Sunday, 7 April 2013

देखा जब भी

देखा जब भी
गुजरे हुए सालो की तरफ
याद आया
मोहब्बतों का वो ज़माना

जब
दिल की तेज़ होती
धडकनों को छिपाते थे
सुबहो-शाम तुम्हारा ही
इंतज़ार करते
फिर भी ये बातें
तुन्हीं से छिपाते थे

और तुम भी तो
एक मेरी खातिर
सारे ज़माने से
कितना झूठ
बोल जाते थे

फुरसत में सोचो तो
लगता है
ये लम्हां
अभी अभी तो
गुज़रा है

मोहब्बतों में
यही दिलचस्प है, कि
किरदार तो मरते रहते है
लेकिन
इसकी दास्ताँ हमेशा
दोहराई जाती है
और यादें,
वो तो
सदाबहार जवां,
अमर बनी रहती है
-आराधना सिंह

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