Sunday, 30 September 2012

Bashir Badr, बशीर बद्र की शायरी

Bashir Badr
 February 15, 1935
1.
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी 
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता

जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता

अपना दिल भी टटोल कर देखो
फासला बेवजह नही होता

कोई काँटा चुभा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता

गुफ़्तगू उनसे रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता

रात का इंतज़ार कौन करे
आज कल दिन में क्या नहीं होता

2.
  आँसूओं की जहाँ पायमाली रही
 आँसूओं की जहाँ पायमाली रही
ऐसी बस्ती चराग़ों से ख़ाली रही

दुश्मनों की तरह उस से लड़ते रहे
अपनी चाहत भी कितनी निराली रही

जब कभी भी तुम्हारा ख़याल आ गया
फिर कई रोज़ तक बेख़याली रही

लब तरसते रहे इक हँसी के लिये
मेरी कश्ती मुसाफ़िर से ख़ाली रही

चाँद तारे सभी हम-सफ़र थे मगर
ज़िन्दगी रात थी रात काली रही

मेरे सीने पे ख़ुशबू ने सर रख दिया
मेरी बाँहों में फूलों की डाली रही 

3.
कभी यूं भी आ मेरी आंख में
कभी यूं भी आ मेरीआंख में, कि मेरी नजर को खबर ना हो
मुझे एक रात नवाज दे, मगर उसके बाद सहर ना हो

वो बड़ा रहीमो करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूं तो मेरी दुआ में असर ना हो

मेरे बाज़ुऔं में थकी थकी, अभी महवे ख्वाब है चांदनी ना उठे
सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुजर ना हो

ये गज़ल है जैसे हिरन की आंखों में पिछली रात की चांदनी
ना बुझे खराबे की रौशनी, कभी बेचिराग ये घर ना हो

वो फ़िराक हो या विसाल हो, तेरी याद महकेगी एक दिन
वो गुलाब बन के खिलेगा क्या, जो चिराग बन के जला ना हो

कभी धूप दे, कभी बदलियां, दिलोज़ान से दोनो कुबूल हैं
मगर उस नगर में ना कैद कर, जहां ज़िन्दगी का हवा ना हो

कभी यूं मिलें कोई मसलेहत, कोई खौफ़ दिल में जरा ना हो
मुझे अपनी कोई खबर ना हो, तुझे अपना कोई पता ना हो

वो हजार बागों का बाग हो, तेरी बरकतो की बहार से
जहां कोई शाख हरी ना हो, जहां कोई फूल खिला ना हो

तेरे इख्तियार में क्या नहीं, मुझे इस तरह से नवाज दे
यूं दुआयें मेरी कूबूल हों, मेरे दिल में कोई दुआ ना हो

कभी हम भी इस के करीब थे, दिलो जान से बढ कर अज़ीज़ थे
मगर आज ऐसे मिला है वो, कभी पहले जैसे मिला ना हो

कभी दिन की धूप में झूम कर, कभी शब के फ़ूल को चूम कर
यूं ही साथ साथ चले सदा, कभी खत्म अपना सफ़र ना हो

मेरे पास मेरे हबीब आ, जरा और दिल के करीब आ
तुझे धडकनों में बसा लूं मैं, कि बिछडने का कभी डर ना हो.

4.
ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है 
ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है
दुनिया उंहीं फूलों कोपैरों से मसलती है

शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है

लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख दे
यूँ याद तेरी शब भर सीने में सुलगती है

आ जाता है ख़ुद खेँच कर दिल सीने से पटरी पर
जब रात की सरहद से इक रेल गुज़रती है

आँसू कभी पलकों पर ता देर नहीं रुकते
उड़ जाते हैं उए पंछी जब शाख़ लचकती है

ख़ुश रंग परिंदों के लौट आने के दिन आये
बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है

5.
 चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे 
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे
चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे

इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे

मैं समझता था मुहब्बत की ज़बाँ ख़ुश्बू है
फूल से लोग इसे ख़ूब समझते होंगे

भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वाले
आज के प्यार को मायूब समझते होंगे

6.
 अदब की हद में हूं मैं बेअदब नहीं होता 
अदब की हद में हूं मैं बेअदब नहीं होता।
तुम्हारा तजिकरा अब रोज़-ओ-शब नहीं होता।

कभी-कभी तो छलक पड़ती हैं यूं ही आंखें,
उदास होने का कोई सबब नहीं होता।

कई अमीरों की महरूमियां न पूछ कि बस,
ग़रीब होने का एहसास अब नहीं होता।

मैं वालिदैन को ये बात कैसे समझाउं,
मोहब्बतों में हबस-ओ-नसब नहीं होता।

वहां के लोग बड़े दिलफरेब होते हैं,
मेरा बहकना भी कोई अजब नहीं होता।

मैं इस ज़मीन का दीदार करना चाहता हूं,
जहां कभी भी खुदा का ग़ज़ब नहीं होता।

7.
 कोई लश्कर है कि बढ़ते हुए गम आते हैं
 कोई लश्कर है कि बढ़ते हुए गम आते हैं
शाम के साये बहुत तेज कदम आते हैं

दिल वो दरवेश है जो आंख उठाता ही नहीं
उसके दरवाजे पर सौ अहल-ए-करम आते हैं

मुझसे क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए
कभी सोने, कभी चांदी के कलम आते हैं

मैंने दो-चार किताबें तो पढ़ी हैं लेकिन
शहर के तौर-तरीके मुझे कम आते हैं

खूबसूरत-सा कोई हादसा आंखों में लिए
घर की दहलीज पर डरते हुए हम आते हैं

8.
 न जी भर के देखा न कुछ बात की 
न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की

उजालों की परियाँ नहाने लगीं
नदी गुनगुनाई ख़यालात की

मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई
ज़ुबाँ सब समझते हैं जज़्बात की

सितारों को शायद ख़बर ही नहीं
मुसाफ़िर ने जाने कहाँ रात की

मुक़द्दर मेरे चश्म-ए-पुर अब का
बरसती हुई रात बरसात की 

9.
 दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे

जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों

बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहाँ दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता

तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता

तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था।
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला

ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है 

10.
 याद किसी की चाँदनी बन कर कोठे कोठे उतरी है
याद किसी की चाँदनी बन कर कोठे कोठे उतरी है

याद किसी की धूप हुई है ज़ीना ज़ीना उतरी है

रात की रानी सहन-ए-चमन में गेसू खोले सोती है
रात-बेरात उधर मत जाना इक नागिन भी रहती है

तुम को क्या तुम ग़ज़लें कह कर अपनी आग बुझा लोगे
उस के जी से पूछो जो पत्थर की तरह चुप रहती है

पत्थर लेकर गलियों गलियों लड़के पूछा करते हैं
हर बस्ती में मुझ से आगे शोहरत मेरी पहुँचती है

मुद्दत से इक लड़की के रुख़्सार की धूप नहीं आई
इसी लिये मेरे कमरे में इतनी ठंडक रहती है

11.
 वो थका हुआ मेरी बाहों में ज़रा सो गया था तो क्या हुआ
 वो थका हुआ मेरी बाहों में ज़रा सो गया था तो क्या हुआ
अभी मैंने देखा है चाँद भी किसी शाख़-ए-गुल पे झुका हुआ

जिसे ले गई है अभी हवा वो वरक़ था दिल की किताब का
कहीं आँसुओं से मिटा हुआ कहीं आँसुओं से लिखा हुआ

कई मील रेत को काट कर कोई मौज फूल खिला गई
कोई पेड़ प्यास से मर रहा है नदी के पास खड़ा हुआ

मुझे हादसों से सजा सजा के बहुत हसीन बना दिया
मेरा दिल भी जैसे दुल्हन का हाथ हो मेहदियों से रचा हुआ

वही ख़त के जिस पे जगह जगह दो महकते होंठों के चाँद थे
किसी भूले-बिसरे से ताक़ पर तह-ए-गर्द होगा दबा हुआ

वही शहर है वही रास्ते वही घर है और वही लान भी
मगर उस दरीचे से पूछना वो दरख़्त अनार का क्या हुआ

मेरे साथ जुगनू है हमसफ़र मगर इस शरर की बिसात क्या
ये चराग़ कोई चराग़ है न जला हुआ न बुझा हुआ

12.
ये चिराग़ बेनज़र है ये सितारा बेज़ुबाँ है
ये चिराग़ बेनज़र है ये सितारा बेज़ुबाँ है

अभी तुझसे मिलता जुलता कोई दूसरा कहाँ है

वही शख़्स जिसपे अपने दिल-ओ-जाँ निसार कर दूँ
वो अगर ख़फ़ा नहीं है तो ज़रूर बदगुमाँ है

कभी पा के तुझको खोना कभी खो के तुझको पाना
ये जनम जनम का रिश्ता तेरे मेरे दरमियाँ है

मेरे साथ चलनेवाले तुझे क्या मिला सफ़र में
वही दुख भरी ज़मीं है वही ग़म का आस्माँ है

मैं इसी गुमाँ में बरसों बड़ा मुत्मइन रहा हूँ
तेरा जिस्म बेतग़ैय्युर है मेरा प्यार जाविदाँ है

उंहीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे
मुझे रोक रोक पूछा तेरा हमसफ़र कहाँ है
 

13.
 अपनी खोयी हुयी जन्नतें पा गए जीस्त के रास्ते भूलते भूलते 
 अपनी खोयी हुयी जन्नतें पा गए जीस्त के रास्ते भूलते भूलते
मौत की वादियों में कहीं खो गए तेरी आवाज़ को ढूंढते ढूंढते

मस्त-ओ-सरशार थे कोई ठोकर लगी आसमान से ज़मीं पर यूँ हम आगये
शाख से फूल जैसे कोई गिर पड़े रक़-से आवाज़ पर झूमते झूमते

कोई पत्थर नहीं हूँ के जिस शक्ल में मुझ को चाहो बनाया बिगाड़ा करो
भूल जाने की कोशिश तो की थी मगर याद तुम आगये भूलते भूलते

ऑंखें आंसू भरी पलकें बोझल घनी, जैसे झीलें भी हों नर्म साए भी हों
वो तो कहिये उन्हें कुछ हंसी आगई बच गए आज हम डूबते डूबते 

अब वो गेसू नहीं हैं जो साया करें अब वो शाने नहीं जो सहारा बनें
मौत के बाज़ुओ तुम ही आगे बढ़ो थक गए हम आज घूमते घूमते

