Saturday, 22 September 2012

Shayar Muneer Niazi, शायर मुनीर निआज़ी

 
शायर मुनीर निआज़ी
(1928 - 2006) 
1. 
किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते ?
 किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते ?
सवाल सारे गलत थे जवाब क्या देते?

खरब सदियों की बे-ख्वाबियाँ थी आँखों में
अब इन बेअंत खलाओं में ख्वाब क्या देते ?

हवा की तरह मुसाफिर थे दिलबरों के दिल
उन्हें बस एक ही घर का अज़ाब क्या देते?

शराब दिल की तलब थी सहरा के पहरे में
हम इतनी तंगी में उसको शराब क्या देते?

मुनीर दश्त शुरू से सराब आसा था
उस आईने को तमन्ना की आब क्या देते?
 2.
बेचैन बहुत फिरना, घबराए हुए रहना
 बेचैन बहुत फिरना, घबराए हुए रहना
एक आग सी जज़्बों की दहकाए हुए रहना

छलकाए हुए रखना ख़ुशबू-लब-ए-लाली की
इक बाग़ सा साथ अपने महकाए हुए रहना

इस हुस्न का शेवा है, जब इश्क नज़र आए
परदे में चले जाना, शर्माए हुए रहना

इक शाम सी कर रखना काजल के करिश्मे से
इक चांद सा आंखों में चमकाए हुए रहना

आदत ही बना ली है, तुमने तो मुनीर अपनी
जिस शहर में भी रहना उकताए हुए रहना
 3.
एक पुरानी बात
 
जो भी घर से जाता है
ये कह कर ही जाता है
“देखो, मुझ को भूल न जाना
मैं फिर लौट के आऊंगा
दिल को अच्छे लगने वाले
लाखों तोहफे लाऊँगा
नये नये लोगों की बातें
आ कर तुम्हें सुनाऊँगा”
लेकिन आँखें थक जाती हैं
वो वापिस नहीं आता है
लोग बहुत हैं और वो अकेला
उन में गुम हो जाता है 

4.
बिछड़ गए तो फिर भी मिलेंगे हम दोनों एक बार
 बिछड़ गए तो फिर भी मिलेंगे हम दोनों एक बार
या इस बसती दुनिया में या इसकी हदों से पार

लेकिन गम है तो बस इतना जब हम वहां मिलेंगे
एक दूसरे को हम कैसे तब पहचान सकेंगे
यही सोचते अपनी जगह पर चुप चुप खड़े रहेंगे

इससे पहले भी हम दोनों कहीं ज़रूर मिले थे
यह पहचान के नए शगूफे पहले कहाँ खिले थे

या इस बसती दुनिया में या इसकी हदों से पार
बिछड़ गए हैं मिल कर दोनों पहले भी एक बार
5.
डर के किसी से छुप जाता है जैसे सांप खजाने में 

डर के किसी से छुप जाता है जैसे सांप खजाने में
जर के जोर से ज़िंदा हैं सब ख़ाक के इस वीराने में

जैसे रस्म अदा करते हों शहरों की आबादी में
सुबह को घर से दूर निकल कर शाम को वापिस आने में

नीले रंग में डूबी आँखें खुली पड़ी थीं सब्जे पर
अक्स पडा था आसमान का शायद इस पैमाने में

दिल कुछ और भी सर्द हुआ है शाम-ए-शहर की रौनक में
कितनी जिया बे-सूद गई है शीशे के लफ्ज़ जलाने में

मैं तो 'मुनीर' आईने में खुद को तक कर हैरान हुआ
ये चेहरा कुछ और तरह था पहले किसी ज़माने में  
 

6.
ज़िंदा रहे तो क्या है जो मर जाएँ हम तो क्या
 ज़िंदा रहे तो क्या है जो मर जाएँ हम तो क्या
दुनिया में खामोशी से गुज़र जाएँ हम तो क्या

हस्ती ही अपनी क्या है ज़माने के सामने
एक ख़्वाब हैं जहां में बिखर जाएँ हम तो क्या

अब कौन मुन्तजिर है हमारे लिए वहां
शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या

दिल की खलिश तो साथ रहेगी तमाम उम्र
दरिया-ए-गम के पार उतर जाएँ हम तो क्या  


zindaa rahein to kyaa hai jo mar jaayeN ham to kyaa
duniyaa mein Khaamoshii se guzar jaayeiN ham to kyaa

hastii hii apanii kyaa hai zamaane ke saamane
ek Khvaab hain jahaaN mein bikhar jaayeiN ham to kyaa

ab kaun muntazir hai hamaare liye vahaaN
shaam aa ga_ii hai lauT ke ghar jaayeiN ham to kyaa

dil kii Khalish to saath rahegii tamaam umr
dariyaa-e-Gam ke paar utar jaaye.N ham to kyaa 

7.
गम का वो जोर अब अन्दर नहीं रहा 
 गम का वो जोर अब अन्दर नहीं रहा
इस उम्र में मैं इतना संवर नहीं रहा

