Jaun Elia
December 14, 1931 - November 8, 2002
1.
हालत-ए-हाल के सबब, हालत-ए-हाल ही गई
हालत-ए-हाल के सबब, हालत-ए-हाल ही गई
शौक़ में कुछ नहीं गया, शौक़ की ज़िंदगी गई
एक ही हादिसा तो है और वो ये के आज तक
बात नहीं कही गयी, बात नहीं सुनी गई
बाद भी तेरे जान-ए-जान दिल में रहा अजब सामान
याद रही तेरी यहाँ, फिर तेरी याद भी गई
उसके बदन को दी नमूद हमने सुखन में और फिर
उसके बदन के वास्ते एक काबा भी सी गई
उसकी उम्मीद-ए-नाज़ का हमसे ये मान था के आप
उम्र गुज़ार दीजिये, उम्र गुज़ार दी गई
उसके विसाल के लिए, अपने कमाल के लिए
हालत-ए-दिल की थी खराब, और खराब की गई
तेरा फ़िराक जान-ए-जान ऐश था क्या मेरे लिए
यानी तेरे फ़िराक में खूब शराब पी गई
उसकी गली से उठ के मैं आन पडा था अपने घर
एक गली की बात थी और गली गली गई
2.
गाहे गाहे बस अब यही हो क्या
गाहे गाहे बस अब यही हो क्या
तुमसे मिल कर बहुत खुशी हो क्या
मिल रही हो बड़े तपाक के साथ
मुझको यक्सर भुला चुकी हो क्या
याद हैं अब भी अपने ख्वाब तुम्हे
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
बस मुझे यूँही एक ख्याल आया
सोचती हो तो सोचती हो क्या
अब मेरी कोई जिंदगी ही नहीं
अब भी तुम मेरी जिंदगी हो क्या
क्या कहा इश्क जाविदानी है
आखरी बार मिल रही हो क्या
हाँ फज़ा यहां की सोई सोई सी है
तो बहुत तेज रौशनी हो क्या
मेरे सब तंज बेअसर ही रहे
तुम बहुत दूर जा चुकी हो क्या
दिल में अब सोजे इंतज़ार नहीं
शमे उम्मीद बुझ गयी हो क्या
3.
अजब इक शोर सा बरपा है कहीं
अजब इक शोर सा बरपा है कहीं
कोई खामोश हो गया है कहीं
है कुछ ऐसा के जैसे ये सब कुछ
अब से पहले भी हो चुका है कहीं
जो यहाँ से कहीं न जाता था
हालत-ए-हाल के सबब, हालत-ए-हाल ही गई
शौक़ में कुछ नहीं गया, शौक़ की ज़िंदगी गई
एक ही हादिसा तो है और वो ये के आज तक
बात नहीं कही गयी, बात नहीं सुनी गई
बाद भी तेरे जान-ए-जान दिल में रहा अजब सामान
याद रही तेरी यहाँ, फिर तेरी याद भी गई
उसके बदन को दी नमूद हमने सुखन में और फिर
उसके बदन के वास्ते एक काबा भी सी गई
उसकी उम्मीद-ए-नाज़ का हमसे ये मान था के आप
उम्र गुज़ार दीजिये, उम्र गुज़ार दी गई
उसके विसाल के लिए, अपने कमाल के लिए
हालत-ए-दिल की थी खराब, और खराब की गई
तेरा फ़िराक जान-ए-जान ऐश था क्या मेरे लिए
यानी तेरे फ़िराक में खूब शराब पी गई
उसकी गली से उठ के मैं आन पडा था अपने घर
एक गली की बात थी और गली गली गई
2.
गाहे गाहे बस अब यही हो क्या
गाहे गाहे बस अब यही हो क्या
तुमसे मिल कर बहुत खुशी हो क्या
मिल रही हो बड़े तपाक के साथ
मुझको यक्सर भुला चुकी हो क्या
याद हैं अब भी अपने ख्वाब तुम्हे
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
बस मुझे यूँही एक ख्याल आया
सोचती हो तो सोचती हो क्या
अब मेरी कोई जिंदगी ही नहीं
अब भी तुम मेरी जिंदगी हो क्या
क्या कहा इश्क जाविदानी है
आखरी बार मिल रही हो क्या
हाँ फज़ा यहां की सोई सोई सी है
तो बहुत तेज रौशनी हो क्या
मेरे सब तंज बेअसर ही रहे
तुम बहुत दूर जा चुकी हो क्या
दिल में अब सोजे इंतज़ार नहीं
शमे उम्मीद बुझ गयी हो क्या
3.
अजब इक शोर सा बरपा है कहीं
अजब इक शोर सा बरपा है कहीं
कोई खामोश हो गया है कहीं
है कुछ ऐसा के जैसे ये सब कुछ
अब से पहले भी हो चुका है कहीं
जो यहाँ से कहीं न जाता था
वो यहाँ से चला गया है कहीं
तुझ को क्या हो गया, के चीजों को
कहीं रखता है, ढूंढता है कहीं
तू मुझे ढूंढ़, मैं तुझे ढुंढू
कोई हम में से रह गया है कहीं
इस कमरे से हो के कोई विदा
इस कमरे में छुप गया है कहीं
4.
