Wednesday, 31 October 2012

Bekal Utsahi, बेकल उत्साही

Bekal Utsahi
1. 
जब से हम तबाह हो गये
 जब से हम तबाह हो गये
तुम जहाँपनाह हो गये

हुस्न पर निखार आ गया
आईने सियाह हो गये

आँधियों को कुछ पता नहीं
हम भी गर्द-ए-राह हो गये

दुश्मनों को चिट्ठियाँ लिक्खो
दोस्त ख़ैर-ख़्वाह हो गये
2.
 
मौला ख़ैर करे
 भीतर बसने वाला ख़ुद बाहर की सैर करे, मौला ख़ैर करे
इक सूरत की चाह में फिर काबे को दैर करे, मौला ख़ैर करे

इश्क़विश्क़ ये चाहतवाहत मनका बहलावा फिर मनभी अपना क्या
यार ये कैसा रिश्ता जो अपनों को ग़ैर करे, मौला ख़ैर करे

रेत का तोदा आंधी की फ़ौजों पर तीर चलाए, टहनी पेड़ चबाए
छोटी मछली दरिया में घड़ियाल से बैर करे, मौला ख़ैर करे

सूरज काफ़िर हर मूरत पर जान छिड़कता है, बिन पांव थकता है
मन का मुसलमाँ अब काबे की जानिब पैर करे, मौला खैर करे

फ़िक्र की चाक पे माटी की तू शक्ल बदलता है, या ख़ुद ही ढलता है
'बेकल' बे पर लफ़्ज़ों को तख़यील का तैर करे, मौला ख़ैर करे
3.
 
वो तो मुद्दत से जानता है मुझे
 वो तो मुद्दत से जानता है मुझे
फिर भी हर इक से पूछता है मुझे

रात तनहाइयों के आंगन में
चांद तारों से झाँकता है मुझे

सुब्‌ह अख़बार की हथेली पर
सुर्ख़ियों मे बिखेरता है मुझे

होने देता नही उदास कभी
क्या कहूँ कितना चाहता है मुझे

मैं हूँ 'बेकल' मगर सुकून से हूँ
उसका ग़म भी सँवारता है मुझे

Tuesday, 30 October 2012

Mazeed Amjad, मजीद अमजद

 Mazeed Amjad
June 29, 1914 – May 11, 1974
1.
पनवाडी
बूढा पनवाडी, उस के बालों में मांग है न्यारी
आँखों में जीवन की बुझती अग्नि की चिंगारी
नाम की इक हट्टी के अन्दर बोसीदा अलमारी
आगे पीतल के तख्ते पर उस की दुनिया सारी

पान, कत्था, सिगरेट, तम्बाकू, चूना, लोंग, सुपारी

उम्र उस बूढ़े पनवाडी की पान लगाते गुजरी
चूना घोलते, छालिया काटते, कत्था पिघलाते गुजरी
सिगरेट की खाली डिब्बियों के महल बनाते गुजरी
कितने शराबी मुश्तारियों से नैन मिलाते गुजरी

चंद कसीले पत्तों की गुत्थी सुलझाते गुजरी

कौन इस गुत्थी को सुलझाए, दुनिया एक पहेली
दो दिन एक फटी चादर में दुःख की आंधी झेली
दो कडवी साँसें लीं, दो चिलमों की राख उंडेली
और फिर उस के बाद न पूछों, खेल जो होनी खेली

पनवाडी की अर्थी उठी, बाबा, अल्लाह बेली

सुभ भजन की तान मनोहर झनन झनन लहराए
एक चिता की राख हवा के झोंकों में खो जाए
शाम को उस का कमसिन बाला बैठा पान लगाए
झन झन, ठन ठन, चूने वाली कटोरी बजती जाए

एक पतंगा दीपक पर जल जाए, दूसरा आये
2.
 
दिल ने एक एक दुःख सहा तनहा

 दिल ने एक एक दुःख सहा तनहा
अंजुमन अंजुमन रहा तनहा

ढलते सायों में तेरे कूचे से
कोई गुज़रा है बारहा, तनहा

तेरी आहट क़दम क़दम, और मैं
उस मईयत में भी रहा तनहा

कुहना यादों के बर्फ-ए-जारों से
एक आंसू बहा, बहा तनहा

डूबते साहिल के मोड़ पे दिल
इक खंडहर सा रहा सहा, तनहा

गूंजता रह गया खलाओं में
वक़्त का एक कहकहा, तनहा 

Tuesday, 23 October 2012

Obaidullah Aleem, उबैदुल्लाह अलीम

Obaidullah Aleem
1939-1997
1. 
मैं किसके नाम लिखूँ, जो अलम गुज़र रहे हैं

 मैं किसके नाम लिखूँ, जो अलम गुज़र रहे हैं
मेरे शहर जल रहे हैं, मेरे लोग मर रहे हैं

कोई गुंचा हो कि गुल, कोई शाख हो शजर हो
वो हवा-ए-गुलिस्तां है कि सभी बिखर रहे हैं

कभी रहमतें थीं नाज़िल इसी खित्ता-ए-ज़मीन पर
वही खित्ता-ए-ज़मीन है कि अज़ाब उतर रहे हैं

वही ताएरों के झुरमुट जो हवा में झूलते थे
वो फ़िज़ा को देखते हैं तो अब आह भर रहे हैं

कोई और तो नहीं है पस-ए-खंजर-आजमाई
हमीं क़त्ल हो रहे हैं, हमीं क़त्ल कर रहे हैं
2.
 
कुछ दिन तो बसो मेरी आँखों में

 कुछ दिन तो बसो मेरी आँखों में
फिर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्या

कोई रंग तो दो मेरे चेहरे को
फिर ज़ख्म अगर महकाओ तो क्या

जब हम ही न महके फिर साहब
तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्या

एक आईना था, सो टूट गया
अब खुद से अगर शरमाओ तो क्या

दुनिया भी वही और तुम भी वही
फिर तुमसे आस लगाओ तो क्या

मैं तनहा था, मैं तनहा हूँ
तुम आओ तो क्या, न आओ तो क्या

जब देखने वाला कोई नहीं
बुझ जाओ तो क्या, गहनाओ तो क्या

एक वहम है ये दुनिया इसमें
कुछ खो'ओ तो क्या और पा'ओ तो क्या

है यूं भी ज़ियाँ और यूं भी ज़ियाँ
जी जाओ तो क्या मर जाओ तो क्या
3.
 
तेरे प्यार में रुसवा होकर जाएँ कहाँ दीवाने लोग

 तेरे प्यार में रुसवा होकर जाएँ कहाँ दीवाने लोग
जाने क्या क्या पूछ रहे हैं यह जाने पहचाने लोग

हर लम्हा एहसास की सहबा रूह में ढलती जाती है
जीस्त का नशा कुछ कम हो तो हो आयें मैखाने लोग

जैसे तुम्हें हमने चाहा है कौन भला यूं चाहेगा
माना और बोहत आयेंगे तुमसे प्यार जताने लोग

यूं गलियों बाज़ारों में आवारा फिरते रहते हैं
जैसे इस दुनिया में सभी आए हों उम्र गंवाने लोग

आगे पीछे दायें बाएँ साए से लहराते हैं
दुनिया भी तो दश्त-ऐ-बला है हम ही नहीं दीवाने लोग

कैसे दुखों के मौसम आए, कैसी आग लगी यारो
अब सहराओं से लाते हैं फूलों के नजराने लोग

कल मातम बे-कीमत होगा, आज इनकी तौकीर करो
देखो खून-ऐ-जिगर से क्या क्या लिखते हैं अफ़साने लोग
4.
 
कुछ इश्क़ था कुछ मजबूरी थी, सो मैंने जीवन वार दिया

कुछ इश्क़ था कुछ मजबूरी थी, सो मैंने जीवन वार दिया
मैं कैसा ज़िंदा आदमी था, एक शख्स ने मुझको मार दिया

एक सब्ज़ शाख गुलाब की था, एक दुनिया अपने ख़्वाब की था
वो एक बहार जो आई नहीं उसके लिए सब कुछ वार दिया

ये सजा सजाया घर साथी, मेरी ज़ात नहीं मेरा हाल नहीं
ए काश तुम कभी जान सको, जो इस सुख ने आज़ार दिया
[aazaar=तकलीफ, torment, malaise]

मैं खुली हुई सच्चाई, मुझे जानने वाले जानते हैं
मैंने किन लोगों से नफरत की और किन लोगों को प्यार दिया

वो इश्क़ बोहत मुश्किल था, मगर आसान न था यूं जीना भी
उस इश्क़ ने ज़िंदा रहने का मुझे ज़र्फ दिया, पिन्दार दिया

मैं रोता हूँ और आसमान से तारे टूट कर देखता हूँ
उन लोगों पर जिन लोगों ने मेरी लोगों को आज़ार दिया

मेरे बच्चों को अल्लाह रखे, इन ताज़ा हवा के झोकों ने
मैं खुश्क पेड खिज़ां का था, मुझे कैसा बर्ग-ओ-बार दिया
5.
 
