Hafeez Jalandhari
(born 14 January 1900 - died 21 December 1982)
1.
कोई चारा नहीं दुआ के सिवा
कोई चारा नहीं दुआ के सिवा
कोई सुनता नहीं खुदा के सिवा
मुझसे क्या हो सका वफ़ा के सिवा
मुझको मिलता भी क्या सजा के सिवा
दिल सभी कुछ ज़बान पर लाया
इक फ़क़त अर्ज़-ए-मुद्दा के सिवा
[faqat=merely; arz-e-muddaa=expressing]
बरसर-ए-साहिल-ए-मुकाम यहाँ
कौन उभरा है नाखुदा के सिवा
दोस्तों के ये मुक्हाली साना तीर
कुछ नहीं मेरी ही खता के सिवा
ये "हफीज" आह आह पर आखिर
क्या कहे दोस्तों वाह वाह के सिवा
2.
इंसा भी कुछ शेर है, बाकी भेड़ की आबादी है
शेरों को आजादी है, आजादी के पाबंद रहे, जिसको चाहें चीरे-फाड़ें, खाए पियें आनंद रहे।
सापों को आजादी है हर बसते घर में बसने की, उनके सर में जहर भी है और आदत भी है डसने की।शाही को आजादी है, आजादी से परवाज करे, नन्ही-मुन्नी चिड़ियों पर जब चाहे मश्के-नाज करें।
पानी में आजादी है घडियालों और निहंगो को, जैसे चाहे पालें-पोसें अपनी तुंद उमंगो को।इंसा ने भी शोखी सीखी वहशत के इन रंगों से, शेरों, सापों, शाहीनो, घडियालों और निहंगो से।
इंसा भी कुछ शेर है, बाकी भेड़ की आबादी है, भेडें सब पाबंद हैं लेकिन शेरों को आजादी है।शेर के आगे भेडें क्या हैं, इक मनभाता खाजा है, बाकी सारी दुनिया परजा, शेर अकेला राजा है।
भेडें लातादाद हैं लेकिन सबकों जान के लाले हैं, उनको यह तालीम मिली है, भेडिए ताकत वाले हैं।मांस भी खाएं, खाल भी नोचें, हरदम लागू जानो के, भेडें काटें दौरे-गुलामी बल पर गल्लाबानो के।
भेडियों ही से गोया कायम अमन है इस आजादी का, भेडें जब तक शेर न बन ले, नाम न ली आजादी का।इंसानों में सांप बहुत हैं, कातिल भी, जहरीले भी, उनसे बचना मुश्किल है, आजाद भी हैं, फुर्तीले भी।
सरमाए का जिक्र करो, मजदूर की उनको फ़िक्र नही, मुख्तारी पर मरते हैं, मजबूर की उनको फ़िक्र नही।आज यह किसका मुंह ले आए, मुंह सरमायेदारों के, इनके मुंह में दांत नही, फल हैं खुनी तलवारों के।
खा जाने का कौन सा गुर है को इन सबको याद नही, जब तक इनको आजादी है, कोई भी आजाद नही।उसकी आजादी की बातें सारी झूठी बातें हैं, मजदूरों को, मजबूरों को खा जाने की घातें हैं।
जब तक चोरों, राहजनो का डर दुनिया पर ग़ालिब है, पहले मुझसे बात करे, जो आजादी का तालिब है।
3.
क्यों हिज्र के शिकवे करता है, क्यों दर्द के रोने रोता है?
क्यों हिज्र के शिकवे करता है, क्यों दर्द के रोने रोता है?
अब इश्क किया है तो सब्र भी कर, इसमें तो यही कुछ होता है
आगाज़-ए-मुसीबत होता है, अपने ही दिल की शरारत से
आँखों में फूल खिलाता है, तलवो में कांटें बोता है
अहबाब का शिकवा क्या कीजिये, खुद ज़ाहिर व बातें एक नहीं
लब ऊपर ऊपर हँसतें है, दिल अंदर अंदर रोता है
मल्लाहों को इलज़ाम न दो, तुम साहिल वाले क्या जानों
ये तूफान कौन उठता है, ये किश्ती कौन डुबोता है
क्या जाने क्या ये खोएगा, क्या जाने क्या ये पायेगा
मंदिर का पुजारी जागता है, मस्जिद का नमाजी सोता है
Meanings:
[hijr = separation; shikave = complaints; sabr = patience]
[aaGaaz = start; sharaarat = mischief]
[ahabaab = friends; zaahir = disclosed/out in the open]
[baatin = internal/of the mind]
[mallaah = boatsman/sailor; ilzaam = allegation]
[saahil = shore]
कोई चारा नहीं दुआ के सिवा
कोई चारा नहीं दुआ के सिवा
कोई सुनता नहीं खुदा के सिवा
मुझसे क्या हो सका वफ़ा के सिवा
मुझको मिलता भी क्या सजा के सिवा
दिल सभी कुछ ज़बान पर लाया
इक फ़क़त अर्ज़-ए-मुद्दा के सिवा
[faqat=merely; arz-e-muddaa=expressing]
बरसर-ए-साहिल-ए-मुकाम यहाँ
कौन उभरा है नाखुदा के सिवा
दोस्तों के ये मुक्हाली साना तीर
कुछ नहीं मेरी ही खता के सिवा
ये "हफीज" आह आह पर आखिर
क्या कहे दोस्तों वाह वाह के सिवा
2.
