Tuesday, 9 April 2013

वो बहकती रातें

आज किसी ने
तुम्हारा ज़िक्र छेड़ा
और याद आ गई
मोहब्बत की बातें

वो नज़र के सलाम,
वो निगाहों से बातें,
वो महकते दिन,
वो बहकती रातें

दिल को रहता था
हरपल, मेरे हमदम
तुम्हारा ही इंतज़ार, इंतज़ार
बस इंतज़ार

हर आहट पर
लगता था
ये तुम हो,
तुम ही हो,
तुम ही तो, नहीं हो।

ख़त में भी लिखा करते थे
हम तुम्हें
ऐसी कितनी ही बातें

तुम कभी
मिलो तो सही, जानम,
हम कह देंगे तुमसे
कि किस तरह
तुम्हारें बिन
हमने काटे है दिन
गुजारी है रातें
-आराधना सिंह

Sunday, 7 April 2013

देखा जब भी

देखा जब भी
गुजरे हुए सालो की तरफ
याद आया
मोहब्बतों का वो ज़माना

जब
दिल की तेज़ होती
धडकनों को छिपाते थे
सुबहो-शाम तुम्हारा ही
इंतज़ार करते
फिर भी ये बातें
तुन्हीं से छिपाते थे

और तुम भी तो
एक मेरी खातिर
सारे ज़माने से
कितना झूठ
बोल जाते थे

फुरसत में सोचो तो
लगता है
ये लम्हां
अभी अभी तो
गुज़रा है

मोहब्बतों में
यही दिलचस्प है, कि
किरदार तो मरते रहते है
लेकिन
इसकी दास्ताँ हमेशा
दोहराई जाती है
और यादें,
वो तो
सदाबहार जवां,
अमर बनी रहती है
-आराधना सिंह

क्या ज़माने थे

वो भी
क्या ज़माने थे
जब हम तुम्हें
ख़त लिखा करते थे

एक-एक
लफ्ज़ लिखने
से पहले
सौ-सौ बार
सोचा करते थे

ख़त में तुम्हें
दिल का
हर वाकया,
पैगामे-मुहब्बत
लिखा करते थे

होते थे तुम
हमारे खुदा
और हम तुमसे
ख़त के बहाने
फ़रियाद
किया करते थे

मुद्दतों बाद
मिलने पर
तुमने कहा,
तो तुम्हें
याद है
कि कभी तुम, हमें
ख़त लिखा करते थे

कहाँ गए वो ज़माने
जब तुम
हमारे हुआ करते थे
-आराधना सिंह

मेरे कदम

मेरे कदम
आज भी भटकते हुए
तुम्हारें दर की तरफ
क्यूँ जाते है ?

जैसे कि तुम
बुलाते हो मुझे,
मेरे कानों में सदा,
ये ही सदा
क्यूँ गूंजती है ?

दिल
सँभलने को तो
जैसे भी हो
संभल ही जाता है

लेकिन फिर
मुझे हरपल
तुम्हारा इंतज़ार
क्यूँ रहता है ?

मुझे हरदम
तुम्हारी इतनी याद
क्यूँ आती है ?
-आराधना सिंह

कुछ दिन पहले

कुछ दिन पहले
देखा था,
मैंने तुम्हें,
तुम्हारी पूरी
शानो-शौकत के साथ

सच में सनम,
दिल को करार,
नज़रों को सुकून
मिला

उन लम्हें को
नज़रों में
हमेशा के लिए
कैद करते हुए
दिल ने कहा,
रुक भी जाओ,
कहीं नहीं जाओ ..
मेरी ज़िन्दगी है, यहाँ
यही है, मेरी ज़िन्दगी !
-आराधना सिंह

Friday, 5 April 2013

मोहब्बतों का वो ज़माना

देखा जब भी
गुजरे हुए सालो की तरफ
याद आया
मोहब्बतों का वो ज़माना

जब
दिल की तेज़ होती
धडकनों को छिपाते थे
सुबहो-शाम तुम्हारा ही
इंतज़ार करते
फिर भी ये बातें
तुन्हीं से छिपाते थे

और तुम भी तो
एक मेरी खातिर
सारे ज़माने से
कितना झूठ
बोल जाते थे

फुरसत में सोचो तो
लगता है
ये लम्हां
अभी अभी तो
गुज़रा है

मोहब्बतों में
यही दिलचस्प है, कि
किरदार तो मरते रहते है
लेकिन
इसकी दास्ताँ हमेशा
दोहराई जाती है
और यादें,
वो तो
सदाबहार जवां,
अमर बनी रहती है
-आराधना सिंह

