Friday, 29 March 2013

चाहतों में

चाहतों में
बिछड़ने पर भी
हमारे पास
रह जाती है
कुछ अमिट
निशानियाँ

जो सदैव
महफूज़ रहती है
हमारे साथ
हमसाया बन कर

देती है भरोसा
किसी के होने का
तब भी
जबकि हमारा
मिलना न हो पाता हो
अपने बिछड़े
महबूब से
बरसो-बरस तक
और कई बार तो
मरते दम तक

फिर भी निशानियाँ
बनी रहती है
हमारे साथ :
धरोहर बन कर
विरासत बन कर
इतिहास बन कर

उनके होने से
महकने लगती है
समस्त फिजाएँ
अनगिनत फूलों की
सुवासित गंध से

जीवंत हो उठती है
अतीत की
कई तस्वीरें
निगाहों के सामने

और दिल
फिर से ढूंढ़ ही लेता है
जीने के बहाने
इन्हीं
निशानिओं के बहाने
-आराधना सिंह

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