'खातिर' गजनवी
1925 - 2008
1.
कैसी चली है अब के हवा, तेरे शहर में
कैसी चली है अब के हवा, तेरे शहर में
बन्दे भी हो गये हैं ख़ुदा, तेरे शहर में
क्या जाने क्या हुआ कि परेशान हो गयी
एक लहज़ा रुक गयी थी सबा तेरे शहर में
कुछ दुश्मनी का ढब है न अब दोस्ती के तौर
दोनों का एक रंग हुआ तेरे शहर में
शायद उन्हें पता था कि ख़ातिर है अजनबी
लोगों ने उसको लूट लिया तेरे शहर में
2.
जब उस ज़ुल्फ़ की बात चली
जब उस ज़ुल्फ़ की बात चली
ढलते ढलते रात ढली
उन आंखों ने लूट के भी
अपने ऊपर बात न ली
शम्अ का अन्जाम न पूछ
परवानों के साथ जली
अब भी वो दूर रहे
अब के भी बरसात चली
'ख़ातिर' ये है बाज़ी-ए-दिल
इसमें जीत से मात भली
कैसी चली है अब के हवा, तेरे शहर में
कैसी चली है अब के हवा, तेरे शहर में
बन्दे भी हो गये हैं ख़ुदा, तेरे शहर में
क्या जाने क्या हुआ कि परेशान हो गयी
एक लहज़ा रुक गयी थी सबा तेरे शहर में
कुछ दुश्मनी का ढब है न अब दोस्ती के तौर
दोनों का एक रंग हुआ तेरे शहर में
शायद उन्हें पता था कि ख़ातिर है अजनबी
लोगों ने उसको लूट लिया तेरे शहर में
2.
जब उस ज़ुल्फ़ की बात चली
जब उस ज़ुल्फ़ की बात चली
ढलते ढलते रात ढली
उन आंखों ने लूट के भी
अपने ऊपर बात न ली
शम्अ का अन्जाम न पूछ
परवानों के साथ जली
अब भी वो दूर रहे
अब के भी बरसात चली
'ख़ातिर' ये है बाज़ी-ए-दिल
इसमें जीत से मात भली
No comments:
Post a Comment