धरती और औरत

धरती
सब कुछ सहन कर लेती है
चाहे हो
बादलों का कहर बरपाना,
बरसना, बेरहमी से

या हो
बादलों का तरसा जाना,
नहीं बरसना, बेरहमी से

वह सह लेती है
बहुत सी बार
अनगिनत बरसातें

सह लेती है
सूखती नदियों,
तालाबों के दर्द

सब कुछ
सह लेती है वह
और रखती है
अपने भीतर
खारे समन्दरों,
तपते रेगिस्तानों की
अनकही वेदना

सब सहते-सहते
जब सहना
बर्दाश्त से बाहर
हो जाता है तो
फट पड़ती है, वह
धरती के भीतर से बाहर
आते है, कई
धधकते ज्वालामुखी,
विनाशकारी जलजले और सुनामी
मच जाता है
सब और हाहाकार
रो लेती है
वह खुद को कष्ट दे कर
फिर शांत भी हो जाती है

क्या तुम जानते हो?
धरती की फितरत
औरत से इतनी
मिलती-जुलती
क्यों होती है?
-आराधना सिंह

फिर गुजरे उन्हीं रास्तों से

आज
फिर गुजरे
उन्हीं रास्तों से
जिन रास्तों पर
हम कभी बिछड़े थे

एक तुझसे
बिछड़ने के बाद
कल तक के
जाने-पहचाने
रास्तों ने, इंसानों ने,
सब ने
इस तरह
अजनबी निगाहों से,
देखा मुझे ..
जैसे मेरा,
इन रास्तों से
कभी कोई वास्ता ही
न रहा हो

कभी-कभी
एक शख्स के
बिछड़ने से,
ज़िन्दगी में,
कितना कुछ
बदल जाता है,
पूरी ज़िन्दगी ही
बदल जाती है
-आराधना सिंह

वादा तो नहीं था

ऐसा कोई
वादा तो नहीं था
हमारे दरम्यां

फिर भी एक
उम्र गुज़ार दी
तेरे साथ यूँ ही
ख्वाबों-ख्यालों की
महफ़िलें सज़ा कर

किनारा करते रहे
हकीकत की
दुनिया से

मुलाकातें होती रही
तुझसे
तेरी यादों के साथ

अब तो आदत सी
हो गई है
हमेशा यूँ ही तेरे
साथ रहने ही

बिछड़ कर
बहुत दूर
आ गए है हम
फिर भी
मेरे दिल को
आज भी तुमसे
इतनी उम्मीदें
क्यूँ है?
-आराधना सिंह

Wednesday, 3 April 2013

जब भी शिकस्त खाई

दिल ने
जब भी
शिकस्त खाई
मुझे तुम्हारी वफायें
बहुत याद आई

और याद आया
तुम्हारा
मेरे करीब से
गुज़र जाना,
चार कदम
आगे जा कर
ठहर जाना,
मुड़ कर तसल्ली करना
कि क्या मेरी निगाहें
तुम्हारा पीछा कर रही है ?

फिर
एक दिन
बातों-बातों में
तुम्हारा
मुझसे पूछ ये लेना कि
मोहब्बतों के खेल में
क्या होता है?

और याद आता है
इस पर
मेरा जवाब देना कि
ये खतरनाक खेल होता है,
जिंदगी में हमेशा
जीतने वाले भी
अक्सर
इसमें मात खा जाते है

सच, जब भी ये दिल
शिकस्त खाता है
दोस्त ! तुम
याद बेहिसाब आते हो
-आराधना सिंह

बहुत मुश्किल होता है

बहुत मुश्किल होता है
जीती हुई बाज़ी
हारने के बाद
एक हारी हुई
ज़िन्दगी को
जीते रहना

बहुत मुश्किल होता है
बिना साथी के
कंटीली राहों से
अकेले
दामन बचा कर
गुजरना

आसान तो होता है
ये कह देना कि
खुद को संभाल लेंगे,
यादो के सहारे
जी लेंगे,पर

बहुत मुश्किल होता है
इतिहास बनी यादों
के साथ तन्हा जीवन
बसर करना
-आराधना सिंह