Bashir Badr
February 15, 1935
1.
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता
अपना दिल भी टटोल कर देखो
फासला बेवजह नही होता
कोई काँटा चुभा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता
गुफ़्तगू उनसे रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता
रात का इंतज़ार कौन करे
आज कल दिन में क्या नहीं होता
2.
आँसूओं की जहाँ पायमाली रही
आँसूओं की जहाँ पायमाली रही
ऐसी बस्ती चराग़ों से ख़ाली रही
दुश्मनों की तरह उस से लड़ते रहे
अपनी चाहत भी कितनी निराली रही
जब कभी भी तुम्हारा ख़याल आ गया
फिर कई रोज़ तक बेख़याली रही
लब तरसते रहे इक हँसी के लिये
मेरी कश्ती मुसाफ़िर से ख़ाली रही
चाँद तारे सभी हम-सफ़र थे मगर
ज़िन्दगी रात थी रात काली रही
मेरे सीने पे ख़ुशबू ने सर रख दिया
मेरी बाँहों में फूलों की डाली रही
3.
कभी यूं भी आ मेरी आंख में
कभी यूं भी आ मेरीआंख में, कि मेरी नजर को खबर ना हो
मुझे एक रात नवाज दे, मगर उसके बाद सहर ना हो
वो बड़ा रहीमो करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूं तो मेरी दुआ में असर ना हो
मेरे बाज़ुऔं में थकी थकी, अभी महवे ख्वाब है चांदनी ना उठे
सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुजर ना हो
ये गज़ल है जैसे हिरन की आंखों में पिछली रात की चांदनी
ना बुझे खराबे की रौशनी, कभी बेचिराग ये घर ना हो
वो फ़िराक हो या विसाल हो, तेरी याद महकेगी एक दिन
वो गुलाब बन के खिलेगा क्या, जो चिराग बन के जला ना हो
कभी धूप दे, कभी बदलियां, दिलोज़ान से दोनो कुबूल हैं
मगर उस नगर में ना कैद कर, जहां ज़िन्दगी का हवा ना हो
कभी यूं मिलें कोई मसलेहत, कोई खौफ़ दिल में जरा ना हो
मुझे अपनी कोई खबर ना हो, तुझे अपना कोई पता ना हो
वो हजार बागों का बाग हो, तेरी बरकतो की बहार से
जहां कोई शाख हरी ना हो, जहां कोई फूल खिला ना हो
तेरे इख्तियार में क्या नहीं, मुझे इस तरह से नवाज दे
यूं दुआयें मेरी कूबूल हों, मेरे दिल में कोई दुआ ना हो
कभी हम भी इस के करीब थे, दिलो जान से बढ कर अज़ीज़ थे
मगर आज ऐसे मिला है वो, कभी पहले जैसे मिला ना हो
कभी दिन की धूप में झूम कर, कभी शब के फ़ूल को चूम कर
यूं ही साथ साथ चले सदा, कभी खत्म अपना सफ़र ना हो
मेरे पास मेरे हबीब आ, जरा और दिल के करीब आ
तुझे धडकनों में बसा लूं मैं, कि बिछडने का कभी डर ना हो.
4.
ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है
ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है
दुनिया उंहीं फूलों कोपैरों से मसलती है
शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है
लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख दे
यूँ याद तेरी शब भर सीने में सुलगती है
आ जाता है ख़ुद खेँच कर दिल सीने से पटरी पर
जब रात की सरहद से इक रेल गुज़रती है
आँसू कभी पलकों पर ता देर नहीं रुकते
उड़ जाते हैं उए पंछी जब शाख़ लचकती है
ख़ुश रंग परिंदों के लौट आने के दिन आये
बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है
5.
चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे
चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे
इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे
मैं समझता था मुहब्बत की ज़बाँ ख़ुश्बू है
फूल से लोग इसे ख़ूब समझते होंगे
भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वाले
आज के प्यार को मायूब समझते होंगे
6.
अदब की हद में हूं मैं बेअदब नहीं होता
अदब की हद में हूं मैं बेअदब नहीं होता।
तुम्हारा तजिकरा अब रोज़-ओ-शब नहीं होता।
कभी-कभी तो छलक पड़ती हैं यूं ही आंखें,
उदास होने का कोई सबब नहीं होता।
कई अमीरों की महरूमियां न पूछ कि बस,
ग़रीब होने का एहसास अब नहीं होता।
मैं वालिदैन को ये बात कैसे समझाउं,
मोहब्बतों में हबस-ओ-नसब नहीं होता।
वहां के लोग बड़े दिलफरेब होते हैं,
मेरा बहकना भी कोई अजब नहीं होता।
मैं इस ज़मीन का दीदार करना चाहता हूं,
जहां कभी भी खुदा का ग़ज़ब नहीं होता।
7.
