Altaf Hussain Hali
(1837–1914)
अल्ताफ हुसैन हाली का नाम उर्दू साहित्य में बेहद सम्मान के साथ लिया जाता
है. आपका जन्म उन्नीसवी शताब्दी के मध्य में हरियाणा के पानीपत में हुआ था.
घरेलु हालात ऐसे थे कि आप औपचारिक शिक्षा भी ग्रहण न कर सके लेकिन इन
बातों से क्या होता है. आप इनकी रचनाओं में इनकी प्रतिभा व मेहनत का असर
देख सकते है. आप बाद में अपने ज्ञान को विस्तार देने व समाज सुधार के इरादे
से दिल्ली आ गए थे. उन्होंने अपने दम ख़म पर उर्दू, फारसी व अरबी भाषा में
इस तरह की पकड़ बनाई
कि इन्हें उर्दू शिक्षण की लाहोर के कोलेज में ज़िम्मेदारी दी गयी. आप सर
सैयद अहमद खान साब के प्रिय मित्र व अनुयायी थे. आपने उर्दू में प्रचलित
परम्परा से हट कर ग़ज़ल, नज़्म, रुबाईया व मर्सिया लिखे है. आपने मिर्ज़ा ग़ालिब
की जीवनी सहित कई किताबे लिखी है.
1.
हक वफ़ा का जो हम जताने लगे
1.
हक वफ़ा का जो हम जताने लगे
हक वफ़ा का जो हम जताने लगे
आप कुछ कह के मुस्कुराने लगे
हम को जीना पड़ेगा फुरक़त में
वो अगर हिम्मत आज़माने लगे
डर है मेरी जुबान न खुल जाये
अब वो बातें बहुत बनाने लगे
जान बचती नज़र नहीं आती
गैर उल्फत बहुत जताने लगे
तुम को करना पड़ेगा उज्र-ए-जफा
हम अगर दर्द-ए-दिल सुनाने लगे
बहुत मुश्किल है शेवा-ए-तस्लीम
हम भी आखिर को जी चुराने लगे
वक़्त-ए-रुखसत था सख्त “हाली” पर
हम भी बैठे थे जब वो जाने लगे
आप कुछ कह के मुस्कुराने लगे
हम को जीना पड़ेगा फुरक़त में
वो अगर हिम्मत आज़माने लगे
डर है मेरी जुबान न खुल जाये
अब वो बातें बहुत बनाने लगे
जान बचती नज़र नहीं आती
गैर उल्फत बहुत जताने लगे
तुम को करना पड़ेगा उज्र-ए-जफा
हम अगर दर्द-ए-दिल सुनाने लगे
बहुत मुश्किल है शेवा-ए-तस्लीम
हम भी आखिर को जी चुराने लगे
वक़्त-ए-रुखसत था सख्त “हाली” पर
हम भी बैठे थे जब वो जाने लगे
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