दिल में जो तीर हैं अपने ही तीर हैं अपनी ज़ंजीर से पांव ज़ंजीर हैं
संग रेज़ों को हम ने खुदा कर दिया आखिर रात दिन पूजते पूजते  

Bashir Badr Shayari in English
1.
 Aankhon mein rahaa dil mein utarkar nahin dekha
Kishti ke musafir ne samandar nahin dekha

Bewaqt agar jaunga sab chonk padenge
Ik umr hui din mein kabhi ghar nahin dekha

lis din se chala hun miri manzil pe nazar hai
Aankon ne kabhi meel ka patthar nahin dekha

Ye phool mujhe koi wirasat mein mile hein
Tumne mira kanton bhara bistar nahin dekha

Patthar mujhe kahta hai mira chahne wala
Main mom hun usne mujhe chhookar nahin dekha 

2.
Aansuon se dhuli khushki ki tarah
Rishte hote hain shayri ki tarah

Ham khuda ban key aayenge warna
Ham se mil jao aadmi ki tarah

Barf seene ki jaise jaise gali
Aankh khulti gayi kali ki tarah

Jab kabhi badlon me in ghirta hai
Chand lagta hai aadmi ki tarah

Kisi rozan kisi dareeche se
Saamne aao roshni ki tarah

Sab nazar ka fareb hai warna
Koi hota nahin kisi ki tarah

Khubsoorat udaas Khaufzada
Woh bhi hai beeswin sadi ki tarah

Janta hun ki eik din mujhko
wo badal dega dayri ki tarah  

3.
 Aaya hi nahin hamko aahista guzar jaana
Sheeshe ka muqaddar hai takraa key bikhar jaana

Taaron ki tarah shab key seene mein utar jaana
Aahat na ho qadmon ki is tarh guzar j aana

Nashe mein sanbhalne ka fan yun hi nahin aata
In zulfon se seekha hai lahra key sanwar jaana

Bhar jaayenge aankhon mein aanchal se bandhe baadal
Yaad aayega jab gul par shabnam ka bikhar jaana

Har mod pe se do aankhen hamse yahi kahti hain
Jis tarh bhi mumkin ho turn laut key ghar jaana

Patthar ko mira saaya aaina sa chamka de
J aana to mira sheesha yun dard se bhar j aana

Ye chaand sitaare turn auron key liye rakh lo
Ham ko yahin j eena hai ham ko yahin mar jaana

Jab toot gaya rishta sar-sabz pahaadon se
Phir tez hawaa jane kis ko hai kidhar jaana

4.
Aansuon key saath sab kuchh bah gaya
Dil mein sannata sa baqi rah gaya

Chhod aaya hun zameen-o-aasman
Fasila ab aur kitna rah gaya 

5.
Aas hogi na aasra hoga
Ane wale dinon mein kya hoga

Main tujhe bhul jaunga ek din
Wagtsab kuchh badal chuka hoga

Naam ham ne likha tha ankhon mein
Ansuon ne mita diya hoga

Aasman bhar gaya parindon se
Ped koi hara gira hoga

Kitna dushwaar tha safar uska
Wo sareshaam so gaya hoga  

6.
 Ab dilon key alaawa padhna kya
Apna kaghaz qalarn se rishta kya

Aansuon se rniri hatheli par
Kaun padhta ke usne likkha kya

Ek rnahak jaise raat ki raani
Kya bataaoun ke usne socha kya

Jab bhi dekho usi taraf nazren
Chaand bhi hai kisi ka chehra kya

Turn rneri zindagi ho yeh sach hai
Zindagi ka rnagar bharosa kya


 7.
Ab kise chahen kise dhunda karen
Wo bhi akhir mil gaya ab kya karen

Halki halki barishen hoti rahen
Ham bhi phoolon ki tarah bhiga karen

Aankh munde is gulabi dhoop mein
Der tak baithe use socha karen

Dil mohabbat deen duniya shairi
Har dareeche se tujhe dekha karen

Ghar naya kapde naye bartan naye
In purane kaghazon ka kya karen 

8.
 Achchha tumhare shehr ka dastoor ho gaya
Jisko gale laga liya woh door ho gaya

Kaghaz mein dab key margaye keedey kitab ke
Deewana be padhe likhe mashhoor ho gaya

Mehlon mein ham ne kitne sitaare saja diye
Lekin zamin se chand bahut door ho gaya

Tanhaiyon ne tod di ham donon ki ana
Aina baat karne pe majboor ho gaya

Subhe visaal punch rahi hai ajab sawaal
Woh paas aagaya ke bahut door ho gaya

Kuchh phal zaroor ayenge roti key ped mein
Jis din mera matalba manzoor ho gaya 

9.
 Abhi is taraf na nigaah kar main ghazal ki palken sanwaar lun
Mira lafz lafz ho aina tujhe aine me in utar lun

Main tamaam din ka thaka hua Tu tamaam shab ka jaga hua
Zara thehr ja isi mod par tere saath shaam guzaar lun

Agar aasman ki numaishon mein mujhe bhi izne qyam ho
To main motiyon ki dukan se teri baliyan tire haar lun

Kahin aur bant de shohratein kahin aur bakhsh de izzatein
Mire paas hai mira aina main kabhi na gard-o-ghubaar lun

Kai ajnabi teri raah mein mire paas se yun guzar gaye
Jinhe dekhkar ye tadap hui tira naam Ie ke pukaar lun 

10.
 Agar talaash karun koi mil hi jayega
Magar tumhari tarah kaun mujhko chahega

Tumhen zaroor koi chahaton se dekhega
Magar wo aankhen hamaari kahan se layega

Na jane kab tire dil par nayi si dastak ho
Makaan khali hua hai to koi ayega

Main apni raah mein deewar ban key baitha hun
Agar wo aaya to kis raaste se ayega

Tumhare saath ye mausam farishton jaisa hai
Tumhare baad ye mausam bahut sataayega 

11.
 Apni jagah jame hain kahne ko kah rahe they
Sab log warna bahte darya mein bah rahe they

Aisa laga ki ham turn kohre mein chal rahe hon
Do phool oonchi neechi lahron par bah rahe they

Dil ujle paak phoolon se bhar diya tha kisne
Us din hamaari aankhon se ashk bah rahe they

Aksar sharaab peekar padti thi wo duaen
Ham eik aisi ladki key saath rah rahe they

Akhbaar mein to koi aisi khabar nahin thi
Jhulse makaan jhute afsaane kah rahe they 

12.
 Bade taj iron ki sataayi hui
Ye duniya dulhan hai jalayi hui

Bhari dopahar ka khila phool hai
Paseene mein ladki nahayi hui

Kiran phool ki pattiyon mein dabi
Hansi uske honton pe aayi hui

Wo chehra kitabi raha samne
Badi khubsoorat padhayi hui

Khushi gham gharibon kijaise miyan
Mazaaron pe chaadar chadayi hui 

13.
Apni khoyi huyi jannaten pa gaye zeest key raaste bhulte bhulte
Maut ki waadiyon mein kahin kho gaye teri aawaz ko dhundte dhundte

Mast-o-sarshar they koi thokar lagi aasman se zamin par yun ham aagaye
Shakh se phool jaise koi gir pade raq-se awaz par jhumte jhumte

Koi patthar nahin hun ke jis shakl mein mujh ko chaho banaya bigada karo
Bhool jaane ki koshish to ki thi magar yaad tum agaye bhulte bhulte

Ankhen ansu bhari palken bojhal ghani,jaise helen bhi honnarm saayebhi hon
Woto kahiye unhen kuchh hansi agayi bach gaye aaj ham dubte dubte

Ab wo gesu nahin hein jo saaya karen ab wo shaane nahin jo sahara banen
Maut ke bazuo tum hi aage badho thak gaye ham aaj ghumte ghumte

Dil meinjo teer hein apne hi teer hein apni zanjeer se paon zanjeer hein
Sang rezon ko ham ne khuda kar diya akhir raat din poojte poojte

14.
 Bewafa raaste badalte hein
Ham safar saath saath chalte hein

Kiske aansoo chhupe hein phoolon mein
Choomta hun to hont jalte hein

Uski aankhon ko ghaur se dekho
Mandiron mein chiragh jalte hein

Eik deewar wo bhi shishey ki
Do badan paas paas j altey hein

Kaanch key, motiyon key, aansu key
Sab khilone ghazal mein dhalte hein

Saturday, 29 September 2012

Ahmad Nadeem Qasmi, शायर अहमद नदीम कासमी

Ahmad Nadeem Qasmi
Born November 20, 1916 – Died July 10, 2006

1.
क्या भला मुझ को परखने का नतीजा निकला
 क्या भला मुझ को परखने का नतीजा निकला
ज़ख़्म-ए-दिल आप की नज़रों से भी गहरा निकला

तोड़ कर देख लिया आईना-ए-दिल तूने
तेरी सूरत के सिवा और बता क्या निकला

जब कभी तुझको पुकारा मेरी तनहाई ने
बू उड़ी धूप से तसवीर से साया निकला

तिश्नगी जम गई पत्थर की तरह होंठों पर
डूब कर भी तेरे दरिया से मैं प्यासा निकला

(तिश्नगी: प्यास) 
2.
 जब तेरा हुक्म मिला तर्क मुहब्बत कर दी
दिल मगर उस पे वो धडका कि क़यामत कर दी

तुझसे किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता
लफ़्ज़ सूझा तो मआनी ने बग़ावत कर दी

मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले
तूने जाकर तो जुदाई मेरी कि़स्मत कर दी

मुझको दुश्मन के वादों पे भी प्यार आता है
तेरी उल्फ़त ने मुहब्बत मेरी आदत कर दी

पूछ बैठा हूँ मैं तुझसे तेरे कूचे का पता
तेरी हालत ने कैसी तेरी सूरत कर दी
3. 
मरूँ तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊँ
मरूँ तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊँ
नदीम! काश यही एक काम कर जाऊँ

ये दश्त-ए-तर्क-ए-मुहब्बत ये तेरे क़ुर्ब की प्यास
जो इज़ाँ हो तो तेरी याद से गुज़र जाऊँ