अजीज़ इतना ही रखो कि जी संभल जाये

 अजीज़ इतना ही रखो कि जी संभल जाये
अब इस क़दर भी ना चाहो कि दम निकल जाये

मोहब्बतों में अजब है दिलों का धड़का सा
कि जाने कौन कहाँ रास्ता बदल जाये

मिले हैं यूं तो बोहत, आओ अब मिलें यूं भी
कि रूह गरमी-ए-इन्फास* से पिघल जाये

मैं वोह चिराग़ सर-ए-राह्गुज़ार-ए-दुनिया
जो अपनी ज़ात की तनहाइयों में जल जाये

ज़िहे! वोह दिल जो तमन्ना-ए-ताज़ा-तर में रहे
खुशा! वोह उम्र जो ख़्वाबों में ही बहल जाये

हर एक लहज़ा यही आरजू यही हसरत
जो आग दिल में है वोह शेर में भी ढल जाये
[infaas=breaths]
[khushaa=lucky, how happy]
[zihe=excellent, like zihe-e-naseeb]
6.
 
तुम ऐसी मोहब्बत मत करना 

तुम ऐसी मोहब्बत मत करना
मेरा ख्वाबों में चेहरा देखो
और मेरे कायल हो जाओ
तुम ऐसी मोहब्बत मत करना

मेरे लफ़्ज़ों में वोह बात सुनो
जो  बात  लहू  की  चाहत  हो
फिर उस चाहत में खो जाओ
तुम ऐसी मोहब्बत मत करना
यह लफ्ज़ मेरे यह ख्वाब मेरे
हर चंद यह जिसम ओ जान ठहरे

पर ऐसे जिसम-ओ-जान तो नहीं
जो और किसी के पास न हों
फिर यह भी तो मुमकिन है, सोचो
यह लफ्ज़ मेरे, यह ख्वाब मेरे
सब झूठे हों

तुम ऐसी मोहब्बत मत करना
गर करो मोहब्बत तो ऐसी
जिस तरहां कोई सच्चाई की रद
हर झूठ को सच कर जाती  है 

 7.
अजीब थी वोह अजब तरहां चाहता था मैं


अजीब थी वोह अजब तरहां चाहता था मैं
वोह बात करती थी और खवाब देखता था मैं

विसाल का हो के उस के फ़िराक का मौसम
वोह लज्ज़तें थीं के अन्दर से टूटता था मैं

चढ़ा हुवा था वोह नशा के कम न होता था
हज़ार बार उभरता था डूबता था में

बदन का खेल थीं उस की मोहब्बतें लेकिन
जो भेद जिसम के थे जान से खोलता था मैं

फिर इस तरहां कभी सोया न इस तरहां जगा
के रूह नींद में थी और जगता था मैं

कहाँ शिकस्त हुई और कहाँ सिला पाया
किसी का इश्क किसी से निभाता था मैं

मैं एहल-ए-जार के मुकाबल में था फ़क़त शायर
मगर मैं जीत गया लफ्ज़ हारता था मैं
8.
बना गुलाब तो कांटे चुभा गया इक शख्स


बना गुलाब तो कांटे चुभा गया इक शख्स
हुआ चिराग तो घर ही जला गया इक शख्स

तमाम रंग मेरे और सारे ख्वाब मेरे
फ़साना कह के फ़साना बना गया इक शख्स

मैं किस हवा में उड़ू किस फ़ज़ा में लहराऊ
दुखों के जाल हर-सु बिछा गया इक शख्स

पलट सकूँ में न आगे बढ़ सकूँ जिस पर
मुझे ये कौन से रस्ते लगा गया इक शख्स

मुहब्बतें भी अजीब उसकी नफरतें भी कमाल
मेरी तरह का ही मुझ में समां गया इक शख्स

वो महताब था मरहम-बा-दस्त आया था
मगर कुछ और सिवा दिल दुखा गया इक शख्स

खुला ये राज़ के आइना-खाना है दुनिया
और इस में मुझ को तमाशा बना गया इक शख्स 

Thursday, 18 October 2012

शायर शहरयार , Shaharyar

शायर शहरयार 
 जन्म: 16 जून 1936
निधन: 13 फ़रवरी 2012
1.
इसे गुनाह कहें या कहें सवाब का काम

इसे गुनाह कहें या कहें सवाब का काम
नदी को सौंप दिया प्यास ने सराब का काम


हम एक चेह्रे को हर ज़ाविए से देख सकें
किसी तरह से मुकम्मल हो नक्शे-आब का काम


हमारी आँखे कि पहले तो खूब जागती हैं
फिर उसके बाद वो करतीं है सिर्फ़ ख़्वाब का काम


वो रात-कश्ती किनारे लगी कि डूब गई
सितारे निकले तो थे करने माहताब का काम


फ़रेब ख़ुद को दिए जा रहे हैं और ख़ुश हैं
उसे ख़बर है कि दुश्वार है हिजाब का काम
मायने: 

सराब = मरीचिका, जाविए = कोण, नक्शे-आब = जल्दी मिट जाने वाला निशान, हिजाब = पर्दा 
2.
कटेगा देखिए दिन जाने किस अज़ाब के साथ

कटेगा देखिए दिन जाने किस अज़ाब के साथ
कि आज धूप नहीं निकली आफ़ताब के साथ


तो फिर बताओ समंदर सदा को क्यूँ सुनते
हमारी प्यास का रिश्ता था जब सराब के साथ


बड़ी अजीब महक साथ ले के आई है
नसीम, रात बसर की किसी गुलाब के साथ


फ़िज़ा में दूर तक मरहबा के नारे हैं
गुज़रने वाले हैं कुछ लोग याँ से ख़्वाब के साथ


ज़मीन तेरी कशिश खींचती रही हमको
गए ज़रूर थे कुछ दूर माहताब के साथ 

3.
 ऐसे हिज्र के मौसम अब कब आते हैं

ऐसे हिज्र के मौसम अब कब आते हैं
तेरे अलावा याद हमें सब आते हैं

जज़्ब करे क्यों रेत हमारे अश्कों को
तेरा दामन तर करने अब आते हैं

अब वो सफ़र की ताब नहीं बाक़ी वरना
हम को बुलावे दश्त से जब-तब आते हैं

जागती आँखों से भी देखो दुनिया को
ख़्वाबों का क्या है वो हर शब आते हैं

काग़ज़ की कश्ती में दरिया पार किया
देखो हम को क्या-क्या करतब आते हैं

4.
  कहीं ज़रा सा अँधेरा भी कल की रात न था
 कहीं ज़रा सा अँधेरा भी कल की रात न था
गवाह कोई मगर रौशनी के साथ न था।

सब अपने तौर से जीने के मुद्दई थे यहाँ
पता किसी को मगर रम्ज़े-काएनात न था

कहाँ से कितनी उड़े और कहाँ पे कितनी जमे
बदन की रेत को अंदाज़-ए-हयात न था

मेरा वजूद मुनव्वर है आज भी उस से
वो तेरे क़ुब का लम्हा जिसे सबात न था

मुझे तो फिर भी मुक़द्दर पे रश्क आता है
मेरी तबाही में हरचंद तेरा हाँथ न था
 
5. 

किस्सा मेरे जुनूँ का बहुत याद आयेगा


किस्सा मेरे जुनूँ का बहुत याद आयेगा
जब-जब कोई चिराग हवा में जलाएगा

रातों को जागते है, इसी वास्ते कि ख्वाब
देखेगा बंद आँखे तो फिर लौट जायेगा

कब से बचा रखी है इक बूँद ओस की
किस रोज़ तू वफ़ा को मेरी आजमायेगा

कागज की कश्तियाँ भी बड़ी काम आयेगी
जिस दिन हमारे शहर में सैलाब आयेगा

दिल को यकीन है कि सर-ए-रहगुज़ार-ए-इश्क
कोई फर्सुदा दिल ये ग़ज़ल गुनगुनाएगा

मायने :
सर-ए-रहगुज़ार-ए-इश्क = प्रेम की राह में, फर्सुदा = उदास
6.