ख़ामोशी कह रही है कान में क्या
तुझ को क्या हो गया, के चीजों को
कहीं रखता है, ढूंढता है कहीं
तू मुझे ढूंढ़, मैं तुझे ढुंढू
कोई हम में से रह गया है कहीं
इस कमरे से हो के कोई विदा
इस कमरे में छुप गया है कहीं
4.
ख़ामोशी कह रही है कान में क्या
ख़ामोशी कह रही है कान में क्या
आ रहा है मेरे गुमान में क्या
अब मुझे कोई टोकता भी नहीं
यही होता है खानदान में क्या
बोलते क्यों नहीं मेरे हक़ में
आबले पड़ गये ज़बान में क्या
मेरी हर बात बे-असर ही रही
नुक़्स है कुछ मेरे बयान में क्या
वो मिले तो ये पूछना है मुझे
अब भी हूँ मैं तेरी अमान में क्या
शाम ही से दुकान-ए-दीद है बंद
नहीं नुकसान तक दुकान में क्या
यूं जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
इक ही शख़्स था जहान में क्या
5.
शौक का रंग बुझ गया , याद के ज़ख्म भर गए
शौक का रंग बुझ गया , याद के ज़ख्म भर गए
क्या मेरी फसल हो चुकी, क्या मेरे दिन गुज़र गए?
हम भी हिजाब दर हिजाब छुप न सके, मगर रहे
वोह भी हुजूम दर हुजूम रह न सके, मगर गए
रहगुज़र-ए-ख्याल में दोष बा दोष थे जो लोग
वक्त की गर्द ओ बाद में जाने कहाँ बिखर गए
शाम है कितनी बे तपाक, शहर है कितना सहम नाक
हम नफ़सो कहाँ तो तुम, जाने ये सब किधर गए
आज की रात है अजीब, कोई नहीं मेरे करीब
आज सब अपने घर रहे, आज सब अपने घर गए
हिफ्ज़-ए- हयात का ख्याल हम को बहुत बुरा लगा
पास बा हुजूम-ए-मारका, जान के भी सिपर गए
मैं तो सापों के दरमियान, कब से पड़ा हूँ निम-जान
मेरे तमाम जान-निसार मेरे लिए तो मर गए
रौनक-ए-बज़्म-ए-ज़िन्दगी, तुरफा हैं तेरे लोग भी
एक तो कभी न आये थे, आये तो रूठ कर गए
खुश नफास-ए-बे-नवा, बे-खबरां-ए-खुश अदा
तीरह-नसीब था मगर शहर में नाम कर गए
आप में 'जॉन अलिया' सोचिये अब धरा है क्या
आप भी अब सिधारिये, आप के चारागर गए
चारागर=चिकित्सक
6.
जॉन ! गुज़ाश्त-ए-वक्त की हालत-ए-हाल पर सलाम
जॉन ! गुज़ाश्त-ए-वक्त की हालत-ए-हाल पर सलाम
उस के फ़िराक को दुआ, उसके विसाल पर सलाम
तेरा सितम भी था करम, तेरा करम भी था सितम
बंदगी तेरी तेग को, और तेरी ढाल पर सलाम
सूद-ओ-जयां के फर्क का अब नहीं हम से वास्ता
सुबह को अर्ज़-ए-कोर्निश, शाम-ए-मलाल पर सलाम
अब तो नहीं है लज्ज़त-ए-मुमकिन-ए-शौक भी नसीब
रोज़-ओ-शब ज़माना-ए-शौक महाल पर सलाम
हिज्र-ए-सवाल के है दिन, हिज्र-ए-जवाब के हैं दिन
उस के जवाब पर सलाम, अपने सवाल पर सलाम
जाने वोह रंग-ए-मस्ती-ए-ख्वाब-ओ-ख्याल क्या हुई?
इशरत-ए-ख्वाब की सना, ऐश-ए-ख्याल पर सलाम
अपना कमाल था अजब, अपना ज़वाल था अजब
अपने कमाल पर दारूद, अपने ज़वाल पर सलाम
7.