मेरा वजूद मेरी रूह को पुकारता है
तेरी तरफ़ भी चलूं तो ठहर ठहर जाऊँ

तेरे जमाल का परतो है सब हसीनों पर
कहाँ कहाँ तुझे ढूंढूँ किधर किधर जाऊँ

मैं ज़िन्दा था कि तेरा इन्तज़ार ख़त्म न हो
जो तू मिला है तो अब सोचता हूँ मर जाऊँ

ये सोचता हूं कि मैं बुत-परस्त क्यूँ न हुआ
तुझे क़रीब जो पाऊँ तो ख़ुद से डर जाऊँ

किसी चमन में बस इस ख़ौफ़ से गुज़र न हुआ
किसी कली पे न भूले से पाँव धर जाऊँ

ये जी में आती है तख़्लीक़-ए-फ़न के लम्हों में
कि ख़ून बन के रग-ए-संग में उतर जाऊँ
4. 
रेत से बुत न बना मेरे अच्छे फ़नकार
रेत से बुत न बना मेरे अच्छे फ़नकार
एक लम्हे को ठहर मैं तुझे पत्थर ला दूँ

मैं तेरे सामने अम्बार लगा दूँ लेकिन
कौन से रंग का पत्थर तेरे काम आएगा

सुर्ख़ पत्थर जिसे दिल कहती है बेदिल दुनिया
या वो पत्थराई हुई आँख का नीला पत्थर

जिस में सदियों के तहय्युर के पड़े हों डोरे
क्या तुझे रूह के पत्थर की जरूरत होगी

जिस पे हक़ बात भी पत्थर की तरह गिरती है
इक वो पत्थर है जिसे कहते हैं तहज़ीब-ए-सफ़ेद

उस के मर-मर में सियाह ख़ून झलक जाता है
इक इन्साफ़ का पत्थर भी होता है मगर

हाथ में तेशा-ए-ज़र हो तो वो हाथ आता है
जितने मयार हैं इस दौर के सब पत्थर हैं

शेर भी रक्स भी तस्वीर-ओ-गिना भी पत्थर
मेरे इलहाम तेरा ज़हन-ए-रसा भी पत्थर

इस ज़माने में हर फ़न का निशां पत्थर है
हाथ पत्थर हैं तेरे मेरी ज़ुबां पत्थर है

रेत से बुत न बना ऐ मेरे अच्छे फ़नकार
 

5.
 किस को क़ातिल मैं कहूं किस को मसीहा समझूं
किस को क़ातिल मैं कहूं किस को मसीहा समझूं
सब यहां दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूं

वो भी क्या दिन थे की हर वहम यकीं होता था
अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूं

दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूं

ज़ुल्म ये है कि है यक्ता तेरी बेगानारवी
लुत्फ़ ये है कि मैं अब तक तुझे अपना समझूं 

6.
तुझे खोकर भी तुझे पाऊं जहाँ तक देखूँ 
तुझे खोकर भी तुझे पाऊं जहाँ तक देखूँ
हुस्न-ए-यज़्दां से तुझे हुस्न-ए-बुतां तक देखूं

तूने यूं देखा है जैसे कभी देखा ही न था
मैं तो दिल में तेरे क़दमों के निशां तक देखूँ

सिर्फ़ इस शौक़ में पूछी हैं हज़ारों बातें
मै तेरा हुस्न तेरे हुस्न-ए-बयां तक देखूँ

वक़्त ने ज़ेहन में धुंधला दिये तेरे खद्द-ओ-खाल
यूं तो मैं तूटते तारों का धुआं तक देखूँ


दिल गया था तो ये आँखें भी कोई ले जाता
मैं फ़क़त एक ही तस्वीर कहाँ तक देखूँ


एक हक़ीक़त सही फ़िरदौस में हूरों का वजूद
हुस्न-ए-इन्सां से निपट लूं तो वहाँ तक देखूँ

शब्दार्थ: हुस्न-ए-यज़्दां = भगवान की सुन्दरता, हुस्न-ए-बुतां=बुत/मूर्ति की सुन्दरता, खद्द-ओ-खाल=यादें / सूरत, फ़क़त= सिर्फ़

7.
अब तक तो नूर-ओ-निक़हत-ओ-रंग-ओ-सदा कहूँ
अब तक तो नूर-ओ-निक़हत-ओ-रंग-ओ-सदा कहूँ,
मैं तुझको छू सकूँ तो ख़ुदा जाने क्या कहूँ

लफ़्ज़ों से उन को प्यार है मफ़हूम् से मुझे,
वो गुल कहें जिसे मैं तेरा नक्श-ए-पा कहूँ

अब जुस्तजू है तेरी जफ़ा के जवाज़ की,
जी चाहता है तुझ को वफ़ा आशना कहूँ

सिर्फ़ इस के लिये कि इश्क़ इसी का ज़हूर है,
मैं तेरे हुस्न को भी सबूत-ए-वफ़ा कहूँ

तू चल दिया तो कितने हक़ाइक़ बदल गये,
नज़्म-ए-सहर को मरक़द-ए-शब का दिया कहूँ

क्या जब्र है कि बुत को भी कहना पड़े ख़ुदा,
वो है ख़ुदा तो मेरे ख़ुदा तुझको क्या कहूँ

जब मेरे मुँह में मेरी ज़ुबाँ है तो क्यूँ न मैं
जो कुछ कहूँ यक़ीं से कहूँ बर्मला कहूँ

क्या जाने किस सफ़र पे रवाँ हूँ अज़ल से मैं,
हर इंतिहा को एक नयी इब्तिदा कहूँ

हो क्यूँ न मुझ को अपने मज़ाक़-ए-सुख़न पे नाज़,
ग़ालिब को कायनात-ए-सुख़न का ख़ुदा कहूँ
8.
कौन कहता है कि मौत आयी तो मर जाऊँगा

कौन कहता है कि मौत आयी तो मर जाऊँगा
मैं तो दरिया हूं, समन्दर में उतर जाऊँगा

तेरा दर छोड़ के मैं और किधर जाऊँगा
घर में घिर जाऊँगा, सहरा में बिखर जाऊँगा

तेरे पहलू से जो उठूँगा तो मुश्किल ये है
सिर्फ़ इक शख्स को पाऊंगा, जिधर जाऊँगा

अब तेरे शहर में आऊँगा मुसाफ़िर की तरह
साया-ए-अब्र की मानिंद गुज़र जाऊँगा

तेरा पैमान-ए-वफ़ा राह की दीवार बना
वरना सोचा था कि जब चाहूँगा, मर जाऊँगा

चारासाज़ों से अलग है मेरा मेयार कि मैं
ज़ख्म खाऊँगा तो कुछ और संवर जाऊँगा

अब तो खुर्शीद को डूबे हुए सदियां गुज़रीं
अब उसे ढ़ूंढने मैं ता-बा-सहर जाऊँगा

ज़िन्दगी शमा की मानिंद जलाता हूं ‘नदीम’
बुझ तो जाऊँगा मगर, सुबह तो कर जाऊँगा
 

9.
मुझे कल मेरा एक साथी मिला

मुझे कल मेरा एक साथी मिला
जिस ने ये राज़ खोला
कि "अब जज्बा-ओ-शौक़ की वहशतों के ज़माने गए"

फिर वो आहिस्ता-आहिस्ता चारों तरफ़ देखता
मुझ से कहने लगा

"अब बिसात-ए-मुहब्बत लपेटो
जहां से भी मिल जाएं दौलत - समटो
ग़र्ज कुछ तो तहज़ीब सीखो"
10.
वो कोई और न था चंद ख़ुश्क पत्ते थे

वो कोई और न था चंद ख़ुश्क पत्ते थे,
शजर से टूट के जो फ़स्ल-ए-गुल पे रोए थे

अभी अभी तुम्हें सोचा तो कुछ न याद आया,
अभी अभी तो हम एक दूसरे से बिछड़े थे

तुम्हारे बाद चमन पर जब इक नज़र डाली,
कली कली में ख़िज़ां के चिराग़ जलते थे

तमाम उम्र वफ़ा के गुनाहगार रहे,
ये और बात कि हम आदमी तो अच्छे थे

शब-ए-ख़ामोश को तन्हाई ने ज़बाँ दे दी,
पहाड़ गूँजते थे दश्त सन-सनाते थे

वो एक बार मरे जिनको था हयात से प्यार,
जो जि़न्दगी से गुरेज़ाँ थे रोज़ मरते थे

नए ख़याल अब आते है ढल के ज़ेहन में,
हमारे दिल में कभी खेत लह-लहाते थे

ये इरतीक़ा का चलन है कि हर ज़माने में,
पुराने लोग नए आदमी से डरते थे

'नदीम' जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी,
कि एक चेहरे के पीछे हज़ार चेहरे थे
11.
साँस लेना भी सज़ा लगता है

साँस लेना भी सज़ा लगता है
अब तो मरना भी रवा लगता है

कोहे-ग़म पर से जो देखूँ,तो मुझे
दश्त, आगोशे-फ़ना लगता है

सरे-बाज़ार है यारों की तलाश
जो गुज़रता है ख़फ़ा लगता है

मौसमे-गुल में सरे-शाखे़-गुलाब
शोला भड़के तो वजा लगता है

मुस्कराता है जो उस आलम में
ब-ख़ुदा मुझ को ख़ुदा लगता है

इतना मानूस हूँ सन्नाटे से
कोई बोले तो बुरा लगता है

उनसे मिलकर भी न काफूर हुआ
दर्द ये सबसे जुदा लगता है

इस क़दर तुंद है रफ़्तारे-हयात
वक़्त भी रिश्ता बपा लगता है

मायने: रवा=ठीक; कोहे-ग़म=ग़म के पहाड़; दश्त=जंगल; आगोशे-फ़ना=मौत का आगोश; मौसमे-गुल=बहार का मौसम;
सरे-शाख़े-गुलाब= गुलाब की डाली पर; ब-ख़ुदा= ख़ुदा के लिए; काफूर=गायब होना; तुंद=प्रचण्ड;
 

12.
 हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहाँ तक आ गए 
हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहाँ तक आ गए
हम तो दिल तक चाहते थे तुम तो जां तक आ गए

जुल्फ में खुशबू न थी या रँग आरिज़ में न था
आप किसकी जुस्तजू में गुलसिताँ तक आ गए

ख़ुद तुम्हें चाक-ए-गिरेबां का शऊर आ जाएगा
तुम वहाँ तक आ तो जाओ, हम जहाँ तक आ गए

उनकी पलकों पे सितारे अपने होंठों पे हँसी
किस्सा-ए-गम कहते कहते हम यहाँ तक आ गए 

13.
दिल में हम एक ही जज्बे को समोएं कैसे 
दिल में हम एक ही जज्बे को समोएं कैसे,
अब तुझे पा के यह उलझन है के खोये कैसे,

ज़हन छलनी जो किया है, तो यह मजबूरी है,
जितने कांटे हैं, वोह तलवों में पिरोयें कैसे,