इस घर में जो कशिश थी गई उन दिनों के साथ
इस घर का साया अब मेरे सर पर नहीं रहा

मुझ में ही कुछ कमी थी कि बेहतर मैं उन से था
मैं शहर में किसी के बराबर नहीं रहा

रहबर को उन के हाल की हो किस तरह खबर
लोगों के दरमियाँ वो आकर नहीं रहा

वापस न जा वहां कि तेरे शहर में 'मुनीर'
जो जिस जगह पे था वो वहां नहीं रहा 




Gam kaa vo zor ab mere andar nahii.n rahaa
is umr me.n mai.n itanaa sanvar nahii.n rahaa

is ghar me.n jo kashish thii ga_ii un dino.n ke saath
is ghar kaa saayaa ab mere sar par nahii.n rahaa

mujh me.n hii kuchh kamii thii ki behatar mai.n un se thaa
mai.n shahar me.n kisii ke baraabar nahii.n rahaa

rahabar ko un ko haal kii ho kis tarah Khabar
logo.n ke daramiyaa.N vo aakar nahii.n rahaa

vaapas na jaa vahaa.N ki tere shahar me.n 'Munir'
jo jis jagah pe thaa vo vahaa.N nahii.n rahaa
 

8.
मेरी दुआएं
 मेरी दुआएं बोहत पेचीदा हैं!
शाम का वक़्त है

दुआओं की मंजूरी का वक़्त है
मैं कैसी दुआओं को याद करूं

मेरी दुआएं पेचीदा बोहत हैं!
मेरे दिल में बोहत बे-असर दुआएं हैं

बोहत दुआओं के बजाये मेरे दिल मैं
एक दुआ होती तो कितना अच्छा था.


 Meri duayen
Meri duayen bohat pechida hain!
Shaam ka waqt hai

Duaon ki maanzoori ka waqt hai
Main kaisi duaon ko yaad karoon

Meri duayen pechida bohat hain!
Mere DIL main bohat be-asar duaien hain

Bohat duaon k bajaaye mere dil main
Ek DUA hoti tou kitna acha tha.

9.
 कैसे-कैसे लोग हमारे जी को जलाने आ जाते हैं 
कैसे-कैसे लोग हमारे जी को जलाने आ जाते हैं,
अपने-अपने ग़म के फ़साने हमें सुनाने आ जाते हैं।

मेरे लिए ये ग़ैर हैं और मैं इनके लिए बेगाना हूँ
फिर एक रस्म-ए-जहाँ है जिसे निभाने आ जाते हैं।

इनसे अलग मैं रह नहीं सकता इस बेदर्द ज़माने में
मेरी ये मजबूरी मुझको याद दिलाने आ जाते हैं।

सबकी सुनकर चुप रहते हैं, दिल की बात नहीं कहते
आते-आते जीने के भी लाख बहाने आ जाते हैं।

 
Munir Niazi : Roman Urdu Poetry
Urdu Poetry in English 
1.
bichhaR gaye to phir bhii milenge ham donoN ek baar
yaa is bastii dunyaa meN yaa iskii hadoN se paar

lekin Gham hai to bas itna jab ham vahaaN milenge
ek duusre ko ham kaise tab pahchaan sakenge
yahii sochte apnii jagah par chup chup khaRe rahenge

isse pahle bhii ham donoN kahiiN zaruur mile the
yeh pahchaan ke naye shaguufe pahle kahaaN khile the

yaa is bastii dunyaa meN ya iskii hadoN se paar
bichhaR gaye haiN mil kar donoN pahle bhii ek baar

 2.
Dar ke kisii se chhup jaataa hai jaise saanp Khazaane mein
zar ke zor se zindaa hain sab Khaak ke is viiraane mein

jaise rasm adaa karate ho.n shaharo.n kii aabaadii mein
subah ko ghar se duur nikal kar shaam ko vaapis aane mein

niile rang mein Duubii aankhein khulii padii thiin sabze par
aks padaa thaa aasmaan kaa shaayad is paimaane mein

dil kuchh aur bhii sard huaa hai shaam-e-shahar kii raunaq mein
kitanii ziyaa be-suud gaii hai shiishe ke lafz jalaane mein

main to 'Munir' aaiine mein Khud ko tak kar hairaan huaa
ye cheharaa kuchh aur tarah thaa pahale kisii zamaane mein 

 10.हमजुबां मेरे थे, इनके दिल मगर अच्छे न थे 

 हमजुबां मेरे थे, इनके दिल मगर अच्छे न थे
मंजिले अच्छी थी, मेरे हमसफ़र अच्छे न थे

जो खबर पहुचनी यहाँ तक असल सूरत में न थी
थी खबर अच्छी, मगर एहल-ए-खबर अच्छे न थे

बस्तियों की ज़िन्दगी में बेजारी का ज़ुल्म था
लोग अच्छे थे, वहाँ के एहल-ए-ज़र अच्छे न थे

हमको खुबान में नजर आती थी कितनी खूबियाँ
जिस क़दर अच्छे लगे थे, इस क़दर अच्छे न थे

इसलिए आई नहीं घर में मोहब्बत की हवा
इस मोहब्बत की हवा के मुन्तजिर अच्छे न थे

इक ख्याल-ए -हाम की मुर्शद था इन का ऐ 'मुनीर'
यानी अपने शहर में एहल-ए-नज़र अच्छे न थे
11.
तुझसे बिछड़ कर क्या हूँ मैं, अब बाहर आकर देख 

 तुझसे बिछड़ कर क्या हूँ मैं, अब बाहर आकर देख
हिम्मत है तो मेरी हालत, आँख मिला कर देख

शाम है गहरी, तेज़ हवा है, सर पे खड़ी है रात
रास्ता गए मुसाफिर का अब दिया जला कर देख

दरवाज़े के पास आ आ कर वापिस मुडती चाप
कौन है इस सुनसान गली में, पास बुला कर देख

शायद कोई देखने वाला हो जाए खैरान
कमरे की दीवारों पर कोई नक्श बना कर देख

तू भी मुनीर अब भरे जहान में मिल कर रहना सीख
बाहर से तो देख लिया, अब अन्दर जा कर देख

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