तेरी गली से दबे पांव क्यूँ गुजरता हूँ?


तेरी गली से दबे पांव क्यूँ गुजरता हूँ?
वो ऐसा क्या है? जिसे देखने से डरता हूँ

किसी उफ़क़ की ज़रूरत है मेरी आँखों को
सो खल्क आज नया आसमान करता हूँ

उतारना है मुझे कर्ज कितने लोगो का
ज़रा सुकून मिले तो हिसाब करता हूँ

अजब नहीं है कि किसी याद का गुहर मिल जाए
गये दिनों के समन्दर में फिर उतरता हूँ

बड़े जातन से, बड़े एहतिमाम से तुझको
भुला रहा हूँ, मोहब्बत का दम भी भरता हूँ

उफ़क़ = क्षितिज, खल्क = निर्माण करना, एहतिमाम = प्रबंध 

.

Saturday, 13 October 2012

आलम खुर्शीद

आलम खुर्शीद
1.
अपने घर में ख़ुद ही आग लगा लेते हैं

अपने घर में ख़ुद ही आग लगा लेते हैं
पागल हैं हम अपनी नींद उड़ा लेते हैं

जीवन अमृत कब हमको अच्छा लगता है

ज़हर हमें अच्छा लगता है, खा लेते हैं

क़त्ल किया करते हैं कितनी चालाकी से

हम ख़ंजर पर नाम अपना लिखवा लेते हैं

रास नहीं आता है हमको उजला दामन

रुसवाई के गुल-बूटे बनवा लेते हैं

पंछी हैं लेकिन उड़ने से डर लगता है

अक्सर अपने बाल ओ पर कटवा लेते हैं

सत्ता की लालच ने धरती बाँटी लेकिन

अपने सीने पर तमगा लटका लेते हैं

याद नहीं है मुझको भी अब दीन का रस्ता

नाम मुहम्मद का लेकिन अपना लेते हैं

औरों को मुजरिम ठहरा कर अब हम आलम

अपने गुनाहों से छुटकारा पा लेते हैं  
2.
 एक अजब सी दुनिया देखा करता था

एक अजब सी दुनिया देखा करता था
दिन में भी मैं सपना देखा करता था

एक ख्यालाबाद था मेरे दिल में भी
खुद को मैं शहजादा देखा करता था

सब्ज़ परी का उड़नखटोला हर लम्हे
अपनी जानिब आता देखा करता था

उड़ जाता था रूप बदलकर चिड़ियों के
जंगल, सेहरा, दरिया देखा करता था

हीरे जैसा लगता था इक-इक कंकर
हर मिट्टी में सोना देखा करता था

कोई नहीं था प्यासा रेगिस्तानो में
हर सेहरा में दरिया देखा करता था

हर जानिब हरियाली थी, ख़ुशहाली थी
हर चेहरे को हँसता देखा करता था

बचपन के दिन कितने अच्छे होते हैं
सब कुछ ही मैं अच्छा देखा करता था

आँख खुली तो सारे मंज़र ग़ायब हैं
बंद आँखों से क्या-क्या देखा करता था

3.
कोई मौक़ा नहीं मिलता हमें अब मुस्कुराने का

 कोई मौक़ा नहीं मिलता हमें अब मुस्कुराने का
बला का शौक़ था हम को कभी हँसने-हँसाने का

हमें भी टीस की लज्ज़त पसंद आने लगी है क्या
ख़याल आता नहीं ज़ख्मों प अब मरहम लगाने का

मेरी दीवानगी क्यों मुन्तज़िर है रुत बदलने की
कोई मौसम भी होता है जुनूँ को आज़माने का

उन्हें मालूम है फिर लौट आएंगे असीर उनके
खुला रहता है दरवाज़ा हमेशा क़ैदखाने का

चटानों को मिली है छूट रस्ता रोक लेने की
मेरी लहरों को हक़ हासिल नहीं है सर उठाने का

अकड़ती जा रही हैं रोज़ गर्दन की रगें आलम
हमें ए काश! आ जाए हुनर भी सर झुकाने का4.

4.
 क़ुर्बतो के बीच जैसे फ़ासला रहने लगे 

 क़ुर्बतो के बीच जैसे फ़ासला रहने लगे
यूँ किसी के साथ रहकर हम जुदा रहने लगे

किस भरोसे पर किसी से आश्नाई कीजिये
आशना चेहरे भी तो नाआशना रहने लगे

हर सदा ख़ाली मकानों से पलट आने लगी
क्या पता अब किस जगह अहलेवफ़ा रहने लगे

रंग ओ रौगन बाम ओ दर के उड़ ही जाते हैं जनाब
जब किसी के घर में कोई दूसरा रहने लगे

हिज्र कि लज़्ज़त जरा उस के मकीं से पूछिये
हर घड़ी जिस घर का दरवाज़ा खुला रहने लगे

इश्क़ में तहजीब के हैं और ही कुछ सिलसिले
तुझ से हो कर हम खफ़ा, खुद से खफ़ा रहने लगे

फिर पुरानी याद कोई दिल में यूँ रहने लगी
इक खंडहर में जिस तरह जलता दिया रहने लगे

आसमाँ से चाँद उतरेगा भला क्यों ख़ाक पर
तुम भी आलम वाहमों में मुब्तला रहने लगे 

5.
क्या अँधेरों से वही हाथ मिलाए हुए हैं

  क्या अँधेरों से वही हाथ मिलाए हुए हैं
जो हथेली पे चिराग़ों को सजाए हुए हैं

रात के खौफ़ से किस दर्जा परीशाँ हैं हम
शाम से पहले चिराग़ों को सजाए हुए हैं

कोई सैलाब न आ जाए इसी खौफ़ से हम
अपनी पलकों से समुन्दर को दबाए हुए हैं

कैसे दीवार-ओ- दर-ओ बाम की इज्ज़त होगी 

अपने ही घर में अगर लोग पराए हुए हैं

यूँ मेरी गोशानशीनी से शिकायत है उन्हें
जैसे वो मेरे लिए पलकें बिछाए हुए हैं

एक होने नहीं देती है सियासत लेकिन
हम भी दीवार प दीवार उठाए हुए हैं

बस यही जुर्म हमारा है कि हम भी आलम
अपनी आँखों में हसीं ख़्वाब सजाए हुए हैं

6.
 तोड़ के इसको वर्षो रोना होता है
 तोड़ के इसको वर्षो रोना होता है
दिल शीशे का एक खिलौना होता है

महफ़िल में सब हँसते-गाते रहते है
तन्हाई में रोना-धोना होता है

कोई जहाँ से रोज़ पुकारा करता है
हर दिल में इक ऐसा कोना होता है

बेमतलब कि चालाकी हम करते हैं
हो जाता है जो भी होना होता है

दुनिया हासिल करने वालों से पूछो
इस चक्कर में क्या-क्या खोना होता है

सुनता हूँ उनको भी नींद नहीं आती
जिनके घर में चांदी-सोना होता है

खुद ही अपनी शाखें काट रहे हैं हम
क्या बस्ती में जादू-टोना होता है

काँटे-वाँटे चुभते रहते हैं आलम
लेकिन हम को फूल पिरोना होता है

Friday, 12 October 2012

खुमार बाराबंकवी

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शायर खुमार बाराबंकवी 
 जन्म: 15 सितंबर 1919
निधन: 19 फ़रवरी 1999
परिचय:  ख़ुमार बाराबंकवी साब हिंदी फिल्मों के जाने-माने गीतकार है. तलत महमूद साब का गाया गीत 'तस्वीर बनता हूँ, तस्वीर नहीं बनती' सहित 'अपने किये पे कोई परेशान हो गया', 'एक दिल और तलबगार है बहुत', 'दिल की महफ़िल सजी है चले आइए', 'साज हो तुम आवाज़ हूँ मैं','भुला नहीं देना', 'दर्द भरा दिल भर-भर आए', 'आग लग जाए इस ज़िन्दगी को, मोहब्बत की बस इतनी दास्ताँ है', 'आई बैरन बयार, कियो सोलह सिंगार', जैसे गीत लिखे जो खासे लोकप्रिय हए।  
1.
न हारा है इश्क, न दुनिया थकी है

न हारा है इश्क, न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है, हवा चल रही है