कोई लश्कर है कि बढ़ते हुए गम आते हैं
कोई लश्कर है कि बढ़ते हुए गम आते हैं
शाम के साये बहुत तेज कदम आते हैं
दिल वो दरवेश है जो आंख उठाता ही नहीं
उसके दरवाजे पर सौ अहल-ए-करम आते हैं
मुझसे क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए
कभी सोने, कभी चांदी के कलम आते हैं
मैंने दो-चार किताबें तो पढ़ी हैं लेकिन
शहर के तौर-तरीके मुझे कम आते हैं
खूबसूरत-सा कोई हादसा आंखों में लिए
घर की दहलीज पर डरते हुए हम आते हैं
8.
न जी भर के देखा न कुछ बात की
न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की
उजालों की परियाँ नहाने लगीं
नदी गुनगुनाई ख़यालात की
मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई
ज़ुबाँ सब समझते हैं जज़्बात की
सितारों को शायद ख़बर ही नहीं
मुसाफ़िर ने जाने कहाँ रात की
मुक़द्दर मेरे चश्म-ए-पुर अब का
बरसती हुई रात बरसात की
9.
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों
बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहाँ दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता
तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था।
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला
ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
10.
याद किसी की चाँदनी बन कर कोठे कोठे उतरी है
याद किसी की चाँदनी बन कर कोठे कोठे उतरी है
याद किसी की धूप हुई है ज़ीना ज़ीना उतरी है
रात की रानी सहन-ए-चमन में गेसू खोले सोती है
रात-बेरात उधर मत जाना इक नागिन भी रहती है
तुम को क्या तुम ग़ज़लें कह कर अपनी आग बुझा लोगे
उस के जी से पूछो जो पत्थर की तरह चुप रहती है
पत्थर लेकर गलियों गलियों लड़के पूछा करते हैं
हर बस्ती में मुझ से आगे शोहरत मेरी पहुँचती है
मुद्दत से इक लड़की के रुख़्सार की धूप नहीं आई
इसी लिये मेरे कमरे में इतनी ठंडक रहती है
11.
वो थका हुआ मेरी बाहों में ज़रा सो गया था तो क्या हुआ
वो थका हुआ मेरी बाहों में ज़रा सो गया था तो क्या हुआ
अभी मैंने देखा है चाँद भी किसी शाख़-ए-गुल पे झुका हुआ
जिसे ले गई है अभी हवा वो वरक़ था दिल की किताब का
कहीं आँसुओं से मिटा हुआ कहीं आँसुओं से लिखा हुआ
कई मील रेत को काट कर कोई मौज फूल खिला गई
कोई पेड़ प्यास से मर रहा है नदी के पास खड़ा हुआ
मुझे हादसों से सजा सजा के बहुत हसीन बना दिया
मेरा दिल भी जैसे दुल्हन का हाथ हो मेहदियों से रचा हुआ
वही ख़त के जिस पे जगह जगह दो महकते होंठों के चाँद थे
किसी भूले-बिसरे से ताक़ पर तह-ए-गर्द होगा दबा हुआ
वही शहर है वही रास्ते वही घर है और वही लान भी
मगर उस दरीचे से पूछना वो दरख़्त अनार का क्या हुआ
मेरे साथ जुगनू है हमसफ़र मगर इस शरर की बिसात क्या
ये चराग़ कोई चराग़ है न जला हुआ न बुझा हुआ
12.
ये चिराग़ बेनज़र है ये सितारा बेज़ुबाँ है
ये चिराग़ बेनज़र है ये सितारा बेज़ुबाँ है
अभी तुझसे मिलता जुलता कोई दूसरा कहाँ है
वही शख़्स जिसपे अपने दिल-ओ-जाँ निसार कर दूँ
वो अगर ख़फ़ा नहीं है तो ज़रूर बदगुमाँ है
कभी पा के तुझको खोना कभी खो के तुझको पाना
ये जनम जनम का रिश्ता तेरे मेरे दरमियाँ है
मेरे साथ चलनेवाले तुझे क्या मिला सफ़र में
वही दुख भरी ज़मीं है वही ग़म का आस्माँ है
मैं इसी गुमाँ में बरसों बड़ा मुत्मइन रहा हूँ
तेरा जिस्म बेतग़ैय्युर है मेरा प्यार जाविदाँ है
उंहीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे
मुझे रोक रोक पूछा तेरा हमसफ़र कहाँ है
13.