तमन्ना कई थे, आज दिल में उनके लिए
तमन्ना कई थे, आज दिल में उनके लिए
लेकिन वो आज न आये मुझे मिलने के लिए
काम करने का जोश न रहा
उनके बिना कोई होश न रहा
कैसे समझाऊ उन्हें की वोह मेरी ज़िन्दगी है
मेरी ज़िन्दगी को कैसे समझाऊ के मोहब्बत मेरी बंदगी है
लेकिन आज मैं काम ज़रूर करूँगा
उनके बिना मैं नहीं मरूँगा
कमबख्त यह दिल है कि मानता नहीं
यह क्या मजबूरी हैं उनके बिना काम बनता नहीं
काश उनको भी मेरी याद सताये
यह मोहब्बत का रोग उन्हें जलाये
आ रहा है मेरे गुमान में क्या
अब मुझे कोई टोकता भी नहीं
यही होता है खानदान में क्या
बोलते क्यों नहीं मेरे हक़ में
आबले पड़ गये ज़बान में क्या
मेरी हर बात बे-असर ही रही
नुक़्स है कुछ मेरे बयान में क्या
वो मिले तो ये पूछना है मुझे
अब भी हूँ मैं तेरी अमान में क्या
शाम ही से दुकान-ए-दीद है बंद
नहीं नुकसान तक दुकान में क्या
यूं जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
इक ही शख़्स था जहान में क्या
5.
शौक का रंग बुझ गया , याद के ज़ख्म भर गए
शौक का रंग बुझ गया , याद के ज़ख्म भर गए
क्या मेरी फसल हो चुकी, क्या मेरे दिन गुज़र गए?
हम भी हिजाब दर हिजाब छुप न सके, मगर रहे
वोह भी हुजूम दर हुजूम रह न सके, मगर गए
रहगुज़र-ए-ख्याल में दोष बा दोष थे जो लोग
वक्त की गर्द ओ बाद में जाने कहाँ बिखर गए
शाम है कितनी बे तपाक, शहर है कितना सहम नाक
हम नफ़सो कहाँ तो तुम, जाने ये सब किधर गए
आज की रात है अजीब, कोई नहीं मेरे करीब
आज सब अपने घर रहे, आज सब अपने घर गए
हिफ्ज़-ए- हयात का ख्याल हम को बहुत बुरा लगा
पास बा हुजूम-ए-मारका, जान के भी सिपर गए
मैं तो सापों के दरमियान, कब से पड़ा हूँ निम-जान
मेरे तमाम जान-निसार मेरे लिए तो मर गए
रौनक-ए-बज़्म-ए-ज़िन्दगी, तुरफा हैं तेरे लोग भी
एक तो कभी न आये थे, आये तो रूठ कर गए
खुश नफास-ए-बे-नवा, बे-खबरां-ए-खुश अदा
तीरह-नसीब था मगर शहर में नाम कर गए
आप में 'जॉन अलिया' सोचिये अब धरा है क्या
आप भी अब सिधारिये, आप के चारागर गए
चारागर=चिकित्सक
6.
जॉन ! गुज़ाश्त-ए-वक्त की हालत-ए-हाल पर सलाम
जॉन ! गुज़ाश्त-ए-वक्त की हालत-ए-हाल पर सलाम
उस के फ़िराक को दुआ, उसके विसाल पर सलाम
तेरा सितम भी था करम, तेरा करम भी था सितम
बंदगी तेरी तेग को, और तेरी ढाल पर सलाम
सूद-ओ-जयां के फर्क का अब नहीं हम से वास्ता
सुबह को अर्ज़-ए-कोर्निश, शाम-ए-मलाल पर सलाम
अब तो नहीं है लज्ज़त-ए-मुमकिन-ए-शौक भी नसीब
रोज़-ओ-शब ज़माना-ए-शौक महाल पर सलाम
हिज्र-ए-सवाल के है दिन, हिज्र-ए-जवाब के हैं दिन
उस के जवाब पर सलाम, अपने सवाल पर सलाम
जाने वोह रंग-ए-मस्ती-ए-ख्वाब-ओ-ख्याल क्या हुई?
इशरत-ए-ख्वाब की सना, ऐश-ए-ख्याल पर सलाम
अपना कमाल था अजब, अपना ज़वाल था अजब
अपने कमाल पर दारूद, अपने ज़वाल पर सलाम
7.
तमन्ना कई थे, आज दिल में उनके लिए
तमन्ना कई थे, आज दिल में उनके लिए
लेकिन वो आज न आये मुझे मिलने के लिए
काम करने का जोश न रहा
उनके बिना कोई होश न रहा
कैसे समझाऊ उन्हें की वोह मेरी ज़िन्दगी है
मेरी ज़िन्दगी को कैसे समझाऊ के मोहब्बत मेरी बंदगी है
लेकिन आज मैं काम ज़रूर करूँगा
उनके बिना मैं नहीं मरूँगा
कमबख्त यह दिल है कि मानता नहीं
यह क्या मजबूरी हैं उनके बिना काम बनता नहीं
काश उनको भी मेरी याद सताये
यह मोहब्बत का रोग उन्हें जलाये
https://www.shayarizone.com/2019/09/zindgi-sad-shayari-shayari-on-life.html
ReplyDeleteI love poetry
ReplyDeleteमैं तो सापो के दरमियां(wrong)
ReplyDeleteमैं तो सफों के दरमियां (right)
All The Best Dost 👍