सुकून ही सुकून है खुशी ही खुशी है
तेरा गम सलामत, मुझे क्या कमी है

वो मौज़ूद है और उनकी कमी है
मुहब्बत भी तहाई-ए-दायमी है

खटक गुदगुदगी का मज़ा दे रही है
जिसे इश्क कहते है शायद यही है

चरागों के बदले मकान जल रहे हैं
नया है ज़माना, नई रौशनी है

अरे ओ जफ़ाओं पे चुप रहने वालो
खामोशी जफ़ाओं की ताईद भी है

मेरे रहबर मुझ को गुमराह कर दे
सूना है कि मंजिल करीब आ गई है

ख़ुमार-ए-बलानौश तू और तौबा
तुझे ज़ाहिदो की नज़र लग गई है
2.
अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं

अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं
मेरी याद से जंग फ़रमा रहे हैं

इलाही मेरे दोस्त हों ख़ैरियत से
ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं

बहुत ख़ुश हैं गुस्ताख़ियों पर हमारी
बज़ाहिर जो बरहम नज़र आ रहे हैं

ये कैसी हवा-ए-तरक्की चली है
दीये तो दीये दिल बुझे जा रहे हैं

बहिश्ते-तसव्वुर के जलवे हैं मैं हूँ
जुदाई सलामत मज़े आ रहे हैं

बहारों में भी मय से परहेज़ तौबा
'ख़ुमार' आप काफ़िर हुए जा रहे हैं
3.
 ऐ मौत उन्हें भुलाए ज़माने गुज़र गए

ऐ मौत उन्हें भुलाए ज़माने गुज़र गए
आ जा कि ज़हर खाए ज़माने गुज़र गए

ओ जाने वाले! आ कि तेरे इंतज़ार में
रस्ते को घर बनाए ज़माने गुज़र गए

ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास
सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए

क्या लायक़-ए-सितम भी नहीं अब मैं दोस्तों
पत्थर भी घर में आए ज़माने गुज़र गए

जाने-बहार फूल नहीं आदमी हूँ मैं
आ जा कि मुस्कुराए ज़माने गुज़र गए

क्या-क्या तवक्कोअत थी आहों से ऐ 'ख़ुमार'
यह तीर भी चलाए ज़माने गुज़र गए 
4.
मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया

मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया
तुम क्यों उदास हो गए क्या याद आ गया

कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख़्तसर मगर
कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया

वाइज़ सलाम ले कि चला मैकदे को मैं
फिरदौस-ए-गुमशुदा का पता याद आ गया

बरसे बगैर ही जो घटा घिर के खुल गई
एक बेवफ़ा का अहद-ए-वफ़ा याद आ गया

मांगेंगे अब दुआ के उसे भूल जाएँ हम
लेकिन जो वो बवक़्त-ऐ-दुआ याद आ गया

हैरत है तुम को देख के मस्जिद में ऐ 'ख़ुमार'
क्या बात हो गई जो ख़ुदा याद आ गया   

4.
 वो खफा है तो कोई बात नहीं

वो खफा है तो कोई बात नहीं
इश्क मोहताज-ए-इल्त्फाक नहीं

दिल बुझा हो अगर तो दिन भी है रात नहीं
दिन हो रोशन तो रात रात नहीं

दिल-ए-साकी मैं तोड़ू-ए-वाइल
जा मुझे ख्वाइश-ए-नजात नहीं

ऐसी भूली है कायनात मुझे
जैसे मैं जिस्ब-ए-कायनात नहीं

पीर की बस्ती जा रही है मगर
सबको ये वहम है कि रात नहीं

मेरे लायक नहीं हयात "ख़ुमार"
और मैं लायक-ए-हयात नहीं 

5.
 सुना है वो हमें भुलाने लगे है

सुना है वो हमें भुलाने लगे है
तो क्या हम उन्हे याद आने लगे है

हटाए थे जो राह से दोस्तो की
तो पत्थर मेरे घर में आने लगे है

ये कहना थ उनसे मुहब्ब्त हौ मुझको
ये कहने मे मुझको ज़माने लगे है

कयामत यकीनन करीब आ गई है
"ख़ुमार" अब तो मस्ज़िद में जाने लगे है

Sunday, 7 October 2012

अहमद फ़राज़

अहमद फ़राज़ 
January 12, 1931-August 25, 2008
1.
दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभानेवाला
 
दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभानेवाला 
वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़मानेवाला 

अब इसे लोग समझते हैं गिरफ्तार मेरा 
सख्त नदीम है मुझे दाम में लानेवाला

क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे इस से 
वो जो इक शख्स है मूँह फेर के जानेवाला 

तेरे होते हुए आ जाती थी सारी दुनिया 
आज तनहा हूँ तो कोई नहीं आनेवाला 

मुन्तजिर किस का हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे में 
कौन आयेगा यहाँ कौन है आनेवाला 

में ने देखा है बहारों में चमन को जलाते 
है कोई ख़्वाब की ताबीर बतानेवाला 

क्या खबर थी जो मेरी जान में घुला है इतना 
है वही मुझ को सर-ए-दार भी लाने वाला 

तुम तक़ल्लुफ़ को भी इखलास समझते हो 'फ़राज़'
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलानेवाला 
2.
 इस से पहले के बेवफा हो जाएँ

इस से पहले के बेवफा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ  ?

तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ

हम भी मजबूरिओं का उज़र करें
फिर कहीं और मुब्तला हो जाएँ

अब के गर तू मिले तो हम तुझसे
ऐसे लिपटें तेरी क़बा हो जाएँ

बंदगी हम ने छोड़ दी है “फ़राज़”
क्या करें जब लोग खुदा हो जाएँ
3.
जब भी दिल खोल के रोये होंगे


जब भी दिल खोल के रोये होंगे
लोग आराम से सोये होंगे

बाज़ औकात बा मजबूरी-ए-दिल
हम तो क्या आप भी रोये होंगे

सुबह तक दस्त-ए-सबा ने क्या क्या
फूल काँटों में पिरोये होंगे

वो सफीने जिन्हें तूफ़ान न मिले
न-खुदाओं ने डुबोएं होंगे

क्या अजब है वो मिले भी हों “फ़राज़”
हम किसी ध्यान में खोये होंगे
 
4.
मैं लोगों से मुलाकातों के 

मैं लोगों से मुलाकातों के
लम्हे याद रखता हूँ

मैं बातें भूल भी जाऊ
तो लहजे याद रखता हूँ

सर-ए-महफ़िल निगाहें मुझ पे
जिन लोगों की पड़ती है

निगाहों के हवाले से
वो चेहरे याद रखता हूँ

ज़रा सा हट के चलता हूँ
ज़माने की रिवायत से

के जिन पे बोझ मैं डालूं
वो कांधे याद रखता हूँ  

5.
कभी मोम बन के पिघल गया कभी गिरते गिरते सँभल गया 

कभी मोम बन के पिघल गया कभी गिरते गिरते सँभल गया
वो बन के लम्हा गुरेज़ का मेरे पास से निकल गया

उसे रोकता भी तो किस तरह के वो शख़्स इतना अजीब था
कभी तड़प उठा मेरी आह से, कभी अश्क़ से न पिघल सका

सरे-राह मिला वो अगर कभी तो नज़र चुरा के गुज़र गया
वो उतर गया मेरी आँख से, मेरे दिल से क्यूँ न उतर सका

वो चला गया जहाँ छोड़ के मैं वहाँ से फिर न पलट सका
वो सँभल गया था 'फ़राज़' मगर मैं बिखर के न सिमट सका
6.
 

मैं दीवाना सही पर बात सुन ऐ हमनशीं मेरी

 मैं दीवाना सही पर बात सुन ऐ हमनशीं मेरी
कि सबसे हाले-दिल कहता फिरूँ, आदत नहीं मेरी

तअम्मुल क़त्ल में तुझको मुझे मरने की जल्दी थी
ख़ता दोनों की है ,उसमें कहीं तेरी कहीं मेरी

भला क्यों रोकता है मुझको नासेह गिर्य: करने से
कि चश्मे-तर मेरा है, दिल मेरा है, आस्तीं मेरी

मुझे दुनिया के ग़म और फ़िक्र उक़बा की तुझे नासेह
चलो झगड़ा चुकाएँ आसमाँ तेरा ज़मीं मेरी

मैं सब कुछ देखते क्यों आ गया दामे-मुहब्बत में
चलो दिल हो गया था यार का, आंखें तो थीं मेरी

‘फ़राज़’ ऐसी ग़ज़ल पहले कभी मैंने न लिक्खी थी
मुझे ख़ुद पढ़के लगता है कि ये काविश नहीं मेरी
7.
 

