Friday, 5 April 2013

वादा तो नहीं था

ऐसा कोई
वादा तो नहीं था
हमारे दरम्यां

फिर भी एक
उम्र गुज़ार दी
तेरे साथ यूँ ही
ख्वाबों-ख्यालों की
महफ़िलें सज़ा कर

किनारा करते रहे
हकीकत की
दुनिया से

मुलाकातें होती रही
तुझसे
तेरी यादों के साथ

अब तो आदत सी
हो गई है
हमेशा यूँ ही तेरे
साथ रहने ही

बिछड़ कर
बहुत दूर
आ गए है हम
फिर भी
मेरे दिल को
आज भी तुमसे
इतनी उम्मीदें
क्यूँ है?
-आराधना सिंह

2 comments:

  1. Aradhana ji,Kindly accept my greetings.I read some of your poems and found all of them very articulate and very emotionally touching. Question that you ask to yourself in Vada to na tha makes this poem a masterpiece.
    with regards
    Dr Sushil.

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    Replies
    1. जी, शुक्रिया…… मैंने पिछले छः महीनों से न कुछ लिखा न अनुवाद किया। आप सभी प्रतिक्रिया से प्रेरित हो कर अब इस काम को जारी रखूंगी।

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