अपनी खोयी हुयी जन्नतें पा गए जीस्त के रास्ते भूलते भूलते
अपनी खोयी हुयी जन्नतें पा गए जीस्त के रास्ते भूलते भूलते
मौत की वादियों में कहीं खो गए तेरी आवाज़ को ढूंढते ढूंढते
मस्त-ओ-सरशार थे कोई ठोकर लगी आसमान से ज़मीं पर यूँ हम आगये
शाख से फूल जैसे कोई गिर पड़े रक़-से आवाज़ पर झूमते झूमते
कोई पत्थर नहीं हूँ के जिस शक्ल में मुझ को चाहो बनाया बिगाड़ा करो
भूल जाने की कोशिश तो की थी मगर याद तुम आगये भूलते भूलते
ऑंखें आंसू भरी पलकें बोझल घनी, जैसे झीलें भी हों नर्म साए भी हों
वो तो कहिये उन्हें कुछ हंसी आगई बच गए आज हम डूबते डूबते
अब वो गेसू नहीं हैं जो साया करें अब वो शाने नहीं जो सहारा बनें
मौत के बाज़ुओ तुम ही आगे बढ़ो थक गए हम आज घूमते घूमते
दिल में जो तीर हैं अपने ही तीर हैं अपनी ज़ंजीर से पांव ज़ंजीर हैं
संग रेज़ों को हम ने खुदा कर दिया आखिर रात दिन पूजते पूजते
Bashir Badr Shayari in English
1.
Aankhon mein rahaa dil mein utarkar nahin dekha
Kishti ke musafir ne samandar nahin dekha
Bewaqt agar jaunga sab chonk padenge
Ik umr hui din mein kabhi ghar nahin dekha
lis din se chala hun miri manzil pe nazar hai
Aankon ne kabhi meel ka patthar nahin dekha
Ye phool mujhe koi wirasat mein mile hein
Tumne mira kanton bhara bistar nahin dekha
Patthar mujhe kahta hai mira chahne wala
Main mom hun usne mujhe chhookar nahin dekha
2.
Aansuon se dhuli khushki ki tarah
Rishte hote hain shayri ki tarah
Ham khuda ban key aayenge warna
Ham se mil jao aadmi ki tarah
Barf seene ki jaise jaise gali
Aankh khulti gayi kali ki tarah
Jab kabhi badlon me in ghirta hai
Chand lagta hai aadmi ki tarah
Kisi rozan kisi dareeche se
Saamne aao roshni ki tarah
Sab nazar ka fareb hai warna
Koi hota nahin kisi ki tarah
Khubsoorat udaas Khaufzada
Woh bhi hai beeswin sadi ki tarah
Janta hun ki eik din mujhko
wo badal dega dayri ki tarah
3.
Aaya hi nahin hamko aahista guzar jaana
Sheeshe ka muqaddar hai takraa key bikhar jaana
Taaron ki tarah shab key seene mein utar jaana
Aahat na ho qadmon ki is tarh guzar j aana
Nashe mein sanbhalne ka fan yun hi nahin aata
In zulfon se seekha hai lahra key sanwar jaana
Bhar jaayenge aankhon mein aanchal se bandhe baadal
Yaad aayega jab gul par shabnam ka bikhar jaana
Har mod pe se do aankhen hamse yahi kahti hain
Jis tarh bhi mumkin ho turn laut key ghar jaana
Patthar ko mira saaya aaina sa chamka de
J aana to mira sheesha yun dard se bhar j aana
Ye chaand sitaare turn auron key liye rakh lo
Ham ko yahin j eena hai ham ko yahin mar jaana
Jab toot gaya rishta sar-sabz pahaadon se
Phir tez hawaa jane kis ko hai kidhar jaana
4.
Aansuon key saath sab kuchh bah gaya
Dil mein sannata sa baqi rah gaya
Chhod aaya hun zameen-o-aasman
Fasila ab aur kitna rah gaya
5.
Aas hogi na aasra hoga
Ane wale dinon mein kya hoga
Main tujhe bhul jaunga ek din
Wagtsab kuchh badal chuka hoga
Naam ham ne likha tha ankhon mein
Ansuon ne mita diya hoga
Aasman bhar gaya parindon se
Ped koi hara gira hoga
Kitna dushwaar tha safar uska
Wo sareshaam so gaya hoga
6.
Ab dilon key alaawa padhna kya
Apna kaghaz qalarn se rishta kya
Aansuon se rniri hatheli par
Kaun padhta ke usne likkha kya
Ek rnahak jaise raat ki raani
Kya bataaoun ke usne socha kya
Jab bhi dekho usi taraf nazren
Chaand bhi hai kisi ka chehra kya
Turn rneri zindagi ho yeh sach hai
Zindagi ka rnagar bharosa kya
7.