तुझसे बिछड़ के हम भी मुकद्दर के हो गये 

तुझसे बिछड़ के हम भी मुकद्दर के हो गये
फिर जो भी दर मिला है उसी दर के हो गये

फिर यूँ हुआ के गैर को दिल से लगा लिया
अंदर वो नफरतें थीं के बाहर के हो गये

क्या लोग थे के जान से बढ़ कर अजीज थे
अब दिल से मेह नाम भी अक्सर के हो गये

ऐ याद-ए-यार तुझ से करें क्या शिकायतें
ऐ दर्द-ए-हिज्र हम भी तो पत्थर के हो गये

समझा रहे थे मुझ को सभी नसेहान-ए-शहर
फिर रफ्ता रफ्ता ख़ुद उसी काफिर के हो गये

अब के ना इंतेज़ार करें चारगर का हम
अब के गये तो कू-ए-सितमगर के हो गये

रोते हो एक जजीरा-ए-जाँ को "फ़राज़" तुम
देखो तो कितने शहर समंदर के हो गये

8.
यूँ तुझे ढूँढ़ने निकले के न आए ख़ुद भी

यूँ तुझे ढूँढ़ने निकले के न आए ख़ुद भी
वो मुसाफ़िर कि जो मंज़िल थे बजाए ख़ुद भी

कितने ग़म थे कि ज़माने से छुपा रक्खे थे
इस तरह से कि हमें याद न आए खुद भी

ऐसा ज़ालिम कि अगर ज़िक्र में उसके कोई ज़ुल्म
हमसे रह जाए तो वो याद दिलाए ख़ुद भी

लुत्फ़ तो जब है तअल्लुक़ में कि वो शहरे-जमाल
कभी खींचे कभी खिंचता चला आए ख़ुद भी

ऐसा साक़ी हो तो फिर देखिए रंगे-महफ़िल
सबको मदहोश करे होश से जाए ख़ुद भी

यार से हमको तगाफ़ुल का गिला है बेजा
बारहा महफ़िले-जानाँ से उठ आए ख़ुद भी 

9.
आज फिर दिल ने कहा आओ भुला दें यादें

 आज फिर दिल ने कहा आओ भुला दें यादें
ज़िंदगी बीत गई और वही यादें-यादें

जिस तरह आज ही बिछड़े हों बिछड़ने वाले
जैसे इक उम्र के दुःख याद दिला दें यादें

काश मुमकिन हो कि इक काग़ज़ी कश्ती की तरह
ख़ुदफरामोशी के दरिया में बहा दें यादें

वो भी रुत आए कि ऐ ज़ूद-फ़रामोश मेरे
फूल पत्ते तेरी यादों में बिछा दें यादें

जैसे चाहत भी कोई जुर्म हो और जुर्म भी वो
जिसकी पादाश में ताउम्र सज़ा दें यादें

भूल जाना भी तो इक तरह की नेअमत है ‘फ़राज़’
वरना इंसान को पागल न बना दें यादें  

10.
 ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे 

 ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे

हमसफ़र चाहिये हुजूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे

लब कुशां हूं तो इस यकीन के साथ
कत्ल होने का हौसला है मुझे

दिल धडकता नहीं सुलगता है
वो जो ख्वाहिश थी आबला है मुझे

कौन जाने कि चाहतो में फ़राज़
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे 

11.
  बुझा है दिल तो ग़मे-यार अब कहाँ तू भी

 बुझा है दिल तो ग़मे-यार अब कहाँ तू भी
मिसाले साया-ए-दीवार अब कहाँ तू भी

बजा कि चश्मे-तलब भी हुई तही कीस
मगर है रौनक़े-बाज़ार अब कहाँ तू भी

हमें भी कारे-जहाँ ले गया है दूर बहुत
रहा है दर-पए आज़ार अब कहाँ तू भी

हज़ार सूरतें आंखों में फिरती रहती हैं
मेरी निगाह में हर बार अब कहाँ तू भी

उसी को अहद फ़रामोश क्यों कहें ऐ दिल
रहा है इतना वफ़ादार अब कहाँ तू भी

मेरी गज़ल में कोई और कैसे दर आए
सितम तो ये है कि ऐ यार अब कहाँ तू भी

जो तुझसे प्यार करे तेरी नफ़रतों के सबब
‘फ़राज़’ ऐसा गुनहगार अब कहाँ तू भी 

12.
 मैं तो मकतल में भी किस्मत का सिकंदर निकला  

मैं तो मकतल में भी किस्मत का सिकंदर निकला 
कुर्रा-ए-फाल मेरे नाम का अक्सर निकला

था जिन्हें जौम वो दरया भी मुझी में डूबे
मैं के सेहरा नज़र आता था, समंदर निकला

मैंने उस जान-ए-बहारां को भी बोहत याद किया
जब कोई फूल मेरी शाख-ए-हुनर पर निकला

शहर वालों की मुहब्बत का मैं कायल हूँ मगर
मैंने जिस हाथ को चूमा, वोही खंज़र निकला

तू यहीं हार गया था मेरे बुझदिल दुश्मन
मुझ से तन्हा के मुकाबिल, तेरा लश्कर निकला

मैं के सेहरा-ए-मुहब्बत का मुसाफिर था 'फ़राज़'
एक झोंका था के खुशबू के सफ़र पर निकला 

13.
जाने क्यों शिकस्त का अज़ाब लिए फिरता हूँ 
 जाने क्यों शिकस्त का अज़ाब लिए फिरता हूँ
मैं क्या हूँ और क्या लिए फिरता हूँ

उस ने इक बार किया था सवाल-ए-मुहब्बत
मैं हर एक लम्हा वफ़ा का ख्वाब लिए फिरता हूँ

उस ने पूछा कब से नहीं सोये
मैं तब से रत जगों का हिसाब लिए फिरता हूँ

उसकी ख्वाहिश थी कि मेरी आँखों में पानी दिखे
मैं उस वक्त से आंसू का सैलाब लिए फिरता हूँ

अफ़सोस के वो फिर भी मेरा न हुआ "फ़राज़"
मैं जिस की आरजू की किताब लिए फिरता हूँ
 

14.
क्यूँ तबीयत कहीं ठहरती नहीं

 क्यूँ तबीयत कहीं ठहरती नहीं
दोस्ती तो उदास करती नहीं

हम हमेशा के सैर-चश्म सही
तुझ को देखें तो आँख भरती नहीं

शब-ए-हिज्राँ भी रोज़-ए-बद की तरह
कट तो जाती है पर गुज़रती नहीं

ये मोहब्बत है, सुन, ज़माने, सुन!
इतनी आसानियों से मरती नहीं

जिस तरह तुम गुजारते हो "फ़राज़"
जिंदगी उस तरह गुज़रती नहीं
15.
 
जब तेरा दर्द मेरे साथ वफ़ा करता है

 जब तेरा दर्द मेरे साथ वफ़ा करता है
एक समन्दर मेरी आँखों से बहा करता है

उसकी बातें मुझे खुश्बू की तरह लगती है
फूल जैसे कोई सहरा में खिला करता है

मेरे दोस्त की पहचान ये ही काफ़ी है
वो हर शख़्स को दानिस्ता ख़फ़ा करता है

और तो कोई सबब उसकी मोहब्बत का नहीं
बात इतनी है के वो मुझसे जफ़ा करता है

जब ख़ज़ाँ आएगी तो लौट आएगा वो भी 'फ़राज़'
वो बहारों में ज़रा कम ही मिला करता है

16.
तड़प उठूँ भी तो ज़ालिम तेरी दुहाई न दूँ 

तड़प उठूँ भी तो ज़ालिम तेरी दुहाई न दूँ 
मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हूँ फिर भी तुझे दिखाई न दूँ 

तेरे बदन में धड़कने लगा हूँ दिल की तरह 
ये और बात के अब भी तुझे सुनाई न दूँ 

ख़ुद अपने आपको परखा तो ये नदामत है 
के अब कभी उसे इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई न दूँ 

मुझे भी ढूँढ कभी मह्व-ए-आईनादारी 
मैं तेरा अक़्स हूँ लेकिन तुझे दिखाई न दूँ
~अहमद फ़राज़

Thursday, 4 October 2012

अमजद इस्लाम अमजद , Amjad Islam Amjad

 Amjad Islam Amjad
 Born: August 4, 1944
1. 
मैं अज़ल की शाख से टूटा हुआ
 मैं अज़ल की शाख से टूटा हुआ
फिर रहा हूँ आज तक भटका हुआ

देखता रहता है मुझको रात दिन
कोई अपने तख़्त पर बैठा हुआ

चाँद तारे दूर पीछे रह गए
मैं कहाँ पर आ गया उड़ता हुआ

बंद खिड़की से हवा आती रही
एक शीशा था कहीं टूटा हुआ

खिडकियों में, कागजों में, मेज़ पर
सारे कमरे में है वो फैला हुआ

अपने माजी का इक समुंदर चाहिए
इक खजाना है यहाँ डूबा हुआ

दोस्तों ने कुछ सबक ऐसे दिए
अपने साये से भी हूँ सहमा हुआ

किसी कि आहट आते आते रुक गयी
किस ने मेरा साँस है रोका हुआ
2.
 