हम ने माना के बोहत देर है हश्र आने तक,
चार जानिब तेरी आहट हो तो सोयें कैसे,

कितनी हसरत थी, तुझे पास बिठा कर रोते,
अब यह-यह मुश्किल है, तेरे सामने रोये कैसे 

14. 
इक सहमी सहमी सी आहट है 
इक सहमी सहमी सी आहट है, इक महका महका साया है
एहसास की इस तन्हाई में यह रात गए कौन आया है

ए शाम आलम कुछ तू ही बता, यह ढंग तुझे क्यों भाया है
वोह मेरी खोज में निकला था और तुझ को ढूँढ के आया है

मैं फूल समझ के चुन लूंगा इस भीगे से अंगारों को
आँखों की इबादत का मैं ने बस एक ये ही फल पाया है

कुछ रोज़ से बरपा चार तरफ हैं शादी-ओ-ग़म के हंगामे
सुनते हैं चमन को माली ने फूलों का कफ़न पहनाया है

Kya Khub Lagti Ho with English Translation

Movie: Dharmatma
Singer: Mukesh, Kanchan

Song: Kya Khub Lagti Ho with English Translation

Song: Kya Khoob Lagti Ho With English Traslation 

क्या खूब लगती हो, बड़ी सुन्दर दिखती हो- 2
Kya khoob lagti ho, badi sundar dikhti ho - 2
You look excellent, You look beautiful

फिर से कहो, कहते रहो, अच्छा लगता है
Phir se kaho, kehte raho, achchha lagta hai
Say it again, Keep on saying, It sounds good

जीवन का हर सपना अब सच्चा लगता है
Jeevan ka har sapna ab sachcha lagta hai
Every dream of life now seems reality

क्या खूब लगती हो, बड़ी सुन्दर दिखती हो - 2
Kya khoob lagti ho, badi sundar dikhti ho - 2
You look excellent, You look beautiful

तारीफ़ करोगे कब तक, बोलो, कब तक?
Taareef karoge kab tak, bolo kab tak
For how long shall you praise me? tell me how long

मेरे सीने में साँस रहेगी जब तक
Mere seene mein saans rahegi jab tak
As long as there is breath in my chest

कब तक मैं रहूँगी मन में, हाँ, मन में?
Kab tak main rahoongi mann mein, haan mann mein
For how long will I be in your heart? yes on your mind

सूरज होगा जब तक नील गगन में
Sooraj hoga jab tak neele gagan mein
As long as the sun remains in the sky

फिर से कहो, कहते रहो, अच्छा लगता है
Phir se kaho, kehte raho, achchha lagta hai
Say it again, Keep on saying, It sounds good

जीवन का हर सपना अब सच्चा लगता है
Jeevan ka har sapna ab sachcha lagta hai
Every dream of life now seems reality

क्या खूब लगती हो, बड़ी सुन्दर दिखती हो
Kya khoob lagti ho, badi sundar dikhti ho
You look excellent, You look beautiful

तुम प्यार से प्यारी हो तुम जान हमारी हो
Tum pyaar se pyaari ho, tum jaan hamaari ho
You are more lovely than the love itself, you are my life

खुश हो न मुझे तुम पाकर, मुझे पाकर?
Khush ho na mujhe tum paakar, mujhe paakar
Are you happy by attaining me? aren't you, getting me?

प्यासे दिल को आज मिला है सागर
Pyaase dil ko aaj mila hai saagar
Today my thirsty heart found its ocean

क्या दिल में है और तमन्ना, है तमन्ना?
Kya dil mein hai aur tamanna, hai tamanna
Is there any other desire in your heart? another wish?

हर जीवन में तुम मेरे ही बनना
Har jeevan mein tum meri hi banana
In every life you are to be mine alone

फिर से कहो, कहते रहो, अच्छा लगता है
Phir se kaho, kehte raho, achchha lagta hai
Say it again, Keep on saying, It sounds good

जीवन का हर सपना अब सच्चा लगता है
Jeevan ka har sapna ab sachcha lagta hai
Every dream of life now seems reality

क्या खूब लगती हो, बड़ी सुन्दर दिखती हो
Kya khoob lagti ho, badi sundar dikhti ho
You look excellent, You look beautiful

तुम प्यार से प्यारी हो तुम जान हमारी हो-2
Tum pyaar se pyaari ho, tum jaan hamaari ho-2
You are more lovely than the love itself, you are my life-2

Friday, 28 September 2012

Shayar Kaifi Azmi, शायर कैफ़ी आज़मी

Shayar Kaifi Azmi
January 14, 1919 – May 10, 2002
1. 
 वतन के लिये
यही तोहफा है यही नज़राना
मैं जो आवारा नज़र लाया हूँ
रंग में तेरे मिलाने के लिए
कतरा-ए-खून-ए-जिगर लाया हूँ
ऐ गुलाबों के वतन

पहले कब आया हूँ कुछ याद नहीं
लेकिन आया था कसम खता हूँ
फूल तो फूल हैं काँटों पर तेरे
अपने होंठों के निशान पाता हूँ
मेरे ख्वाबों के वतन

चूम लेने दे मुझे हाथ अपने
जिन से तोड़ी है कई जंजीरें
तुने बदला है मसहियत का मिजाज़
तुने लिखी हैं नयी तकदीरें
इन्क़लाबों के वतन

फूल के बाद नए फूल खिले
कभी खाली न हो दामन तेरा
रौशनी रौशनी तेरी रहे
चांदनी चांदनी आँगन तेरा
मोहब्बतों के वतन 
English
Yahii tohafaa hai yahii nazaraanaa
mai.n jo aavaaraa nazar laayaa huu.N
rang me.n tere milaane ke liye
qataraa-e-Khuun-e-jigar laayaa huu.N
ai gulaabo.n ke vatan

Pahale kab aayaa huu.N kuchh yaad nahii.n
lekin aayaa thaa qasam khaataa huu.N
phuul to phuul hai.n kaa.NTo.n pe tere
apane ho.NTo.n ke nishaa.N paataa huu.N
mere Khvaabo.n ke vatan

Chuum lene de mujhe haath apane
jin se to.Dii hai.n ka_ii zanjiire.n
tuune badalaa hai mashiyat kaa mizaaj
tuune likhii hai.n na_ii taqdiire.n
inqalaabo.n ke vatan

Phuul ke baad naye phuul khile.n
kabhii Khaalii na ho daaman teraa
roshanii roshanii terii raahe.n
chaa.Ndanii chaa.Ndanii aa.ngan teraa
maahataabo.n ke vatan
2.
कभी जमूद कभी सिर्फ़ इंतिशार सा है 
कभी जमूद कभी सिर्फ़ इंतिशार सा है
जहाँ को अपनी तबाही का इंतिज़ार सा है

मनु की मछली, न कश्ती-ए-नूह और ये फ़ज़ा
कि क़तरे-क़तरे में तूफ़ान बेक़रार सा है

मैं किसको अपने गरेबाँ का चाक दिखलाऊँ
कि आज दामन-ए-यज़दाँ भी तार-तार-सा है

सजा-सँवार के जिसको हज़ार नाज़ किए
उसी पे ख़ालिक़-ए-कोनैन शर्मसार सा है

तमाम जिस्म है बेदार, फ़िक्र ख़ाबीदा
दिमाग़ पिछले ज़माने की यादगार सा है

सब अपने पाँव पे रख-रख के पाँव चलते हैं
ख़ुद अपने दोश पे हर आदमी सवार सा है

जिसे पुकारिए मिलता है इस खंडहर से जवाब
जिसे भी देखिए माज़ी के इश्तेहार सा है

हुई तो कैसे बियाबाँ में आके शाम हुई
कि जो मज़ार यहाँ है मेरे मज़ार सा है

कोई तो सूद चुकाए कोई तो ज़िम्मा ले
उस इंक़लाब का जो आज तक उधार सा है
 

3.
  आवारा सज़दे
इक यही सोज़-ए-निहाँ कुल मेरा सर्माया है
दोस्तो मैं किसे ये सोज़-ए-निहाँ नज़्र करूँ
कोई क़ातिल सर-ए-मक़्तल नज़र आता ही नहीं
किस को दिल नज़्र करूँ और किसे जाँ नज़्र करूँ

तुम भी महबूब मेरे तुम भी हो दिलदार मेरे
आश्ना मुझसे मगर तुम भी नहीं तुम भी नहीं
ख़त्म है तुम पे मसीहानफ़सी चारागरी
मेहरम-ए-दर्द-ए-जिगर तुम भी नहीं तुम भी नहीं

अपनी लाश आप उठाना कोई आसान नहीं
दस्त-ओ-बाज़ू मेरे नाकारा हुए जाते हैं
जिनसे हर दौर में चमकी है तुम्हारी दहलीज़
आज सज्दे वोही आवारा हुए जाते हैँ

दूर मन्ज़िल थी मगर ऐसी भी कुछ दूर न थी
लेके फिरती रही रस्ते ही में वहशत मुझ को
एक ज़ख़्म ऐसा न खाया के बहार आ जाती
दार तक लेके गया शौक़-ए-शहादत मुझ को

राह में टूट गये पाँव तो मालूम हुआ
जुज़ मेरे और मेरा रहनुमा कोई नहीं
एक के बाद ख़ुदा एक चला आता था
कह दिया अक़्ल ने तंग आके ख़ुदा कोई नहीं

4.
 अन्देशे
रूह बेचैन है इक दिल की अज़ीयत क्या है
दिल ही शोला है तो ये सोज़-ए-मोहब्बत क्या है
वो मुझे भूल गई इसकी शिकायत क्या है
रंज तो ये है के रो-रोके भुलाया होगा

वो कहाँ और कहाँ काहिफ़-ए-ग़म सोज़िश-ए-जाँ
उस की रंगीन नज़र और नुक़ूश-ए-हिर्माँ
उस का एह्सास-ए-लतीफ़ और शिकस्त-ए-अर्माँ
तानाज़न एक ज़माना नज़र आया होगा

झुक गई होगी जवाँ-साल उमन्गों की जबीं
मिट गई होगी ललक डूब गया होगा यक़ीं
छा गया होगा धुआँ घूम गई होगी ज़मीं
अपने पहले ही घरौंदे को जो ढाया होगा

दिल ने ऐसे भी कुछ अफ़साने सुनाये होँगे
अश्क आँखों ने पिये और न बहाये होँगे
बन्द कमरे में जो ख़त मेरे जलाये होँगे
एक-इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा

उस ने घबराके नज़र लाख बचाई होगी
मिटके इक नक़्श ने सौ शक़्ल दिखाई होगी
मेज़ से जब मेरी तस्वीर हटाई होगी
हर तरफ़ मुझ को तड़प्ता हुआ पाया होगा