Ab kise chahen kise dhunda karen
Wo bhi akhir mil gaya ab kya karen
Halki halki barishen hoti rahen
Ham bhi phoolon ki tarah bhiga karen
Aankh munde is gulabi dhoop mein
Der tak baithe use socha karen
Dil mohabbat deen duniya shairi
Har dareeche se tujhe dekha karen
Ghar naya kapde naye bartan naye
In purane kaghazon ka kya karen
8.
Achchha tumhare shehr ka dastoor ho gaya
Jisko gale laga liya woh door ho gaya
Kaghaz mein dab key margaye keedey kitab ke
Deewana be padhe likhe mashhoor ho gaya
Mehlon mein ham ne kitne sitaare saja diye
Lekin zamin se chand bahut door ho gaya
Tanhaiyon ne tod di ham donon ki ana
Aina baat karne pe majboor ho gaya
Subhe visaal punch rahi hai ajab sawaal
Woh paas aagaya ke bahut door ho gaya
Kuchh phal zaroor ayenge roti key ped mein
Jis din mera matalba manzoor ho gaya
9.
Abhi is taraf na nigaah kar main ghazal ki palken sanwaar lun
Mira lafz lafz ho aina tujhe aine me in utar lun
Main tamaam din ka thaka hua Tu tamaam shab ka jaga hua
Zara thehr ja isi mod par tere saath shaam guzaar lun
Agar aasman ki numaishon mein mujhe bhi izne qyam ho
To main motiyon ki dukan se teri baliyan tire haar lun
Kahin aur bant de shohratein kahin aur bakhsh de izzatein
Mire paas hai mira aina main kabhi na gard-o-ghubaar lun
Kai ajnabi teri raah mein mire paas se yun guzar gaye
Jinhe dekhkar ye tadap hui tira naam Ie ke pukaar lun
10.
Agar talaash karun koi mil hi jayega
Magar tumhari tarah kaun mujhko chahega
Tumhen zaroor koi chahaton se dekhega
Magar wo aankhen hamaari kahan se layega
Na jane kab tire dil par nayi si dastak ho
Makaan khali hua hai to koi ayega
Main apni raah mein deewar ban key baitha hun
Agar wo aaya to kis raaste se ayega
Tumhare saath ye mausam farishton jaisa hai
Tumhare baad ye mausam bahut sataayega
11.
Apni jagah jame hain kahne ko kah rahe they
Sab log warna bahte darya mein bah rahe they
Aisa laga ki ham turn kohre mein chal rahe hon
Do phool oonchi neechi lahron par bah rahe they
Dil ujle paak phoolon se bhar diya tha kisne
Us din hamaari aankhon se ashk bah rahe they
Aksar sharaab peekar padti thi wo duaen
Ham eik aisi ladki key saath rah rahe they
Akhbaar mein to koi aisi khabar nahin thi
Jhulse makaan jhute afsaane kah rahe they
12.
Bade taj iron ki sataayi hui
Ye duniya dulhan hai jalayi hui
Bhari dopahar ka khila phool hai
Paseene mein ladki nahayi hui
Kiran phool ki pattiyon mein dabi
Hansi uske honton pe aayi hui
Wo chehra kitabi raha samne
Badi khubsoorat padhayi hui
Khushi gham gharibon kijaise miyan
Mazaaron pe chaadar chadayi hui
13.
Apni khoyi huyi jannaten pa gaye zeest key raaste bhulte bhulte
Maut ki waadiyon mein kahin kho gaye teri aawaz ko dhundte dhundte
Mast-o-sarshar they koi thokar lagi aasman se zamin par yun ham aagaye
Shakh se phool jaise koi gir pade raq-se awaz par jhumte jhumte
Koi patthar nahin hun ke jis shakl mein mujh ko chaho banaya bigada karo
Bhool jaane ki koshish to ki thi magar yaad tum agaye bhulte bhulte
Ankhen ansu bhari palken bojhal ghani,jaise helen bhi honnarm saayebhi hon
Woto kahiye unhen kuchh hansi agayi bach gaye aaj ham dubte dubte
Ab wo gesu nahin hein jo saaya karen ab wo shaane nahin jo sahara banen
Maut ke bazuo tum hi aage badho thak gaye ham aaj ghumte ghumte
Dil meinjo teer hein apne hi teer hein apni zanjeer se paon zanjeer hein
Sang rezon ko ham ne khuda kar diya akhir raat din poojte poojte
14.
Bewafa raaste badalte hein
Ham safar saath saath chalte hein
Kiske aansoo chhupe hein phoolon mein
Choomta hun to hont jalte hein
Uski aankhon ko ghaur se dekho
Mandiron mein chiragh jalte hein
Eik deewar wo bhi shishey ki
Do badan paas paas j altey hein
Kaanch key, motiyon key, aansu key
Sab khilone ghazal mein dhalte hein
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता
अपना दिल भी टटोल कर देखो
फासला बेवजह नही होता
कोई काँटा चुभा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता
गुफ़्तगू उनसे रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता
रात का इंतज़ार कौन करे
आज कल दिन में क्या नहीं होता
2.