कहाँ आके रुकने थे रास्ते
 कहाँ आके रुकने थे रास्ते , कहाँ मोड़ था उसे भूल जा
वो जो मिल गया उसे याद रख, जो नहीं मिला उसे भूल जा

वो तेरे नसीब की बारिशें किसी और छत पे बरस गई
दिल-ए-बेखबर मेरी बात सुन, उसे भूल जा उसे भूल जा

मैं तो गुम था तेरे ही ध्यान में, तेरी आस में, तेरे गुमान में
हवा कह गई मेरे कान में, मेरे साथ आ उसे भूल जा

तुझे चाँद बन के मिला था जो, तेरे साहिलों पे खिला था जो
वो था एक दरिया विसाल का, सो उतर गया उसे भूल जा 

3.
न शिकायतें न गिला करे
  न शिकायतें न गिला करे
कोई ऐसा शख्स हुआ करे

जो मेरे लिए ही सजा करे
मुझ ही से बातें किया करे

कभी रोये जाये वो बेपनाह
कभी बेतहाशा उदास हो

कभी चुपके चुपके दबे क़दम
मेरे पीछे आ कर हंसा करे

मेरी कुर्बतें, मेरी चाहतें
कोई याद करे क़दम क़दम

मैं तवील सफ़र में हूँ अगर
मेरी वापसी की दुआ करे


Na shikayaten na gila kare
koi aisa shakhs hua kare

jo mere liye hi saja kare
mujh hi se baten kiya kare

kabhi roye jaye wo bepanah
kabhi betahasha udas ho

kabhi chupke chupke dabe qadam
mere piche aa kar hansa kare

meri qurbaten meri chahaten
koi yaad kare qadam qadam

main tavil safar mein hun agar
meri vapasi ke dua kare

4.
ज़िंदगी के मेले में

ज़िंदगी के मेले में
ख्वाहिशों के रेले में
तुम से क्या कहें जाना
इस क़दर झमेले में
वक़्त की रवानी है
बख्त की गिरानी है
सख्त बेज़मीनी है
सख्त लामकानी है
हिज्र के समंदर में
तख़्त और तख्ते की
एक ही कहानी है
तुम को जो सुनानी है

बात गो ज़रा सी है
बात उम्र भर की है
उम्र भर की बातें कब
दो घड़ी में होती हैं
दर्द के समंदर में
अनगिनत जजीरें हैं
बेशुमार मोटी हैं
आँख के दरीचे में
तुम ने जो सजाया था
बात उस दिए की है
बात उस गिले की है
जो लहू की खिलवत में
चोर बन के आता है
लफ्ज़ के फ़ासीलों पर
टूट टूट जाता है

ज़िंदगी से लम्बी है
बात रत-जगे की है
रास्ते में कैसे हो
बात तखालिये की है
तखालिये की बातों में
गुफ्तगू इजाफी है
प्यार करने वालों को
इक निगाह काफी है
हो सके तो सुन जाओ
एक दिन अकेले में
तुम से क्या कहें जानां
इस क़दर झमेले में


zindagii ke mele men
Khvaahishon ke rele men
tum se kyaa kahen jaanaa
is qadar jhamele men
vaqt kii ravaanii hai
baKht kii giraanii hai
saKht bezamiinii hai
saKht laamakaanii hai
hijr ke samandar men
taKht aur taKhte kii
ek hii kahaanii hai
tum ko jo sunaanii hai

baat go zaraa sii hai
baat umr bhar kii hai
umr bhar kii baaten kab
do ghadii men hotii hain
dard ke samandar men
anginat jaziiren hain
beshumaar motii hain
aankh ke dariiche men
tum ne jo sajaayaa thaa
baat us diye kii hai
baat us gile kii hai
jo lahuu kii Khilvat men
chor ban ke aataa hai
lafz ke fasiilon par
Tuut tuut jaataa hai

zindagii se lambii hai
baat rat-jage kii hai
raaste men kaise ho
baat taKhaliye kii hai
taKhaliye kii baaton men
guftaguu izaafii hai
pyaar karane vaalon ko
ik nigaah kaafii hai
ho sake to sun jaao
ek din akele men
tum se kyaa kahen jaanaaN
is qadar jhamele men

Meanings:
[Khvaahish = desire; baKht = fate; giraanii = deficiency]
[laamakaanii = homelessness/having no roots; hijr = separation]
[taKht = throne; taKhtii = plank of wood]
[anginat = countless; jaziiraa = island]
[beshumaar = innumerable; dariichaa = window]
[fasiil = ramparts; taKhaliyaa = solitude]
[guftaguu = conversation; izaafii = additional/extra]

5.
 खुद अपने लिए बैठ के सोचेंगे किसी दिन

खुद अपने लिए बैठ के सोचेंगे किसी दिन
यूँ है के तुझे भूल के देखेंगे किसी दिन

भटके हुए फिरते हैं कई लफ्ज़ जो दिल में
दुनिया ने दिया वक़्त तो लिक्खेंगे किसी दिन

हिल जायेंगे इक बार तो अर्शों के दर-ओ-बाम
ये खाकनशीं लोग जो बोलेंगे किसी दिन

आपस की किसी बात का मिलता ही नहीं वक़्त
हर बात ये कहे हैं के बैठेंगे किसी दिन

ऐ जान तेरी याद के बे-नाम परिंदे
शाखों पे मेरे दर्द की उतरेंगे किसी दिन

जाती है किसी झील की गहराई कहाँ तक
आँखों में तेरी डूब के देखेंगे किसी दिन

खुशबू से भरी शाम में जुगनू के कलम से
इक नज़्म तेरे वास्ते लिक्खेंगे किसी दिन

सोयेंगे तेरी आंख की खल्वत में किसी रात
साये में तेरी ज़ुल्फ़ के जागेंगे किसी दिन

खुशबू की तरह, असल-ए-सबा खाक नुमा से
गलियों से तेरे शहर की गुजरेंगे किसी दिन

‘अमजद’ है यही अब के कफ़न बांध के सर से
उस शहर-ए-सितमगर में जायेंगे किसी दिन   

 6.
मोहब्बत क्या है?

 
मुहब्बत ऐसा नगमा है
ज़रा भी झोल हो लय में
तो सुर कायम नहीं होता

मुहब्बत ऐसा शोला है
हवा जैसी भी चलती हो
कभी मद्धम नहीं होता

मुहब्बत ऐसा रिश्ता है
के जिसमे बंधने वालों के
दिलों में गम नहीं होता

मुहब्बत ऐसा पौधा है
जो तब भी सब्ज़ रहता है
के जब मौसम नहीं होता

मुहब्बत ऐसा रास्ता  है
अगर पैरों में लर्जिश हो
तो ये महरम नहीं होता

मुहब्बत ऐसा दरिया है
के बारिश रूठ भी जाये
तो पानी कम नहीं होता
7.
 
गुज़रे हैं तेरे बाद भी कुछ लोग इधर से
 गुज़रे हैं तेरे बाद भी कुछ लोग इधर से
लेकिन तेरी खुशबू न गई राहगुज़र से

क्यूँ डूबती बुझती हुई आँखों में है रौशनी
रातों को शिकायत है तो इतनी है सहर से

लरज़ा था बदन उसका मेरे हाथ से छू कर
देखा था मुझे उसने अजब मस्त नज़र से

क्या ठान के निकला था, कहाँ आ के पड़ा है
पूछे तो कोई इस दिल-ए-शर्मिंदा सफ़र से

आया है बहुत देर में वो शख्स पर उस को
जज़्बात की इस भीड़ में देखूँ मैं किधर से

हम रिजक-ए-गुज़रगाह तो खुश्क थे लेकिन 
वोह लोग जो निकले थे हवा देख के घर से

ऐसा तो नहीं मेरी तरह सर्व-ए-लब-ए-जू
क़दमों पे खड़ा हो किसी उफ्ताद के डर से

दिन थे के हमें शहर-ए-बदन तक की खबर थी
और अब नहीं आगाह तेरे खैर खबर से

अमजद न क़दम रोक के वोह दूर की मंजिल
निकलेगी किसी रोज़ इसी गर्द-ए-सफ़र से
8.
 
