाना क्या यूं माटी में मिल जाना क्या

जब शहर के लोग न रस्ता दें क्यों बन में न जा बिसराम करें
 दीवानों की सी ना बात करे तो और करे दीवाना क्या

7.
कल चौदहवीं की रात थीकल चौदहवीं की रात थी,
शब भर रहा चर्चा तेरा।
कुछ ने कहा ये चाँद है,
कुछ ने कहा चेहरा तेरा।

हम भी वहीं मौज़ूद थे,
हमसे भी सब पूछा किए।
हम हँस दिए हम चुप रहे
मंज़ूर था पर्दा तेरा।

इस शहर में किससे मिलें
हमसे तो छूटी महफ़िलें।
हर शख़्स तेरा नाम ले
हर शख़्स दीवाना तेरा।

कूचे को तेरे छोड़ कर
जोगी ही बन जाएँ मग़र,
जंगल तेरे, पर्वत तेरे
बस्ती तेरी, सहरा तेरा।

बेदर्द सुननी हो तो चल
कहता है क्या अच्छी गज़ल
आशिक तेरा, रुसवा तेरा
शायर तेरा ‘इंशा’ तेरा।

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