बेमहल छेड़ पे जज़्बात उबल आये होँगे
ग़म पशेमान तबस्सुम में ढल आये होँगे
नाम पर मेरे जब आँसू निकल आये होँगे
सर न काँधे से सहेली के उठाया होगा

ज़ुल्फ़ ज़िद कर के किसी ने जो बनाई होगी
रूठ्व जल्वोँ पे ख़िज़ाँ और भी छाई होगी
बर्क़ अश्वोँ ने कई दिन न गिराई होगी
रंग चेहरे पे कई रोज़ न आया होगा

होके मजबूर मुझे उस ने भुलाया होगा
ज़हर चुप कर के दवा जान के ख़ाया होगा
5.
पत्थर के खुदा वहाँ भी पाए 
पत्थर के खुदा वहाँ भी पाए
हम चाँद से आज लौट आए

दीवारें तो हर तरफ़ खड़ी हैं
क्या हो गए मेहरबान साए

जंगल की हवायें आ रही हैं
कागज का यह शहर उड़ न जाए

लैला ने नया जनम लिया है
है कैस कोई तो दिल लगाए

है आज जमीं का गुस्ल-ए-सेहत
जिस दिल में हो जितना खून लाए

सहरा सहरा लहू के खेमे
फिर प्यासे लब-ए-फुरात आए

मायने: गुस्ल-ए-सेहत = स्वस्थ स्नान, सहरा = मरूस्थल
 

English 
patthar ke Khudaa vahaaN bhii paaye
ham chaaNd se aaj lauT aaye

diivaareN to har taraf khaRii haiN
kyaa ho gaye meh’rbaaN saaye

jangal kii havaayeN aa rahii haiN
kaaGhaz kaa ye shah’r uR na jaaye

Lailaa ne nayaa janam liyaa hai
hai Qais ko’ii jo dil lagaaye?

hai aaj zamiiN kaa ghus’l-e-sehat
jis dil meN ho jitnaa Khuun laaye

sehraa sehraa lahuu ke Kheme
phir pyaase lab-e-Furaat aaye*

meh’rbaan : loving, affectionate
Qais : Another name for Majnuu
ghus’l-e-sehat : Bathing after recovery from sickness
sehraa : desert
Kheme : tent
lab-e-Furaat : Bank of river Euphrates

6.
 मैं ढूंढता हूँ जिसे वह जहाँ नहीं मिलता
मैं ढूंढता हूँ जिसे वह जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीं नया आसमां नहीं मिलता

नई ज़मीं नया आसमां भी मिल जाए
नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता

वोह तेग मिल गई जिस से हुआ है कत्ल मिरा
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता

वोह मेरा गांव है, वोह मेरे गांव के चूल्हे
के जिनमें शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता

जो इक खुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यों
मुझे खुद अपने कदम का निशाँ नहीं मिलता

खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में
तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता


मायने: बशर=व्यक्ति, तेग=तलवार
7.
हाथ आकर लगा गया कोई
हाथ आकर लगा गया कोई
मेरा छप्पर उठा गया कोई

लग गया इक मशीन में मैं
शहर में ले के आ गया कोई

मैं खड़ा था के पीठ पर मेरी
इश्तिहार इक लगा गया कोई

यह सदी धूप को तरसती है
जैसे सूरज को खा गया कोई

ऐसी मंहगाई है के चेहरा भी
बेच के अपना खा गया कोई

अब बोह अरमान हैं न वो सपने
सब कबूतर उड़ा गया कोई

वोह गए जब से ऐसा लगता है
छोटा मोटा खुदा गया कोई

मेरा बचपन भी साथ ले आया
गांव से जब भी आ गया कोई

8.
 तुम परेशान न हो बाब-ए-करम वा न करो
तुम परेशान न हो बाब-ए-करम वा न करो
और कुछ देर पुकारूँगा चला जाऊँगा

इसी कूचे में जहाँ चाँद उगा करते हैं
शब-ए-तारीक गुज़ारूँगा चला जाऊँगा

रास्ता भूल गया या यहाँ मंज़िल है मेरी
कोई लाया है या ख़ुद आया हूँ मालूम नहीं

कहते हैं हुस्न कि नज़रें भी हसीं होती हैं
मैं भी कुछ लाया हूँ क्या लाया हूँ मालूम नहीं

यूँ तो जो कुछ था मेरे पास मैं सब कुछ बेच आया
कहीं इनाम मिला और कहीं क़ीमत भी नहीं

कुछ तुम्हारे लिये आँखों में छुपा रक्खा है
देख लो और न देखो तो शिकायत भी नहीं

एक तो इतनी हसीं दूसरे ये आराइश
जो नज़र पड़ती है चेहरे पे ठहर जाती है

मुस्कुरा देती हो रसमन भी अगर महफ़िल में
इक धनक टूट के सीनों में बिखर जाती है

गर्म बोसों से तराशा हुआ नाज़ुक पैकर
जिस की इक आँच से हर रूह पिघल जाती है

मैं ने सोचा है तो सब सोचते होंगे शायद
प्यास इस तरह भी क्या साँचे में ढल जाती है

क्या कमी है जो करोगी मेरा नज़राना क़ुबूल
चाहने वाले बहुत चाह के अफ़साने बहुत

एक ही रात सही गर्मी-ए-हंगामा-ए-इश्क़
एक ही रात में जल मरते हैं परवाने बहुत

फिर भी इक रात में सौ तरह के मोड़ आते हैं
काश तुम को कभी तनहाई का एहसास न हो

काश ऐसा न हो ग़ैर-ए-राह-ए-दुनिया तुम को
और इस तरह कि जिस तरह कोई पास न हो

आज की रात जो मेरी तरह तन्हा है
मैं किस तरह गुज़ारूँगा चला जाऊँगा

तुम परेशाँ न हो बाब-ए-करम वा न करो
और कुछ देर पुकारूँगा चला जाऊँगा
 

9.
 बस इक झिझक है
बस इक झिझक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में
कि तेरा ज़िक्र भी आयेगा इस फ़साने में

बरस पड़ी थी जो रुख़ से नक़ाब उठाने में
वो चाँदनी है अभी तक मेरे ग़रीब-ख़ाने में

इसी में इश्क़ की क़िस्मत बदल भी सकती थी
जो वक़्त बीत गया मुझ को आज़माने में

ये कह के टूट पड़ा शाख़-ए-गुल से आख़िरी फूल
अब और देर है कितनी बहार आने में 

10.
अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
मुझ से बिखरे हुये गेसू नहीं देखे जाते

सुर्ख़ आँखों की क़सम काँपती पलकों की क़सम
थर-थराते हुये आँसू नहीं देखे जाते

अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
छूट जाने दो जो दामन-ए-वफ़ा छूट गया

क्यूँ ये लग़ज़ीदा ख़रामी ये पशेमाँ नज़री
तुम ने तोड़ा नहीं रिश्ता-ए-दिल टूट गया

अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
मेरी आहों से ये रुख़्सार न कुमला जायें

ढूँडती होगी तुम्हें रस में नहाई हुई रात
जाओ कलियाँ न कहीं सेज की मुर्झा जायें

अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
मैं इस उजड़े हुये पहलू में बिठा लूँ न कहीं

लब-ए-शीरीं का नमक आरिज़-ए-नमकीं की मिठास
अपने तरसे हुये होंठों में चुरा लूँ न कहीं
 

11.
 अज़ा में बहते थे आँसू यहाँ, लहू तो नहीं
अज़ा में बहते थे आँसू यहाँ, लहू तो नहीं
ये कोई और जगह है ये लखनऊ तो नहीं

यहाँ तो चलती हैं छुरिया ज़ुबाँ से पहले
ये मीर अनीस की, आतिश की गुफ़्तगू तो नहीं

चमक रहा है जो दामन पे दोनों फ़िरक़ों के
बग़ौर देखो ये इसलाम का लहू तो नहीं

12.
इतना तो ज़िन्दगी में किसी की ख़लल पड़े
इतना तो ज़िन्दगी में किसी की ख़लल पड़े
हँसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़े

जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी-पी के अश्क-ए-ग़म
यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े

एक तुम के तुम को फ़िक्र-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ है
एक हम के चल पड़े तो बहरहाल चल पड़े

मुद्दत के बाद उस ने जो की लुत्फ़ की निगाह
जी ख़ुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े

साक़ी सभी को है ग़म-ए-तश्नालबी मगर
मय है उसी के नाम पे जिस के उबल पड़े


( ये नज़्म उन्होंने ११ बरस की उम्र में लिखी थी.)
13.
 हाथ आकर लगा गया कोई
हाथ आकर लगा गया कोई
मेरा छप्पर उठा गया कोई

लग गया इक मशीन में मैं
शहर में ले के आ गया कोई

मैं खड़ा था के पीठ पर मेरी
इश्तिहार इक लगा गया कोई

यह सदी धूप को तरसती है
जैसे सूरज को खा गया कोई

ऐसी मंहगाई है के चेहरा भी
बेच के अपना खा गया कोई

अब बोह अरमान हैं न वो सपने
सब कबूतर उड़ा गया कोई

वोह गए जब से ऐसा लगता है
छोटा मोटा खुदा गया कोई

मेरा बचपन भी साथ ले आया
गांव से जब भी आ गया कोई

14.
क्या जाने किसी की प्यास बुझाने किधर गयीं
क्या जाने किसी की प्यास बुझाने किधर गयीं
उस सर पे झूम के जो घटाएँ गुज़र गयीं

दीवाना पूछता है यह लहरों से बार बार
कुछ बस्तियाँ यहाँ थीं बताओ किधर गयीँ

अब जिस तरफ से चाहे गुजर जाए कारवां
वीरानियाँ तो सब मिरे दिल में उतर गयीं

पैमाना टूटने का कोई गम नहीं मुझे
गम है तो यह के चाँदनी रातें बिखर गयीं

पाया भी उन को खो भी दिया चुप भी यह हो रहे
इक मुख्तसर सी रात में सदियाँ गुजर गयीं
 

15.
 दूसरा बनवास 
राम बनवास से जब लौटकर घर में आये
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये
रक्से-दीवानगी आंगन में जो देखा होगा
छह दिसम्बर को श्रीराम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहां से मेरे घर में आये

धर्म क्या उनका है, क्या जात है ये जानता कौन
घर ना जलता तो उन्हे रात में पहचानता कौन
घर जलाने को मेरा, लोग जो घर में आये

शाकाहारी हैं मेरे दोस्त, तुम्हारे खन्ज़र
तुमने बाबर की तरफ़ फ़ैंके थे सारे पत्थर
है मेरे सर की खता, ज़ख्म जो सर में आये

पांव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे
कि नज़र आये वहां खून के गहरे धब्बे
पांव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे
राम ये कहते हुए अपने दुआरे से उठे
राजधानी की फज़ा आई नहीं रास मुझे
छह दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे

16.
 आज सोचा तो आँसू भर आए
आज सोचा तो आँसू भर आए
मुद्दतें हो गईं मुस्कुराए

हर कदम पर उधर मुड़ के देखा
उनकी महफ़िल से हम उठ तो आए

दिल की नाज़ुक रगें टूटती हैं
याद इतना भी कोई न आए

रह गई ज़िंदगी दर्द बनके
दर्द दिल में छुपाए छुपाए

17.
ऐ सबा! लौट के किस शहर से तू आती है?
 ऐ सबा! लौट के किस शहर से तू आती है?
तेरी हर लहर से बारूद की बू आती है!