आँसूओं की जहाँ पायमाली रही
आँसूओं की जहाँ पायमाली रही
ऐसी बस्ती चराग़ों से ख़ाली रही
दुश्मनों की तरह उस से लड़ते रहे
अपनी चाहत भी कितनी निराली रही
जब कभी भी तुम्हारा ख़याल आ गया
फिर कई रोज़ तक बेख़याली रही
लब तरसते रहे इक हँसी के लिये
मेरी कश्ती मुसाफ़िर से ख़ाली रही
चाँद तारे सभी हम-सफ़र थे मगर
ज़िन्दगी रात थी रात काली रही
मेरे सीने पे ख़ुशबू ने सर रख दिया
मेरी बाँहों में फूलों की डाली रही
3.
कभी यूं भी आ मेरी आंख में
कभी यूं भी आ मेरीआंख में, कि मेरी नजर को खबर ना हो
मुझे एक रात नवाज दे, मगर उसके बाद सहर ना हो
वो बड़ा रहीमो करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूं तो मेरी दुआ में असर ना हो
मेरे बाज़ुऔं में थकी थकी, अभी महवे ख्वाब है चांदनी ना उठे
सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुजर ना हो
ये गज़ल है जैसे हिरन की आंखों में पिछली रात की चांदनी
ना बुझे खराबे की रौशनी, कभी बेचिराग ये घर ना हो
वो फ़िराक हो या विसाल हो, तेरी याद महकेगी एक दिन
वो गुलाब बन के खिलेगा क्या, जो चिराग बन के जला ना हो
कभी धूप दे, कभी बदलियां, दिलोज़ान से दोनो कुबूल हैं
मगर उस नगर में ना कैद कर, जहां ज़िन्दगी का हवा ना हो
कभी यूं मिलें कोई मसलेहत, कोई खौफ़ दिल में जरा ना हो
मुझे अपनी कोई खबर ना हो, तुझे अपना कोई पता ना हो
वो हजार बागों का बाग हो, तेरी बरकतो की बहार से
जहां कोई शाख हरी ना हो, जहां कोई फूल खिला ना हो
तेरे इख्तियार में क्या नहीं, मुझे इस तरह से नवाज दे
यूं दुआयें मेरी कूबूल हों, मेरे दिल में कोई दुआ ना हो
कभी हम भी इस के करीब थे, दिलो जान से बढ कर अज़ीज़ थे
मगर आज ऐसे मिला है वो, कभी पहले जैसे मिला ना हो
कभी दिन की धूप में झूम कर, कभी शब के फ़ूल को चूम कर
यूं ही साथ साथ चले सदा, कभी खत्म अपना सफ़र ना हो
मेरे पास मेरे हबीब आ, जरा और दिल के करीब आ
तुझे धडकनों में बसा लूं मैं, कि बिछडने का कभी डर ना हो.
4.
ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है
ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है
दुनिया उंहीं फूलों कोपैरों से मसलती है
शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है
लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख दे
यूँ याद तेरी शब भर सीने में सुलगती है
आ जाता है ख़ुद खेँच कर दिल सीने से पटरी पर
जब रात की सरहद से इक रेल गुज़रती है
आँसू कभी पलकों पर ता देर नहीं रुकते
उड़ जाते हैं उए पंछी जब शाख़ लचकती है
ख़ुश रंग परिंदों के लौट आने के दिन आये
बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है
5.
चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे
चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे
इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे
मैं समझता था मुहब्बत की ज़बाँ ख़ुश्बू है
फूल से लोग इसे ख़ूब समझते होंगे
भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वाले
आज के प्यार को मायूब समझते होंगे
6.
अदब की हद में हूं मैं बेअदब नहीं होता
अदब की हद में हूं मैं बेअदब नहीं होता।
तुम्हारा तजिकरा अब रोज़-ओ-शब नहीं होता।
कभी-कभी तो छलक पड़ती हैं यूं ही आंखें,
उदास होने का कोई सबब नहीं होता।
कई अमीरों की महरूमियां न पूछ कि बस,
ग़रीब होने का एहसास अब नहीं होता।
मैं वालिदैन को ये बात कैसे समझाउं,
मोहब्बतों में हबस-ओ-नसब नहीं होता।
वहां के लोग बड़े दिलफरेब होते हैं,
मेरा बहकना भी कोई अजब नहीं होता।
मैं इस ज़मीन का दीदार करना चाहता हूं,
जहां कभी भी खुदा का ग़ज़ब नहीं होता।
7.
