Monday, 23 July 2012

सुन ऐ गाफिल! सदा मेरी : इकबाल

छुपा कर आस्ती में बिजलिया रख दी है गर्दू ने
अनादिल बाग़ के गाफिल न बैठे आशियानों में |

सुन ऐ गाफिल! सदा मेरी, यह ऐसी चीख है जिसको
वजीफा जानकार पढ़ते है तायर बोस्तानों में |

वतन की फिक्र न कर नादाँ! मुसीबत आने वाली है

तेरी बरबादियों के मशवरे है आसमानों में |

ज़रा देख उसको जो कुछ हो रहा है, होनेवाला है

धरा क्या है भला अहदे-कुहन की दस्तानो में |

न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्तां वालो!

तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दस्तानों में |

~ इकबाल
मायने : गर्दू= आकाश, अनादिल=बुलबुल, सदा=आवाज, वजीफा=जाप, तायर=पक्षी, बोस्तानों=बाग़, अहदे-कुहन= पुराने ज़माने

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