मोहब्बत क्या है? 
मुहब्बत ऐसा नगमा है
ज़रा भी झोल हो लय में
तो सुर कायम नहीं होता

मुहब्बत ऐसा शोला है
हवा जैसी भी चलती हो
कभी मद्धम नहीं होता

मुहब्बत ऐसा रिश्ता है
के जिसमे बंधने वालों के
दिलों में गम नहीं होता

मुहब्बत ऐसा पौधा है
जो तब भी सब्ज़ रहता है
के जब मौसम नहीं होता

मुहब्बत ऐसा रास्ता  है
अगर पैरों में लर्जिश हो
तो ये महरम नहीं होता

मुहब्बत ऐसा दरिया है
के बारिश रूठ भी जाये
तो पानी कम नहीं होता

Wednesday, 3 October 2012

Dost dost na raha with English Translation

Singer: Mukesh
Movie: Sangam
Lyricist: Shailendra
Music: Shankar, Jaikishan


Dost dost na raha with English Translation

दोस्त दोस्त ना रहा, प्यार प्यार ना रहा
dost dost naa raha, pyar pyar naa raha
Friend is no there, Love is no there

ज़िंदगी हमें तेरा (ऐतबार ना रहा - 2)
zindagee hame teraa (aitbar naa raha - 2)
Life was your believe, your believe no there
or
O life, now i have no faith in you.


अमानतें मैं प्यार की,गया था जिसको सौंप कर
amanate mai pyar kee, gaya tha jisako saunp kar
My love leave away has you

वो मेरे दोस्त तुम ही थे, तुम्हीं तो थे
woh mere dost tum hee the, tumhee toh the
who was you friend, also you was

जो ज़िंदगी की राह मे, बने थे मेरे हमसफ़र
jo jindagee kee rah me bane the mere hamsafar
who was made my partner

वो मेरे दोस्त तुम ही थे, तुम्हीं तो थे
woh mere dost tum hee the, tumhee toh the
who was you friend, also you was

सारे भेद खुल गए, राज़दार ना रहा
sare bhed khul gaye, rajdar naa raha
all secretes key out, no any confidential

ज़िंदगी हमें तेरा,(ऐतबार ना रहा-2)
zindagee hame teraa (aitbar naa raha - 2)
Life was your believe, your believe no there

दोस्त दोस्त ना रहा ...
dost dost naa raha.....
Friend is no there, Love is no there

सफ़र के वक़्त में पलक पे, मोतियों को तौलती
safar ke wakt me palak pe motiyo ko taulti
at the time of travel count your lashes like the pearls

वो तुम ना थी तो कौन था, तुम्हीं तो थी
woh tum naa thee toh kaun tha tumhee toh thee
if you nor so who was that

नशे की रात ढल गयी, अब खुमार ना रहा
nashe kee rat dhhal gayee abb khumar naa raha
flowed the intoxication now drunkenness no there

ज़िंदगी हमें तेरा, (ऐतबार ना रहा-2)
zindagee hame teraa (aitbar naa raha - 2)
Life was your believe, your believe no there

दोस्त दोस्त ना रहा ...
dost dost naa raha.....
Friend is no there, Love is no there

Tuesday, 2 October 2012

Chalo dildar chalo with English Translation

Movie: Pakeeza
Singer: Rafi and Lata
Shayar: Kaif Bhopali

Chalo dildar chalo with English Translation

चलो दिलदार, चलो
chalo dildar chalo
Let's go, beloved, let's go

चाँद के पार चलो
chand ke paar chalo
Let's go to the other side of the moon

हम है तैयार,चलो
Hum hain taiyar chalo
I'm ready, let's go

आओ, खो जाएँ सितारों में कहीं
aao, kho jaye sitaro mein kahin
Come, let's lose ourselves somewhere among the stars

छोड़ दें आज यह दुनिया, यह ज़मीं
chor de aaj yeh duniya, yeh jameen
Let's leave this world, this land

हम नशे में हैं, संभालो हमें तुम
hum nashe mein hai, sambhalon hamen tum
I'm intoxicated, take care of me

नींद आती है, जगा लो हमें तुम
Neend aati hain, jagaa lo hamen tum
Wake me up before I sleep

ज़िन्दगी ख़त्म भी हो जाए अगर
zindagi khatm bhi ho jaye agar
Even if life ends

न कभी ख़त्म हो उलफ़त का सफ़र
na kabhi khatm ho ulfat ka safar
May the journey of love continue

चलो दिलदार, चलो
chalo dildar chalo
Let's go, beloved, let's go

चाँद के पार चलो
chand ke paar chalo
Let's go to the other side of the moon

हम है तैयार,चलो
Hum hain taiyar chalo
I'm ready, let's go

Humko Kiske Gham ne Mara With English Translation

 Ghulam Ali
Shayari: Josh Malihabadi
Singer: Ghulam Ali


Humko Kiske Gham ne Mara With English Translation
Dil ki choton ne kabhi With English Translation

दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
DIL KI CHOTON NE KABHI CHAIN SE RAHNE NA DIYA
The wounds of the heart did not let me rest in peace

जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया
JAB CHALI SARD HAWA MAIN NE TUJHE YAAD KIYA
Whenever I remembered you in the wintery wind

इसका रोना नहीं क्यों तुमने किया दिल बरबाद
IS KA RONA KYON TUM NE KIYA DIL BARBAAD
I regret that you destroyed my heart

इसका ग़म है कि बहुत देर में बरबाद किया
IS KA GHAM HAI KE BAHUT DAIR MEIN BARBAAD KIYA
I feel sadness that you destroyed it so late

हमको किसके ग़म ने मारा, ये कहानी फिर सही
HUM KO KIS KE GHUM NE MARA, YE KAHANI PHIR SAHEE
The story of the parting that killed me, later

किसने तोड़ा दिल हमारा, ये कहानी फिर सही।
KIS NE TODA DIL HAMARA, YE KAHANI PHIR SAHEE
The story of who broke my heart, later

दिल के लुटने का सबब पूछो न सबके सामने
DIL KE LUTNAY KA SABAB POOCHHO NA SABKE SAAMNE
Don’t ask me, in public, the reason why my heart was stolen

नाम आएगा तुम्हारा, ये कहानी फिर सही।
NAAM AAYEGA TUMHARA, YE KAHANI PHIR SAHEE
Your name will be mentioned there, so this story, later

नफ़रतों के तीर खाकर दोस्तों के शहर में
NAFRATON KE TEER KHAKAR DONSTON KE SHAHER MAIN
After suffering the arrows of hate in the city of my friends

हमने किस-किस को पुकारा, ये कहानी फिर सही।
HUM NE KIS KIS KO PUKAARA, YE KAHANAI PHIR SAHEE
Who all I called out to, that story, later.

Monday, 1 October 2012

Shayar Nida Fazli, शायर निदा फाजली

Shayar Nida Fazli
Born 12 October 1938
1.
वो शोख शोख नज़र सांवली सी एक लड़की
 वो शोख शोख नज़र सांवली सी एक लड़की
जो रोज़ मेरी गली से गुज़र के जाती है
सुना है
वो किसी लड़के से प्यार करती है
बहार हो के, तलाश-ए-बहार करती है
न कोई मेल न कोई लगाव है लेकिन न जाने क्यूँ
बस उसी वक़्त जब वो आती है
कुछ इंतिज़ार की आदत सी हो गई है
मुझे
एक अजनबी की ज़रूरत हो गई है मुझे
मेरे बरांडे के आगे यह फूस का छप्पर
गली के मोड पे खडा हुआ सा
एक पत्थर
वो एक झुकती हुई बदनुमा सी नीम की शाख
और उस पे जंगली कबूतर के घोंसले का निशाँ
यह सारी चीजें कि जैसे मुझी में शामिल हैं
मेरे दुखों में मेरी हर खुशी में शामिल हैं
मैं चाहता हूँ कि वो भी यूं ही गुज़रती रहे
अदा-ओ-नाज़ से लड़के को प्यार करती रहे
2.
 होश वालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है 
होश वालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िन्दगी क्या चीज़ है