कोई लश्कर है कि बढ़ते हुए गम आते हैं
कोई लश्कर है कि बढ़ते हुए गम आते हैं
शाम के साये बहुत तेज कदम आते हैं
दिल वो दरवेश है जो आंख उठाता ही नहीं
उसके दरवाजे पर सौ अहल-ए-करम आते हैं
मुझसे क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए
कभी सोने, कभी चांदी के कलम आते हैं
मैंने दो-चार किताबें तो पढ़ी हैं लेकिन
शहर के तौर-तरीके मुझे कम आते हैं
खूबसूरत-सा कोई हादसा आंखों में लिए
घर की दहलीज पर डरते हुए हम आते हैं
8.
न जी भर के देखा न कुछ बात की
न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की
उजालों की परियाँ नहाने लगीं
नदी गुनगुनाई ख़यालात की
मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई
ज़ुबाँ सब समझते हैं जज़्बात की
सितारों को शायद ख़बर ही नहीं
मुसाफ़िर ने जाने कहाँ रात की
मुक़द्दर मेरे चश्म-ए-पुर अब का
बरसती हुई रात बरसात की
9.
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों
बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहाँ दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता
तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था।
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला
ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
10.
याद किसी की चाँदनी बन कर कोठे कोठे उतरी है
याद किसी की चाँदनी बन कर कोठे कोठे उतरी है
याद किसी की धूप हुई है ज़ीना ज़ीना उतरी है
रात की रानी सहन-ए-चमन में गेसू खोले सोती है
रात-बेरात उधर मत जाना इक नागिन भी रहती है
तुम को क्या तुम ग़ज़लें कह कर अपनी आग बुझा लोगे
उस के जी से पूछो जो पत्थर की तरह चुप रहती है
पत्थर लेकर गलियों गलियों लड़के पूछा करते हैं
हर बस्ती में मुझ से आगे शोहरत मेरी पहुँचती है
मुद्दत से इक लड़की के रुख़्सार की धूप नहीं आई
इसी लिये मेरे कमरे में इतनी ठंडक रहती है
11.
वो थका हुआ मेरी बाहों में ज़रा सो गया था तो क्या हुआ
वो थका हुआ मेरी बाहों में ज़रा सो गया था तो क्या हुआ
अभी मैंने देखा है चाँद भी किसी शाख़-ए-गुल पे झुका हुआ
जिसे ले गई है अभी हवा वो वरक़ था दिल की किताब का
कहीं आँसुओं से मिटा हुआ कहीं आँसुओं से लिखा हुआ
कई मील रेत को काट कर कोई मौज फूल खिला गई
कोई पेड़ प्यास से मर रहा है नदी के पास खड़ा हुआ
मुझे हादसों से सजा सजा के बहुत हसीन बना दिया
मेरा दिल भी जैसे दुल्हन का हाथ हो मेहदियों से रचा हुआ
वही ख़त के जिस पे जगह जगह दो महकते होंठों के चाँद थे
किसी भूले-बिसरे से ताक़ पर तह-ए-गर्द होगा दबा हुआ
वही शहर है वही रास्ते वही घर है और वही लान भी
मगर उस दरीचे से पूछना वो दरख़्त अनार का क्या हुआ
मेरे साथ जुगनू है हमसफ़र मगर इस शरर की बिसात क्या
ये चराग़ कोई चराग़ है न जला हुआ न बुझा हुआ
12.
ये चिराग़ बेनज़र है ये सितारा बेज़ुबाँ है
ये चिराग़ बेनज़र है ये सितारा बेज़ुबाँ है
अभी तुझसे मिलता जुलता कोई दूसरा कहाँ है
वही शख़्स जिसपे अपने दिल-ओ-जाँ निसार कर दूँ
वो अगर ख़फ़ा नहीं है तो ज़रूर बदगुमाँ है
कभी पा के तुझको खोना कभी खो के तुझको पाना
ये जनम जनम का रिश्ता तेरे मेरे दरमियाँ है
मेरे साथ चलनेवाले तुझे क्या मिला सफ़र में
वही दुख भरी ज़मीं है वही ग़म का आस्माँ है
मैं इसी गुमाँ में बरसों बड़ा मुत्मइन रहा हूँ
तेरा जिस्म बेतग़ैय्युर है मेरा प्यार जाविदाँ है
उंहीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे
मुझे रोक रोक पूछा तेरा हमसफ़र कहाँ है
13.
