Saturday, 30 March 2013

मेरे दोस्त, मेरे महबूब

मेरे दोस्त,
मेरे महबूब
तुमसे जुदा होने के बाद
बदलती तारीखों के साथ
कितने ही
महीने, बरस, केलेन्डर
बदल गए

कितने ही मौसम
आए और चले गए
दुनिया में
अनगिनत उलट बासी
फेर बदल हुए

पूरी सृष्टि में सबकुछ
बदला-बदला सा है
लोगो के बदलते
मिजाज़ जैसा

लेकिन दोस्त
तुम
बिल्कुल नहीं बदले
बरसो बाद भी
वही पुराना अंदाज़,
वही चाहत,
उसी तरह से
बड़ी शिद्दत से मिलना
और हँसते हुए कहना
साहिल हूँ मैं तुम्हारा
कहाँ जाओगे ?
लौट कर
मेरे पास ही आओगे
-आराधना सिंह

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