शायर खुमार बाराबंकवी
जन्म: 15 सितंबर 1919
निधन: 19 फ़रवरी 1999
परिचय: ख़ुमार बाराबंकवी साब हिंदी फिल्मों के जाने-माने गीतकार है. तलत महमूद साब का गाया गीत 'तस्वीर बनता हूँ, तस्वीर नहीं बनती' सहित 'अपने किये पे कोई परेशान हो गया', 'एक दिल और तलबगार है बहुत', 'दिल की महफ़िल सजी है चले आइए', 'साज हो तुम आवाज़ हूँ मैं','भुला नहीं देना', 'दर्द भरा दिल भर-भर आए', 'आग लग जाए इस ज़िन्दगी को, मोहब्बत की बस इतनी दास्ताँ है', 'आई बैरन बयार, कियो सोलह सिंगार', जैसे गीत लिखे जो खासे लोकप्रिय हए।
1.
न हारा है इश्क, न दुनिया थकी है
न हारा है इश्क, न दुनिया थकी है
न हारा है इश्क, न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है, हवा चल रही है
सुकून ही सुकून है खुशी ही खुशी है
तेरा गम सलामत, मुझे क्या कमी है
वो मौज़ूद है और उनकी कमी है
मुहब्बत भी तहाई-ए-दायमी है
खटक गुदगुदगी का मज़ा दे रही है
जिसे इश्क कहते है शायद यही है
चरागों के बदले मकान जल रहे हैं
नया है ज़माना, नई रौशनी है
अरे ओ जफ़ाओं पे चुप रहने वालो
खामोशी जफ़ाओं की ताईद भी है
मेरे रहबर मुझ को गुमराह कर दे
सूना है कि मंजिल करीब आ गई है
ख़ुमार-ए-बलानौश तू और तौबा
तुझे ज़ाहिदो की नज़र लग गई है
दिया जल रहा है, हवा चल रही है
सुकून ही सुकून है खुशी ही खुशी है
तेरा गम सलामत, मुझे क्या कमी है
वो मौज़ूद है और उनकी कमी है
मुहब्बत भी तहाई-ए-दायमी है
खटक गुदगुदगी का मज़ा दे रही है
जिसे इश्क कहते है शायद यही है
चरागों के बदले मकान जल रहे हैं
नया है ज़माना, नई रौशनी है
अरे ओ जफ़ाओं पे चुप रहने वालो
खामोशी जफ़ाओं की ताईद भी है
मेरे रहबर मुझ को गुमराह कर दे
सूना है कि मंजिल करीब आ गई है
ख़ुमार-ए-बलानौश तू और तौबा
तुझे ज़ाहिदो की नज़र लग गई है
2.
अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं
अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं
मेरी याद से जंग फ़रमा रहे हैं
इलाही मेरे दोस्त हों ख़ैरियत से
ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं
बहुत ख़ुश हैं गुस्ताख़ियों पर हमारी
बज़ाहिर जो बरहम नज़र आ रहे हैं
ये कैसी हवा-ए-तरक्की चली है
दीये तो दीये दिल बुझे जा रहे हैं
बहिश्ते-तसव्वुर के जलवे हैं मैं हूँ
जुदाई सलामत मज़े आ रहे हैं
बहारों में भी मय से परहेज़ तौबा
'ख़ुमार' आप काफ़िर हुए जा रहे हैं
अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं
मेरी याद से जंग फ़रमा रहे हैं
इलाही मेरे दोस्त हों ख़ैरियत से
ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं
बहुत ख़ुश हैं गुस्ताख़ियों पर हमारी
बज़ाहिर जो बरहम नज़र आ रहे हैं
ये कैसी हवा-ए-तरक्की चली है
दीये तो दीये दिल बुझे जा रहे हैं
बहिश्ते-तसव्वुर के जलवे हैं मैं हूँ
जुदाई सलामत मज़े आ रहे हैं
बहारों में भी मय से परहेज़ तौबा
'ख़ुमार' आप काफ़िर हुए जा रहे हैं
3.
ऐ मौत उन्हें भुलाए ज़माने गुज़र गए
ऐ मौत उन्हें भुलाए ज़माने गुज़र गए
आ जा कि ज़हर खाए ज़माने गुज़र गए
ओ जाने वाले! आ कि तेरे इंतज़ार में
रस्ते को घर बनाए ज़माने गुज़र गए
ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास
सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए
क्या लायक़-ए-सितम भी नहीं अब मैं दोस्तों
पत्थर भी घर में आए ज़माने गुज़र गए
जाने-बहार फूल नहीं आदमी हूँ मैं
आ जा कि मुस्कुराए ज़माने गुज़र गए
क्या-क्या तवक्कोअत थी आहों से ऐ 'ख़ुमार'
यह तीर भी चलाए ज़माने गुज़र गए
ऐ मौत उन्हें भुलाए ज़माने गुज़र गए
आ जा कि ज़हर खाए ज़माने गुज़र गए
ओ जाने वाले! आ कि तेरे इंतज़ार में
रस्ते को घर बनाए ज़माने गुज़र गए
ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास
सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए
क्या लायक़-ए-सितम भी नहीं अब मैं दोस्तों
पत्थर भी घर में आए ज़माने गुज़र गए
जाने-बहार फूल नहीं आदमी हूँ मैं
आ जा कि मुस्कुराए ज़माने गुज़र गए
क्या-क्या तवक्कोअत थी आहों से ऐ 'ख़ुमार'
यह तीर भी चलाए ज़माने गुज़र गए
4.
मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया
मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया
तुम क्यों उदास हो गए क्या याद आ गया
कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख़्तसर मगर
कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया
वाइज़ सलाम ले कि चला मैकदे को मैं
फिरदौस-ए-गुमशुदा का पता याद आ गया
बरसे बगैर ही जो घटा घिर के खुल गई
एक बेवफ़ा का अहद-ए-वफ़ा याद आ गया
मांगेंगे अब दुआ के उसे भूल जाएँ हम
लेकिन जो वो बवक़्त-ऐ-दुआ याद आ गया
हैरत है तुम को देख के मस्जिद में ऐ 'ख़ुमार'
क्या बात हो गई जो ख़ुदा याद आ गया
4.
वो खफा है तो कोई बात नहीं
वो खफा है तो कोई बात नहीं
इश्क मोहताज-ए-इल्त्फाक नहीं
दिल बुझा हो अगर तो दिन भी है रात नहीं
दिन हो रोशन तो रात रात नहीं
दिल-ए-साकी मैं तोड़ू-ए-वाइल
जा मुझे ख्वाइश-ए-नजात नहीं
ऐसी भूली है कायनात मुझे
जैसे मैं जिस्ब-ए-कायनात नहीं
पीर की बस्ती जा रही है मगर
सबको ये वहम है कि रात नहीं
मेरे लायक नहीं हयात "ख़ुमार"
और मैं लायक-ए-हयात नहीं
5.
सुना है वो हमें भुलाने लगे है
सुना है वो हमें भुलाने लगे है
तो क्या हम उन्हे याद आने लगे है
हटाए थे जो राह से दोस्तो की
तो पत्थर मेरे घर में आने लगे है
ये कहना थ उनसे मुहब्ब्त हौ मुझको
ये कहने मे मुझको ज़माने लगे है
कयामत यकीनन करीब आ गई है
"ख़ुमार" अब तो मस्ज़िद में जाने लगे है
मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया
तुम क्यों उदास हो गए क्या याद आ गया
कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख़्तसर मगर
कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया
वाइज़ सलाम ले कि चला मैकदे को मैं
फिरदौस-ए-गुमशुदा का पता याद आ गया
बरसे बगैर ही जो घटा घिर के खुल गई
एक बेवफ़ा का अहद-ए-वफ़ा याद आ गया
मांगेंगे अब दुआ के उसे भूल जाएँ हम
लेकिन जो वो बवक़्त-ऐ-दुआ याद आ गया
हैरत है तुम को देख के मस्जिद में ऐ 'ख़ुमार'
क्या बात हो गई जो ख़ुदा याद आ गया
4.
वो खफा है तो कोई बात नहीं
वो खफा है तो कोई बात नहीं
इश्क मोहताज-ए-इल्त्फाक नहीं
दिल बुझा हो अगर तो दिन भी है रात नहीं
दिन हो रोशन तो रात रात नहीं
दिल-ए-साकी मैं तोड़ू-ए-वाइल
जा मुझे ख्वाइश-ए-नजात नहीं
ऐसी भूली है कायनात मुझे
जैसे मैं जिस्ब-ए-कायनात नहीं
पीर की बस्ती जा रही है मगर
सबको ये वहम है कि रात नहीं
मेरे लायक नहीं हयात "ख़ुमार"
और मैं लायक-ए-हयात नहीं
5.
सुना है वो हमें भुलाने लगे है
सुना है वो हमें भुलाने लगे है
तो क्या हम उन्हे याद आने लगे है
हटाए थे जो राह से दोस्तो की
तो पत्थर मेरे घर में आने लगे है
ये कहना थ उनसे मुहब्ब्त हौ मुझको
ये कहने मे मुझको ज़माने लगे है
कयामत यकीनन करीब आ गई है
"ख़ुमार" अब तो मस्ज़िद में जाने लगे है
जनाबे वाला,
ReplyDeleteआपने जो तस्वीर यहाँ पेश की है, मुझे नहीं लगता ये ख़ुमार साहब की है. यह तस्वीर तलत मेहमूद की लग रही है जो फिल्मी दुनिया के मशहूर गायक थे.
तलत महमूद साहब ने अपनी आवाज़ दी थी. इस गीत को ख़ुमार बाराबंकवी साहब ने ही लिखा था.
Deleteतस्वीर ख़ुमार साहब की नहीं है. ये तलत महमूद जी की है
Deleteतस्वीर ख़ुमार साहब की नहीं है. ये तलत महमूद जी की है
Delete