खून कहाँ बहता है इन्सान का पानी की तरह
जिस से तू रोज़ यहाँ करके वजू आती है?

धाज्जियाँ तूने नकाबों की गिनी तो होंगी
यूँ ही लौट आती है या कर के रफ़ू आती है?

अपने सीने में चुरा लाई है किसे की आहें
मल के रुखसार पे किस किस का लहू आती है! 

18. 
औरत
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे

कल्ब-ए-माहौल में लरज़ाँ शरर-ए-ज़ंग हैं आज
हौसले वक़्त के और ज़ीस्त के यक रंग हैं आज
आबगीनों में तपां वलवला-ए-संग हैं आज
हुस्न और इश्क हम आवाज़ व हमआहंग हैं आज
जिसमें जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे

ज़िन्दगी जहद में है सब्र के काबू में नहीं
नब्ज़-ए-हस्ती का लहू कांपते आँसू में नहीं
उड़ने खुलने में है नक़्हत ख़म-ए-गेसू में नहीं
ज़न्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं
उसकी आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे

गोशे-गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिये
फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा तेरे लिये
क़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिये
ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिये
रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे

क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही नहीं
तुझ में शोले भी हैं बस अश्कफ़िशानी ही नहीं
तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं
तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं
अपनी तारीख़ का उनवान बदलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे

19.
मेरे दिल में तू ही तू है
मेरे दिल में तू ही तू है दिल की दवा क्या करूँ
दिल भी तू है जाँ भी तू है तुझपे फ़िदा क्या करूँ

ख़ुद को खोकर तुझको पा कर क्या क्या मिला क्या कहूँ
तेरा होके जीने में क्या क्या आया मज़ा क्या कहूँ
कैसे दिन हैं कैसी रातें कैसी फ़िज़ा क्या कहूँ
मेरी होके तूने मुझको क्या क्या दिया क्या कहूँ
मेरी पहलू में जब तू है फिर मैं दुआ क्या करूँ
दिल भी तू है जाँ भी तू है तुझपे फ़िदा क्या करूँ

है ये दुनिया दिल की दुनिया, मिलके रहेंगे यहाँ
लूटेंगे हम ख़ुशियाँ हर पल, दुख न सहेंगे यहाँ
अरमानों के चंचल धारे ऐसे बहेंगे यहाँ
ये तो सपनों की जन्नत है सब ही कहेंगे यहाँ
ये दुनिया मेरे दिल में बसी है दिल से जुदा क्या करूँ
दिल भी तू है जाँ भी तू है तुझपे फ़िदा क्या करूँ

मैं खड़ा था के पीठ पर मेरी
इश्तिहार इक लगा गया कोई ।
20.
पशेमानी

मैं यह सोचकर उसके दर से उठा था
कि वह रोक लेगी मना लेगी मुझको ।

हवाओं में लहराता आता था दामन
कि दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको ।

क़दम ऐसे अंदाज़ से उठ रहे थे
कि आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको ।

कि उसने रोका न मुझको मनाया
न दामन ही पकड़ा न मुझको बिठाया ।

न आवाज़ ही दी न मुझको बुलाया
मैं आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ता ही आया ।

यहाँ तक कि उससे जुदा हो गया मैं
जुदा हो गया मैं, जुदा हो गया मैं ।

शब्दार्थ: पशेमानी=पछतावा
21.
वक्त ने किया क्या हंसी सितम
वक्त ने किया क्या हंसी सितम
तुम रहे न तुम, हम रहे न हम ।

बेक़रार दिल इस तरह मिले
जिस तरह कभी हम जुदा न थे
तुम भी खो गए, हम भी खो गए
इक राह पर चल के दो कदम ।

जायेंगे कहाँ सूझता नहीं
चल पड़े मगर रास्ता नहीं
क्या तलाश है, कुछ पता नहीं
बुन रहे क्यूँ ख़्वाब दम-ब-दम ।

Kaif Bhopali, शायर कैफ भोपाली ( کیف بھوپالی)

Kaif Bhopali

1.
तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है
 तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है

तिरछे तिरछे तीर नज़र के लगते हैं
सीधा सीधा दिल पे निशाना लगता है

आग का क्या है पल दो पल में लगती है
बुझाते बुझाते एक ज़माना लगता है

सच तो ये है फूल का दिल भी छलनी है
हंसता चेहरा एक बहाना लगता है 


Tera chehra kitna suhana lagta hai 
tere aage chand purana lagta hai

tirchhe tirchhe teer nazar ke lagte hain 
sidha sidha dil pe nishana lagta hai

aag ka kya hai pal do pal main lagti hai 
bujhte bujhte ek zamana lagta hai

sach to ye hai phool ka dil bhi chalni hai 
hansta chehra ek bahana lagta hai
2.
 कौन आयेगा यहाँ कोई न आया होगा
कौन आयेगा यहाँ कोई न आया होगा
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा

दिल-ए-नादाँ न धड़क, ऐ दिल-ए-नादाँ न धड़क
कोई ख़त लेके पड़ोसी के घर आया होगा

गुल से लिपटी हुई तितली को गिराकर देखो
आँधियों तुम ने दरख्तों को गिराया होगा 

'कैफ' परदेस में मत याद करो अपना मकान
अब के बारिश में उसे तोड़ गिराया होगा  


Kaun aayegaa yahaa’n koii na aayaa hogaa 
meraa daravaazaa havaao’n ne hilaayaa hogaa

dil-e-naadaan na dhadak, ai dil-e-naadaan na dhadak 
koii khat leke padosii ke ghar aayaa hogaa

gul se lipaTii huii titalii ko giraakar dekho 
aandhiyo’n tum ne drakhto’n ko giraayaa hogaa

'Kaif' parades me’n mat yaad karo apanaa makaan 
ab ke baarish me’n use tod giraayaa hogaa
 English Translation

Kaun aayega yahan koi na aaya hoga,
Mera darwaaza hawaon nay hilaaya hoga !

[Who will come here, nobody must have come here,
Winds may have thrown open my door !]

Dil-e-naadan na dhadk ay dil-e-naadan na dhadak,
Koi khat ley kay padosi kay ghar aaya hoga !

[My poor heart, stop beating, my poor heart, stay calm,
Somebody may have come to deliver the letter to my neighbor !]

Gul say lipti hui titli ko gira kar dekho,
Aandhiyaan tumnay darakhton ko giraaya hoga !

[Let us see how you can fly away the butterfly from a flower,
Oh ! Storms, you may have uprooted the trees !]

Kaif pardes mein mat yaad karo apna makaan,
Ab kay baarish nay usay tod giraaya hoga !

['Kaif', don't remember your home while staying overseas,
This season, rains may have demolished that house !]

Kaun aayega yahan koi na aaya hoga,
Mera darwaaza hawaon nay hilaaya hoga !

[Who will come here, nobody must have come here,
Winds may have thrown open my door !]

3. 
क्यों फिर रहे हो कैफ़ ये ख़तरे का घर लिए
क्यों फिर रहे हो कैफ़ ये ख़तरे का घर लिए
ये कांच का शरीर ये काग़ज़ का सर लिए

शोले निकल रहे हैं गुलाबों के जिस्म से
तितली न जा क़रीब ये रेशम के पर लिए

जाने बहार नाम है लेकिन ये काम है
कलियां तराश लीं तो कभी गुल क़तर लिए

रांझा बने हैं, कैस बने, कोहकन बने
हमने किसी के वास्ते सब रूप धर लिए

ना मेहरबाने शहर ने ठुकरा दिया मुझे
मैं फिर रहा हूं अपना मकां दर-ब-दर लिए 
4.
 दरो-दीवार पे शक्लें-सी बनने आई
दरो-दीवार पे शक्लें-सी बनने आई
फिर ये बारिश मेरी तन्हाई चुराने आई

जिंदगी बाप की मानिंद सज़ा देती है
रहम-दिल माँ की तरह मौत बचाने आई

आजकल फिर दिले-बेताब की बातें हैं
वही हम तो समझे थे के कुछ अक्ल ठिकाने आई

दिल में आहट-सी हुई, रूह में दस्तक गूंजी
किसकी खुशबू मुझे ये मेरे सिरहाने आई

मैंने जब पहले-पहल अपना वतन छोड़ा था
दूर तक मुझको इक आवाज़ बुलाने आई

तेरी मानिंद तेरी याद भी ज़ालिम निकली
जब भी आई है, मेरा दिल ही दुखाने आई 


Daro-deewar pe shakleN-si banane aaii
Phir ye barish meri tanhaaii churane aaii.

Zindgi baap ki manind sazaa deti hai
Raham-dil maaN kii tarah maut bachane aaii.

Aajkal phir dile-betaab kii bateN haiN wahi
Hum to samjhe the ke kuchh akl thikane aaii.

Dil meiN aahat-si hui, rooh mein dastak guNjii
Kiski khushboo mujhe ye mere sirhane aaii.

Maine jab pehle-pehal apna watan chhoda tha
Door tak mujhko ik aawaaz bulane aaii.

