Wednesday, 31 October 2012

Bekal Utsahi, बेकल उत्साही

Bekal Utsahi
1. 
जब से हम तबाह हो गये
 जब से हम तबाह हो गये
तुम जहाँपनाह हो गये

हुस्न पर निखार आ गया
आईने सियाह हो गये

आँधियों को कुछ पता नहीं
हम भी गर्द-ए-राह हो गये

दुश्मनों को चिट्ठियाँ लिक्खो
दोस्त ख़ैर-ख़्वाह हो गये
2.
 
मौला ख़ैर करे
 भीतर बसने वाला ख़ुद बाहर की सैर करे, मौला ख़ैर करे
इक सूरत की चाह में फिर काबे को दैर करे, मौला ख़ैर करे

इश्क़विश्क़ ये चाहतवाहत मनका बहलावा फिर मनभी अपना क्या
यार ये कैसा रिश्ता जो अपनों को ग़ैर करे, मौला ख़ैर करे

रेत का तोदा आंधी की फ़ौजों पर तीर चलाए, टहनी पेड़ चबाए
छोटी मछली दरिया में घड़ियाल से बैर करे, मौला ख़ैर करे

सूरज काफ़िर हर मूरत पर जान छिड़कता है, बिन पांव थकता है
मन का मुसलमाँ अब काबे की जानिब पैर करे, मौला खैर करे

फ़िक्र की चाक पे माटी की तू शक्ल बदलता है, या ख़ुद ही ढलता है
'बेकल' बे पर लफ़्ज़ों को तख़यील का तैर करे, मौला ख़ैर करे
3.
 
वो तो मुद्दत से जानता है मुझे
 वो तो मुद्दत से जानता है मुझे
फिर भी हर इक से पूछता है मुझे

रात तनहाइयों के आंगन में
चांद तारों से झाँकता है मुझे

सुब्‌ह अख़बार की हथेली पर
सुर्ख़ियों मे बिखेरता है मुझे

होने देता नही उदास कभी
क्या कहूँ कितना चाहता है मुझे

मैं हूँ 'बेकल' मगर सुकून से हूँ
उसका ग़म भी सँवारता है मुझे

1 comment:

  1. क्षमा आज पहली बार(विदेसः में हूँ 44 वर्षों से
    गजल पढी बेहद सुंदर |
    शुक्रिया

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