अपनी खोयी हुयी जन्नतें पा गए जीस्त के रास्ते भूलते भूलते
अपनी खोयी हुयी जन्नतें पा गए जीस्त के रास्ते भूलते भूलते
मौत की वादियों में कहीं खो गए तेरी आवाज़ को ढूंढते ढूंढते
मस्त-ओ-सरशार थे कोई ठोकर लगी आसमान से ज़मीं पर यूँ हम आगये
शाख से फूल जैसे कोई गिर पड़े रक़-से आवाज़ पर झूमते झूमते
कोई पत्थर नहीं हूँ के जिस शक्ल में मुझ को चाहो बनाया बिगाड़ा करो
भूल जाने की कोशिश तो की थी मगर याद तुम आगये भूलते भूलते
ऑंखें आंसू भरी पलकें बोझल घनी, जैसे झीलें भी हों नर्म साए भी हों
वो तो कहिये उन्हें कुछ हंसी आगई बच गए आज हम डूबते डूबते
अब वो गेसू नहीं हैं जो साया करें अब वो शाने नहीं जो सहारा बनें
मौत के बाज़ुओ तुम ही आगे बढ़ो थक गए हम आज घूमते घूमते
दिल में जो तीर हैं अपने ही तीर हैं अपनी ज़ंजीर से पांव ज़ंजीर हैं
संग रेज़ों को हम ने खुदा कर दिया आखिर रात दिन पूजते पूजते
Bashir Badr Shayari in English
1.
Aankhon mein rahaa dil mein utarkar nahin dekha
Kishti ke musafir ne samandar nahin dekha
Bewaqt agar jaunga sab chonk padenge
Ik umr hui din mein kabhi ghar nahin dekha
lis din se chala hun miri manzil pe nazar hai
Aankon ne kabhi meel ka patthar nahin dekha
Ye phool mujhe koi wirasat mein mile hein
Tumne mira kanton bhara bistar nahin dekha
Patthar mujhe kahta hai mira chahne wala
Main mom hun usne mujhe chhookar nahin dekha
2.
Aansuon se dhuli khushki ki tarah
Rishte hote hain shayri ki tarah
Ham khuda ban key aayenge warna
Ham se mil jao aadmi ki tarah
Barf seene ki jaise jaise gali
Aankh khulti gayi kali ki tarah
Jab kabhi badlon me in ghirta hai
Chand lagta hai aadmi ki tarah
Kisi rozan kisi dareeche se
Saamne aao roshni ki tarah
Sab nazar ka fareb hai warna
Koi hota nahin kisi ki tarah
Khubsoorat udaas Khaufzada
Woh bhi hai beeswin sadi ki tarah
Janta hun ki eik din mujhko
wo badal dega dayri ki tarah
3.
Aaya hi nahin hamko aahista guzar jaana
Sheeshe ka muqaddar hai takraa key bikhar jaana
Taaron ki tarah shab key seene mein utar jaana
Aahat na ho qadmon ki is tarh guzar j aana
Nashe mein sanbhalne ka fan yun hi nahin aata
In zulfon se seekha hai lahra key sanwar jaana
Bhar jaayenge aankhon mein aanchal se bandhe baadal
Yaad aayega jab gul par shabnam ka bikhar jaana
Har mod pe se do aankhen hamse yahi kahti hain
Jis tarh bhi mumkin ho turn laut key ghar jaana
Patthar ko mira saaya aaina sa chamka de
J aana to mira sheesha yun dard se bhar j aana
Ye chaand sitaare turn auron key liye rakh lo
Ham ko yahin j eena hai ham ko yahin mar jaana
Jab toot gaya rishta sar-sabz pahaadon se
Phir tez hawaa jane kis ko hai kidhar jaana
4.
Aansuon key saath sab kuchh bah gaya
Dil mein sannata sa baqi rah gaya
Chhod aaya hun zameen-o-aasman
Fasila ab aur kitna rah gaya
5.
Aas hogi na aasra hoga
Ane wale dinon mein kya hoga
Main tujhe bhul jaunga ek din
Wagtsab kuchh badal chuka hoga
Naam ham ne likha tha ankhon mein
Ansuon ne mita diya hoga
Aasman bhar gaya parindon se
Ped koi hara gira hoga
Kitna dushwaar tha safar uska
Wo sareshaam so gaya hoga
6.
Ab dilon key alaawa padhna kya
Apna kaghaz qalarn se rishta kya
Aansuon se rniri hatheli par
Kaun padhta ke usne likkha kya
Ek rnahak jaise raat ki raani
Kya bataaoun ke usne socha kya
Jab bhi dekho usi taraf nazren
Chaand bhi hai kisi ka chehra kya
Turn rneri zindagi ho yeh sach hai
Zindagi ka rnagar bharosa kya
7.
