Sunday, 7 April 2013

मेरे कदम

मेरे कदम
आज भी भटकते हुए
तुम्हारें दर की तरफ
क्यूँ जाते है ?

जैसे कि तुम
बुलाते हो मुझे,
मेरे कानों में सदा,
ये ही सदा
क्यूँ गूंजती है ?

दिल
सँभलने को तो
जैसे भी हो
संभल ही जाता है

लेकिन फिर
मुझे हरपल
तुम्हारा इंतज़ार
क्यूँ रहता है ?

मुझे हरदम
तुम्हारी इतनी याद
क्यूँ आती है ?
-आराधना सिंह

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