इंसा भी कुछ शेर है, बाकी भेड़ की आबादी है
शेरों को आजादी है, आजादी के पाबंद रहे, जिसको चाहें चीरे-फाड़ें, खाए पियें आनंद रहे।
सापों को आजादी है हर बसते घर में बसने की, उनके सर में जहर भी है और आदत भी है डसने की।शाही को आजादी है, आजादी से परवाज करे, नन्ही-मुन्नी चिड़ियों पर जब चाहे मश्के-नाज करें।
पानी में आजादी है घडियालों और निहंगो को, जैसे चाहे पालें-पोसें अपनी तुंद उमंगो को।इंसा ने भी शोखी सीखी वहशत के इन रंगों से, शेरों, सापों, शाहीनो, घडियालों और निहंगो से।
इंसा भी कुछ शेर है, बाकी भेड़ की आबादी है, भेडें सब पाबंद हैं लेकिन शेरों को आजादी है।शेर के आगे भेडें क्या हैं, इक मनभाता खाजा है, बाकी सारी दुनिया परजा, शेर अकेला राजा है।
भेडें लातादाद हैं लेकिन सबकों जान के लाले हैं, उनको यह तालीम मिली है, भेडिए ताकत वाले हैं।मांस भी खाएं, खाल भी नोचें, हरदम लागू जानो के, भेडें काटें दौरे-गुलामी बल पर गल्लाबानो के।
भेडियों ही से गोया कायम अमन है इस आजादी का, भेडें जब तक शेर न बन ले, नाम न ली आजादी का।इंसानों में सांप बहुत हैं, कातिल भी, जहरीले भी, उनसे बचना मुश्किल है, आजाद भी हैं, फुर्तीले भी।
सरमाए का जिक्र करो, मजदूर की उनको फ़िक्र नही, मुख्तारी पर मरते हैं, मजबूर की उनको फ़िक्र नही।आज यह किसका मुंह ले आए, मुंह सरमायेदारों के, इनके मुंह में दांत नही, फल हैं खुनी तलवारों के।
खा जाने का कौन सा गुर है को इन सबको याद नही, जब तक इनको आजादी है, कोई भी आजाद नही।उसकी आजादी की बातें सारी झूठी बातें हैं, मजदूरों को, मजबूरों को खा जाने की घातें हैं।
जब तक चोरों, राहजनो का डर दुनिया पर ग़ालिब है, पहले मुझसे बात करे, जो आजादी का तालिब है।
3.
क्यों हिज्र के शिकवे करता है, क्यों दर्द के रोने रोता है?
क्यों हिज्र के शिकवे करता है, क्यों दर्द के रोने रोता है?
अब इश्क किया है तो सब्र भी कर, इसमें तो यही कुछ होता है
आगाज़-ए-मुसीबत होता है, अपने ही दिल की शरारत से
आँखों में फूल खिलाता है, तलवो में कांटें बोता है
अहबाब का शिकवा क्या कीजिये, खुद ज़ाहिर व बातें एक नहीं
लब ऊपर ऊपर हँसतें है, दिल अंदर अंदर रोता है
मल्लाहों को इलज़ाम न दो, तुम साहिल वाले क्या जानों
ये तूफान कौन उठता है, ये किश्ती कौन डुबोता है
क्या जाने क्या ये खोएगा, क्या जाने क्या ये पायेगा
मंदिर का पुजारी जागता है, मस्जिद का नमाजी सोता है
Meanings:
[hijr = separation; shikave = complaints; sabr = patience]
[aaGaaz = start; sharaarat = mischief]
[ahabaab = friends; zaahir = disclosed/out in the open]
[baatin = internal/of the mind]
[mallaah = boatsman/sailor; ilzaam = allegation]
[saahil = shore]
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