Ab kise chahen kise dhunda karen
Wo bhi akhir mil gaya ab kya karen
Halki halki barishen hoti rahen
Ham bhi phoolon ki tarah bhiga karen
Aankh munde is gulabi dhoop mein
Der tak baithe use socha karen
Dil mohabbat deen duniya shairi
Har dareeche se tujhe dekha karen
Ghar naya kapde naye bartan naye
In purane kaghazon ka kya karen
8.
Achchha tumhare shehr ka dastoor ho gaya
Jisko gale laga liya woh door ho gaya
Kaghaz mein dab key margaye keedey kitab ke
Deewana be padhe likhe mashhoor ho gaya
Mehlon mein ham ne kitne sitaare saja diye
Lekin zamin se chand bahut door ho gaya
Tanhaiyon ne tod di ham donon ki ana
Aina baat karne pe majboor ho gaya
Subhe visaal punch rahi hai ajab sawaal
Woh paas aagaya ke bahut door ho gaya
Kuchh phal zaroor ayenge roti key ped mein
Jis din mera matalba manzoor ho gaya
9.
Abhi is taraf na nigaah kar main ghazal ki palken sanwaar lun
Mira lafz lafz ho aina tujhe aine me in utar lun
Main tamaam din ka thaka hua Tu tamaam shab ka jaga hua
Zara thehr ja isi mod par tere saath shaam guzaar lun
Agar aasman ki numaishon mein mujhe bhi izne qyam ho
To main motiyon ki dukan se teri baliyan tire haar lun
Kahin aur bant de shohratein kahin aur bakhsh de izzatein
Mire paas hai mira aina main kabhi na gard-o-ghubaar lun
Kai ajnabi teri raah mein mire paas se yun guzar gaye
Jinhe dekhkar ye tadap hui tira naam Ie ke pukaar lun
10.
Agar talaash karun koi mil hi jayega
Magar tumhari tarah kaun mujhko chahega
Tumhen zaroor koi chahaton se dekhega
Magar wo aankhen hamaari kahan se layega
Na jane kab tire dil par nayi si dastak ho
Makaan khali hua hai to koi ayega
Main apni raah mein deewar ban key baitha hun
Agar wo aaya to kis raaste se ayega
Tumhare saath ye mausam farishton jaisa hai
Tumhare baad ye mausam bahut sataayega
11.
Apni jagah jame hain kahne ko kah rahe they
Sab log warna bahte darya mein bah rahe they
Aisa laga ki ham turn kohre mein chal rahe hon
Do phool oonchi neechi lahron par bah rahe they
Dil ujle paak phoolon se bhar diya tha kisne
Us din hamaari aankhon se ashk bah rahe they
Aksar sharaab peekar padti thi wo duaen
Ham eik aisi ladki key saath rah rahe they
Akhbaar mein to koi aisi khabar nahin thi
Jhulse makaan jhute afsaane kah rahe they
12.
Bade taj iron ki sataayi hui
Ye duniya dulhan hai jalayi hui
Bhari dopahar ka khila phool hai
Paseene mein ladki nahayi hui
Kiran phool ki pattiyon mein dabi
Hansi uske honton pe aayi hui
Wo chehra kitabi raha samne
Badi khubsoorat padhayi hui
Khushi gham gharibon kijaise miyan
Mazaaron pe chaadar chadayi hui
13.
Apni khoyi huyi jannaten pa gaye zeest key raaste bhulte bhulte
Maut ki waadiyon mein kahin kho gaye teri aawaz ko dhundte dhundte
Mast-o-sarshar they koi thokar lagi aasman se zamin par yun ham aagaye
Shakh se phool jaise koi gir pade raq-se awaz par jhumte jhumte
Koi patthar nahin hun ke jis shakl mein mujh ko chaho banaya bigada karo
Bhool jaane ki koshish to ki thi magar yaad tum agaye bhulte bhulte
Ankhen ansu bhari palken bojhal ghani,jaise helen bhi honnarm saayebhi hon
Woto kahiye unhen kuchh hansi agayi bach gaye aaj ham dubte dubte
Ab wo gesu nahin hein jo saaya karen ab wo shaane nahin jo sahara banen
Maut ke bazuo tum hi aage badho thak gaye ham aaj ghumte ghumte
Dil meinjo teer hein apne hi teer hein apni zanjeer se paon zanjeer hein
Sang rezon ko ham ne khuda kar diya akhir raat din poojte poojte
14.
Bewafa raaste badalte hein
Ham safar saath saath chalte hein
Kiske aansoo chhupe hein phoolon mein
Choomta hun to hont jalte hein
Uski aankhon ko ghaur se dekho
Mandiron mein chiragh jalte hein
Eik deewar wo bhi shishey ki
Do badan paas paas j altey hein
Kaanch key, motiyon key, aansu key
Sab khilone ghazal mein dhalte hein
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