उन से नज़रें क्या मिली रोशन फिजाएँ हो गईं
आज जाना प्यार की जादूगरी क्या चीज़ है

ख़ुलती ज़ुल्फ़ों ने सिखाई मौसमों को शायरी
झुकती आँखों ने बताया मयकशी क्या चीज़ है

हम लबों से कह न पाये उन से हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है 

3.
हुआ सवेरा
  हुआ सवेरा
ज़मीन पर फिर अदब
से आकाश
अपने सर को झुका रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
नदी में स्नान करने सूरज
सुनारी मलमल की
पगड़ी बाँधे
सड़क किनारे
खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
हवाएँ सर-सब्ज़ डालियों में
दुआओं के गीत गा रही हैं
महकते फूलों की लोरियाँ
सोते रास्तों को जगा रही
घनेरा पीपल,
गली के कोने से हाथ अपने
हिला रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
फ़रिश्ते निकले रोशनी के
हर एक रस्ता चमक रहा है
ये वक़्त वो है
ज़मीं का हर ज़र्रा
माँ के दिल सा धड़क रहा है
पुरानी इक छत पे वक़्त बैठा
कबूतरों को उड़ा रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
बच्चे स्कूल जा रहे हैं

4.
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा
  हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा
मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा

किससे पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ बरसों से
हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा

एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे
मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा

मुद्दतें बीत गईं ख़्वाब सुहाना देखे
जागता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा

आईना देखके निकला था मैं घर से बाहर
आज तक हाथ में महफ़ूज़ है पत्थर मेरा 

5.
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाये तो मिट्टी है खो जाये तो सोना है

अच्छा-सा कोई मौसम तन्हा-सा कोई आलम
हर वक़्त का रोना तो बेकार का रोना है

बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है

ग़म हो कि ख़ुशी दोनों कुछ देर के साथी हैं
फिर रस्ता ही रस्ता है हँसना है न रोना है

ये वक्त जो तेरा है, ये वक्त जो मेरा
हर गाम पर पहरा है, फिर भी इसे खोना है

आवारा मिज़ाजी ने फैला दिया आंगन को
आकाश की चादर है धरती का बिछौना है  

6.
 दिल में ना हो ज़ुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती 
दिल में ना हो ज़ुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती
ख़ैरात में इतनी बङी दौलत नहीं मिलती

कुछ लोग यूँही शहर में हमसे भी ख़फा हैं
हर एक से अपनी भी तबीयत नहीं मिलती

देखा था जिसे मैंने कोई और था शायद
वो कौन है जिससे तेरी सूरत नहीं मिलती

हंसते हुए चेहरों से है बाज़ार कीज़ीनत
रोने को यहाँ वैसे भी फुरसत नहीं मिलती

7.
 कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी
कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी
चैन से जीने की सूरत ना हुई
जिसको चाहा उसे अपना ना सके
जो मिला उससे मुहब्बत ना हुई

जिससे जब तक मिले दिल ही से मिले
दिल जो बदला तो फसाना बदला
ऱसम-ए-दुनिया की निभाने के लिए
हमसे रिश्तों की तिज़ारत ना हुई

दूर से था वो कई चेहरों में
पास से कोई भी वैसा ना लगा
बेवफ़ाई भी उसी का था चलन
फिर किसीसे ही श़िकायत ना हुई

व़क्त रूठा रहा बच्चे की तरह
राह में कोई खिलौना ना मिला
दोस्ती भी तो निभाई ना गई
दुश्मनी में भी अदावत ना हुई

8.
सब की पूजा एक सी अलग अलग हर रीत
सब की पूजा एक सी अलग अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत

पूजा घर में मूर्ती मीरा के संग श्याम
जितनी जिसकी चाकरी उतने उसके दाम

सीता रावण राम का करें विभाजन लोग
एक ही तन में देखिये तीनों का संजोग

मिट्टी से माटी मिले खो के सभी निशां
किस में कितना कौन है कैसे हो पहचान
 

9.
 कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता 
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आस्माँ नहीं मिलता

बुझा सका ह भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता

तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो
जहाँ उमीद हो सकी वहाँ नहीं मिलता

कहाँ चिराग़ जलायें कहाँ गुलाब रखें
छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता

ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं
ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलता

चिराग़ जलते ही बीनाई बुझने लगती है
खुद अपने घर में ही घर का निशाँ नहीं मिलता

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आहिस्ता-आहिस्ता फिल्म में जो ग़ज़ल शामिल की गयी है ये वो है.
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता

जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबा नहीं मिलता

बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता

तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता

Nida Fazli Shayari
1.
 Gham Sota Nahin
Jo Mila Khud Ko Dhundhta Hi Mila
Har Jagah Koi Dusra Hi Mila

Gham Nahi Sota Aadmi Ki Tarah
Neend Mein Bhi Ye Jaagta Hi Mila

Khud Se Hi Mil Ke Laut Aaye Hum
Humko Har Taraf Aaina Mila

Har Thkaan Ka Fareb Hai Manzil
Chalne Walon Ko Rasta Hi Mila

2.
 Jab Se Mili Hai Zindagi
Pehle Bhi Jeete The Magar Jab Se Mili Hai Zindagi
Sidhi Nahi Hai Door Tak Uljhi Hai Zindagi

Ik Aankh Se Roti Hai Ye, Ik Aankh Se Hansti Hai Ye
Jaisi Dikhai De Jise Uski Vahi Hai Zindagi

Jo Paye Voh Khoye Use, Jo Khoye Voh Roye Use
Yoon To Sabhi Ke Paas Hai Kiski Hui Hai Zindagi

Har Raasta Anjaan Sa Har Falsafa Nadan Sa
Sadiyon Purani Hai Magar Har Din Nayi Hai Zindagi

Achi Bhali Thi Door Se, Jab Paas Aayi Kho Gayi
Jisme Na Aaye Kuch Nazar Voh Roshni Hai Zindagi

Mitti Hawa Lekar Udi Ghoomi Firi Vaapas Mudi
Kabron Pe Shilalekho Ki Tarah Likhi Hui Hai Zindagi

3.
Shahar Mein Tanha
Voh Bhi Meri Tarah Hi Shaher Mein Tanha Hoga
Roshni Khatam Na Kar Aage Andhera Hoga

Pyaas Jis Nehr Se Takrayi Vo Banjar Nikli
Jisko Piche Kahi Chor Aaye Vo Dariya Hoga

Ek Mehfil Mein Kayi Mehfilein Hoti Hain Shareek
Jisko Bhi Pass Se Dekhoge Akela Hoga

Mere Baare Mein Koi Raay To Hogi Uski
Usne Mujhko Bhi Kabhi Tor Ke Dekha Hoga 

4.
 Har Dastak Usaki Dastak
Darwaje Per Har Dastak Ka Jana Pehchana Chehra Hai
Roz Badlati Hain Taarikhen Waqat Magar Yun Hi Thehra Hai

Har Dastak Hai ‘Uski’ Dastak
Dil Yun Hi Dhoka Khata Hai
Jab Bhi Darwaja Khulta Hai Koi Aur Nazar Aata Hai

5.
 Jab Tanhayian Bolti Hai
Deewar-O-Dar Se Utar Kar Perchaiyan Bolti Hain
Koi Nahi Bolta Jab Tanhaiyan Bolti Hain

Perdesh Ke Raaston Mein Rookte Kahan Hain Musafir
Har Ped Kehta Hai Kissa Khamoshiyan Bolti Hain

Ek Bar To Zindagi Mein Milti Hai Sabko Haqumat
Kuch Din To Har Aaine Mein Sehzadiyan Bolti Hain

Sun’ne Ki Mohlat Mile To Aawaz Hai Pathron Mein
Ujadi Hui Bastiyon Mein Aabadiyan Bolti Hain

6.
 Jise Nigah Mili Usko Intezar Mila
Koi Pukar Raha Tha Khuli Fazaon Se
Jise Nigah Mili Usko Intezar Mila

Vo Koi Raah Ka Pathar Ho Ya Hanseen Manzar
Jahan Se Raasta Thehra Vahin Mazaar Mila

Har Ek Saans Na Jaane Thi Justjoo Kiski
Har Ek Ghar Musafir Ko Beghar Mila

Ye Shehar Hai Ki Numaish Lagi Hui Hai Koi
Jo Aadami Bhi Mila Banke Ishtihar Mila