Teri manind teri yaad bhi zalim nikli
Jab bhi aaii hai, mera dil hi dukhane aaii.
5.
झूम के जब रिन्दों ने पिला दी
झूम के जब रिन्दों ने पिला दी
शेख ने चुपकेचुपके दुआ दी

एक कमी थी ताज महल में
हमने तेरी तस्वीर लगा दी

आप ने झूठा वादा कर के
आज हमारी उम्र बड़ा दी

तेरी गली में सजदे कर के
हमने इबादतगाह बना दी 


Jhuum ke jab rindo’n ne pilaa dii 
shekh ne chupke chupke duaa dii

ek kamii thii taaj mahal me’n 
hamane terii tasviir lagaa dii

aap ne jhoothaa vaadaa kar ke 
aaj hamaarii umr badhaa dii

terii galii me’n sajde kar ke 
hamane ibaadatgaah banaa dii
6.
दाग दुनिया ने दिए ज़ख्म ज़माने से मिले
दाग दुनिया ने दिए ज़ख्म ज़माने से मिले
हम को ये तोहफे तुम्हें दोस्त बनाने से मिले

हम तरसते ही तरसते ही तरसते ही रहे
वो फलाने से फलाने से फलाने से मिले 

खुद से मिल जाते तो चाहत का भरम रह जाता
क्या मिले आप जो लोगों के मिलाने से मिले

कैसे माने के उन्हें भूल गया तू ऐ 'कैफ'
उन के ख़त आज हमें तेरे सरहाने से मिले  


Daagh duniyaa ne diye zakhm zamaane se mile
ham ko ye tohafe tumhen dost banaane se mile

ham tarasate hii taraste hii tarasate hii rahe 
vo falaane se falaane se falaane se mile

Khud se mil jaate to chaahat kaa bharam rah jaataa 
kyaa mile aap jo logo’n ke milaane se mile

kaise maane ke unhe’n bhuul gayaa tuu ai 'Kaif' 
un ke khat aaj hame’n tere sarahaane se mile
7.
हाय लोगों की करम-फर्माइयां
हाय लोगों की करम-फर्माइयां
तोहमतें, बदनामियाँ, रुसवाइयां

(करम-फर्माइयां:तरफदारी, पक्ष लेना)

ज़िंदगी शायद इसी का नाम है
दूरियाँ, मजबूरियां, तन्हाइयां

क्या ज़माने में यूं ही कटती है रात
करवटें, बेताबियाँ, अंगडाइयां

क्या यही होती है शाम-ए-इन्तिज़ार
आहटें, घबराहटे, परछाइयां

एक पैकर में सिमट कर रह गयीं
खूबियाँ, ज़ेबाइयां, रानाइयां

(पैकर:आभास,उपस्थिति; ज़ेबाइयां:शालीनता; रानाइयां:सौन्दर्य)

ज़ख्म दिल के फिर हरे करने लगीं
बदलियाँ, बरखा रुतें, पुरवाइयां

“कैफ” पैदा कर समंदर की तरह
वुसतें, खामोशियाँ, गहराइयां

(वुसतें:फैलाव, विस्तार)
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Movie: Pakeeza
Singer(s): Latamangeshkar and Koras
Music Director: Ghulam Mohammad
Lyricist: Kaif Bhopali
Actors/Actresses:Ashok Kumar, Rajkumar, Meena Kumari
Year: 1971

आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे
(तीर-ए-नज़र देखेंगे, ज़ख़्म-ए-जिगर देखेंगे) - 2

आप तो आँख मिलाते हुए शरमाते हैं,
आप तो दिल के धड़कने से भी डर जाते हैं फिर भी ये जिद है के हम ज़ख़्म-ए-जिगर देखेंगे,
(तीर-ए-नज़र देखेंगे, ज़ख़्म-ए-जिगर देखेंगे) - 2

प्यार करना दिल-ए-बेताब बुरा होता है
सुनते आए हैं के ये ख्वाब बुरा होता है
आज इस ख्वाब की ताबीर मगर देखेंगे
(तीर-ए-नज़र देखेंगे, ज़ख़्म-ए-जिगर देखेंगे) - 2

जानलेवा है मुहब्बत का समा आज की रात
शम्मा हो जाएगी जल जल के धुआँ आज की रात
आज की रात बचेंगे तो सहर देखेंगे (2)
(तीर-ए-नज़र देखेंगे, ज़ख़्म-ए-जिगर देखेंगे) - 2
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Thursday, 27 September 2012

Muhammad Iqbal, Allama Iqbal , शायर इकबाल (علامہ اقبال) ( محمد اقبال)

Sir Muhammad Iqbal@Allama Iqbal (علامہ اقبال) ( محمد اقبال) 
(November 9, 1877 – April 21, 1938)
1. 
 आता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़माना
आता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़माना

वो बाग़ की बहारें वो सब का चह-चहाना

आज़ादियाँ कहाँ वो अब अपने घोँसले की
अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना

लगती हो चोट दिल पर, आता है याद जिस दम
शबनम के आँसूओं पर कलियों का मुस्कुराना

वो प्यारी प्यारी सुरत, वो कामिनी सी मूरत
आबाद जिसके दम से था मेरा आशियाना
2.
अजब वाइज़ की दीन-दारी है या रब 
अजब वाइज़ की दीन-दारी है या रब
अदावत है इसे सारे जहाँ से

कोई अब तक न ये समझा कि इंसाँ
कहाँ जाता है आता है कहाँ से

वहीं से रात को ज़ुल्मत मिली है
चमक तारों ने पाई है जहाँ से

हम अपनी दर्द-मंदी का फ़साना
सुना करते हैं अपने राज़दाँ से


बड़ी बारीक हैं वाइज़ की चालें
लरज़ जाता है आवाज़-ए-अज़ाँ से
3.
जिन्हें मैं ढूँढता था आस्मानों में ज़मीनों में
 जिन्हें मैं ढूँढता था आस्मानों में ज़मीनों में
वो निकले मेरे ज़ुल्मत-ए-ख़ाना-ए-दिल के मकीनों में

महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं
मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती है महीनों में

मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या गर्क़ होने से
कि जिन को डूबना है डूब जाते हैं सफ़ीनों में

जला सकती है शम-ए-कुश्ता को मौज-ए-नफ़स उनकी
इलाही क्या छुपा होता है अहल-ए-दिल के सीनों में

तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की
नहीं मिलता ये गौहर बादशाहों के ख़ज़ीनों में

मुहब्बत के लिये दिल ढूँढ कोई टूटने वाला
ये वो मै है जिसे रखते हैं नाज़ुक आबगीनों में

बुरा समझूँ उन्हें मुझसे तो ऐसा हो नहीं सकता
कि मैं ख़ुद भी तो हूँ "इक़बाल" अपने नुक्ताचीनों में

4.
तस्कीन न हो जिस से वो राज़ बदल डालो
  तस्कीन न हो जिस से वो राज़ बदल डालो
जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो

तुम ने भी सुनी होगी बड़ी आम कहावत है
अंजाम का जो हो खतरा आगाज़ बदल डालो

पुर-सोज़ दिलों को जो मुस्कान न दे पाए
सुर ही न मिले जिस में वो साज़ बदल डालो

दुश्मन के इरादों को है ज़ाहिर अगर करना
तुम खेल वोही खेलो, अंदाज़ बदल डालो

ऐ दोस्त! करो हिम्मत कुछ दूर सवेरा है
अगर चाहते हो मंजिल तो परवाज़ बदल डालो

5.

कोई समझाए ये क्या रंग है मैख़ाने का
 कोई समझाए ये क्या रंग है मैख़ाने का
आँख साकी की उठे नाम हो पैमाने का।

गर्मी-ए-शमा का अफ़साना सुनाने वालों
रक्स देखा नहीं तुमने अभी परवाने का।

चश्म-ए-साकी मुझे हर गाम पे याद आती है,
रास्ता भूल न जाऊँ कहीं मैख़ाने का।

अब तो हर शाम गुज़रती है उसी कूचे में
ये नतीजा हुआ ना से तेरे समझाने का।

मंज़िल-ए-ग़म से गुज़रना तो है आसाँ ‘इक़बाल’
इश्क है नाम ख़ुद अपने से गुज़र जाने का।


मायने: रक्स = Dance, चश्म = Eye, गाम = Step
6.
 तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मकाम से गुज़र
  तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मकाम से गुज़र
मिस्र-ओ-हिजाज़ से गुज़र, पारेस-ओ-शाम से गुज़र

जिस का अमाल है बे-गरज़, उस की जज़ा कुछ और है
हूर-ओ-ख़याम से गुज़र, बादा-ओ-जाम से गुज़र

गर्चे है दिलकुशा बहोत हुस्न-ए-फ़िरन्ग की बहार
तायरेक बुलंद बाल दाना-ओ-दाम से गुज़र

कोह शिग़ाफ़ तेरी ज़रब तुझसे कुशाद शर्क़-ओ-ग़रब
तेज़े-हिलाहल की तरह ऐश-ओ-नयाम से गुज़र

तेरा इमाम बे-हुज़ूर, तेरी नमाज़ बे-सुरूर
ऐसी नमज़ से गुज़र, ऐसे इमाम से गुज़र

7.
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा
 सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा
हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलिस्ताँ हमारा

ग़ुर्बत में हों अगर हम रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा

पर्वत वो सब से ऊँचा हमसाया आस्माँ का
वो सन्तरी हमारा वो पासबाँ हमारा

गोदी में खेलती हैं इस की हज़ारों नदियाँ
गुल्शन है जिन के दम से रश्क-ए-जनाँ हमारा

ऐ आब-ए-रूद-ए-गन्गा वो दिन है याद तुझ को
उतरा तेरे किनारे जब कारवाँ हमारा

मज़्हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दुस्ताँ हमारा

यूनान -ओ-मिश्र-ओ-रोमा सब मिट गये जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियो रहा है दुह्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा

'ईक़्बाल' कोई महरम अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा

8.
सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं
 सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं
हाय क्या अच्छी कही ज़ालिम हूँ मैं जाहिल हूँ मैं

है मेरी ज़िल्लत ही कुछ मेरी शराफ़त की दलील
जिस की ग़फ़लत को मलक रोते हैं वो ग़ाफ़िल हूँ मैं

बज़्म-ए-हस्ती अपनी आराइश पे तू नाज़ाँ न हो
तू तो इक तस्वीर है महफ़िल की और महफ़िल हूँ मैं

ढूँढता फिरता हूँ ऐ "इक़बाल" अपने आप को
आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं

9.
तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ
 तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ
मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ

सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी
कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ

ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ

कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल
चिराग़-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ

भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ, सज़ा चाहता हूँ

10.
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं

ताही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़ज़ायें
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं

कना'अत न कर आलम-ए-रन्ग-ओ-बु पर
चमन और भी, आशियाँ और भी हैं

अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुगाँ और भी हैं

तू शहीं है पर्वाज़ है काम तेरा
तेरे सामने आस्माँ और भी हैं

इसी रोज़-ओ-शब में उलझ कर न रह जा
के तेरे ज़मीन-ओ-मकाँ और भी हैं

गए दिन की तन्हा था मैं अंजुमन में
यहाँ अब मेरे राज़दाँ और भी हैं

11.
 मुम्किन है के तु जिसको समझता है बहाराँ
  मुम्किन है के तु जिसको समझता है बहाराँ
औरों की निगाहों में वो मौसम हो ख़िज़ाँ का

है सिल-सिला एहवाल का हर लहजा दगरगूँ
अए सालेक-रह फ़िक्र न कर सूदो-ज़याँ का

शायद के ज़मीँ है वो किसी और जहाँ की
तू जिसको समझता है फ़लक अपने जहाँ का

12.
 लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी
 लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी
ज़िन्दगी शम्मा की सुरत हो ख़ुदाया मेरी

दूर दुनिया का मेरे दम से अँधेरा हो जाये
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाये

हो मेरे दम से यूँ ही मेरे वतन की ज़ीनत
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत

ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सुरत या रब
इल्म की शम्मा से हो मुझको मोहब्बत या रब

हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत करना
दर्द-मंदों से ज़इफ़ों से मोहब्बत करना

मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको
नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझको

13.
 मोहब्बत का जुनूँ बाक़ी नहीं है
  मोहब्बत का जुनूँ बाक़ी नहीं है
मुसलमानों में ख़ूं बाक़ी नहीं है

सफ़ें कज, दिल परेशान, सज्दा बेज़ूक
के जज़्बाए-अंदरून बाक़ी नहीं है

रगों में लहू बाक़ी नहीं है
वो दिल, वो आवाज़ बाक़ी नहीं है

नमाज़-ओ-रोज़ा-ओ-क़ुर्बानी-ओ-हज
ये सब बाक़ी है तू बाक़ी नहीं है

14.
ख़िर्द के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं
 ख़िर्द के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं
तेरा इलाज नज़र के सिवा कुछ और नहीं

हर मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा
हयात ज़ौक़-ए-सफ़र के सिवा कुछ और नहीं

रंगों में गर्दिश-ए-ख़ूँ है अगर तो क्या हासिल
हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं

उरूस-ए-लाला मुनासिब नहीं है मुझसे हिजाब
कि मैं नसीम-ए-सहर के सिवा कुछ और नहीं

जिसे क़ साद समझते हैं ताजरन-ए-फ़िरन्ग
वो शय मता-ए-हुनर के सिवा कुछ और नहीं

गिराँबहा है तो हिफ़्ज़-ए-ख़ुदी से है वरना
गौहर में आब-ए-गौहर के सिवा कुछ और नहीं

15.
 गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बू न बेगानावार देख
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बू न बेगानावार देख
है देखने की चीज़ इसे बार बार देख

आया है तो जहाँ में मिसाल-ए-शरर देख
दम दे नजये हस्ती-ए-नापायेदार देख

माना के तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मेरा इंतज़ार देख

खोली हैं ज़ौक़-ए-दीद ने आँखें तेरी तो फिर
हर रहगुज़र में नक़्श-ए-कफ़-ए-पाय-ए-यार देख

16.
 गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
होश-ओ-ख़िरद शिकार कर क़ल्ब-ओ-नज़र शिकार कर

तू है महीत-ए-बेकराँ मैं ज़रा सी आबजू
या मुझे हम-किनार कर या मुझे बे-किनार कर

मैं हूँ सदफ़ तो तेरे हाथ मेरे गौहर की आबरू
मैं हूँ ख़ज़फ़ तो तू मुझे गौहर-ए-शाहवार कर

नग़्मा-ए-नौबहार अगर मेरे नसीब में न हो
इस दम ए नीम सोज़ को ताइराक-ए-बहार कर

इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में
या तू ख़ुद आशकार हो या मुझ को आशकर कर

बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्योँ
कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मेरा इन्तज़ार कर

रोज़-ए-हिसाब जब पेश हो मेरा दफ़्तर-ए-अमल
आप भी शर्मसार हो, मुझ को भी शर्मसार कर

17.
उट्ठो मेरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो
उट्ठो मेरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो
ख़ाक-ए-उमरा के दर-ओ-दीवार हिला दो

गरमाओ ग़ुलामों का लहू सोज़-ए-यक़ीं से
कुन्जिश्क-ए-फिरोमाया को शाहीं से लड़ा दो

सुल्तानी-ए-जमहूर का आता है ज़माना
जो नक़्श-ए-कुहन तुम को नज़र आये मिटा दो

जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी
उस ख़ेत के हर ख़ोशा-ए-गुन्दम को जला दो

क्यों ख़ालिक़-ओ-मख़लूक़ में हायल रहें पर्दे
पीरान-ए-कलीसा को कलीसा से हटा दो

मैं नाख़ुश-ओ-बेज़ार हूँ मरमर के सिलों से
मेरे लिये मिट्टी का हरम और बना दो

तहज़ीब-ए-नवीं कारगह-ए-शीशागराँ है
आदाब-ए-जुनूँ शायर-ए-मश्रिक़ को सिखा दो

18.
 कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़िर नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़िर नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में

के हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं तेरी जबीन-ए-नियाज़ में

तरब आशना-ए-ख़रोश हो तू नवा है महरम-ए-गोश हो
वो सुरूर क्या के छाया हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ओ-साज़ में

तू बचा बचा के न रख इसे तेरा आईना है वो आईना
के शिकस्ता हो तो अज़ीज़ तर है निगाह-ए-आईना-साज़ में

दम-ए-तौफ़ कर मक-ए-शम्मा न ये कहा के 

वो अस्र-ए-कोकहनन तेरी हिकायत-ए-सोज़ में न मेरी हदीस-ए-गुदाज़ में

न कहीं जहाँ में अमन मिली जो अमन मिली तो कहाँ मिली
मेरे जुर्म-ए-ख़ानाख़राब को तेरे अज़ो-ए-बंदा-नवाज़ में

न वो इश्क़ में रहीं गर्मियाँ न वो हुस्न में रहीं शोख़ियाँ
न वो ग़ज़नवी में तड़प रही न वो ख़म है ज़ुल्फ़-ए-अयाज़ में

जो मैं सर-ब-सज्दा कभी हुआ तो ज़मीं से आने लगी सदा
तेरा दिल तो है सनम-आशनाअ तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में
के हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं तेरी जबीन-ए-नियाज़ में

तरब आशना-ए-ख़रोश हो तू नवा है महरम-ए-गोश हो
वो सुरूर क्या के छाया हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ओ-साज़ में

तू बचा बचा के न रख इसे तेरा आईना है वो आईना
के शिकस्ता हो तो अज़ीज़ तर है निगाह-ए-आईना-साज़ में

दम-ए-तौफ़ कर मक-ए-शम्मा न ये कहा के वो अस्र-ए-कोकहन
न तेरी हिकायत-ए-सोज़ में न मेरी हदीस-ए-गुदाज़ में

न कहीं जहाँ में अमन मिली जो अमन मिली तो कहाँ मिली
मेरे जुर्म-ए-ख़ानाख़राब को तेरे अज़ो-ए-बंदा-नवाज़ में

न वो इश्क़ में रहीं गर्मियाँ न वो हुस्न में रहीं शोख़ियाँ
न वो ग़ज़नवी में तड़प रही न वो ख़म है ज़ुल्फ़-ए-अयाज़ में

जो मैं सर-ब-सज्दा कभी हुआ तो ज़मीं से आने लगी सदा
तेरा दिल तो है सनम-आशनाअ तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में

19.
अक़्ल ने एक दिन ये दिल से कहा
अक़्ल ने एक दिन ये दिल से कहा
भूले-भटके की रहनुमा हूँ मैं

दिल ने सुनकर कहा-ये सब सच है
पर मुझे भी तो देख क्या हूँ मैं

राज़े-हस्ती को तू समझती है
और आँखों से देखता हूँ मैं
शब्दार्थ: राज़े-हस्ती=अस्तित्व के रहस्य

20.
अनोखी वज़्अ है सारे ज़माने से निराले हैं 
अनोखी वज़्अ है सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन-सी बस्ती के यारब रहने वाले हैं

इलाजे-दर्द में भी दर्द की लज़्ज़त पे मरता हूँ
जो थे छालों में काँटे नोक-ए-सोज़ाँ से निकाले हैं

फला फूला रहे यारब चमन मेरी उम्मीदों का
जिगर का ख़ून दे दे के ये बूटे मैने पाले हैं

रुलाती है मुझे रातों को ख़ामोशी सितारों की
निराला इश्क़ है मेरा निराले मेरे नाले हैं

न पूछो मुझसे लज़्ज़त ख़ानुमाँ-बरबाद रहने की
नशेमन सैंकड़ों मैंने बनाकर फूँक डाले हैं

नहीं बेग़ानगी अच्छी रफ़ीक़े-राहे-मंज़िल से
ठहर जा ऐ शरर हम भी तो आख़िर मिटने वाले हैं

उमीदे-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइज़ को
ये हज़रत देखने में सीधे-सादे भोले-भाले हैं

मेरे अश्आर ऐ इक़बाल क्यों प्यारे न हों मुझको
मेरे टूटे हुए दिल के ये दर्द-अंगेज़ नाले हैं

शब्दार्थ: अनोखी वज़्अ=रूप आकार आकृति रूप-रंग, ख़ानुमाँ-बरबाद=बेघर, बेग़ानगी=दूरी, रफ़ीक़े-राहे-मंज़िल= सहयात्री,  शरर= चिंगारी
 

Iqbal Poetry in English
1.
Tere ishq ki intaha chahta hun
Meri sadgi dekh kya chahta hun

Sitam ho k ho wada-e-behijabi
Koi bat sabr-azma chahta hun

Ye jannat mubarak rahe zahidon ko
K main ap ka samna chahta hun

Koi dam ka mehman hun ai ahl-e-mahfil
Chirag-e-sahar hun, bujha chahta hun

Bhari bazm mein raz ki bat kah di
Bara be-adab hun, saza chahta hun

2.
Mohabbat ka junun baqi nahin hai
musalmanon mein khun baqi nahin hai

safen kaj, dil pareshan, sajda bezuk
k jazba-e-andrun baqi nahin hai

ragon mein lahu baqi nahin hai
wo dil, wo awaz baqi nahin hai

namaz-o-roza-o-qurbani-o-haj
ye sab baqi hai tu baqi nahin hai

3.
Taskeen na ho jis se wo raaz badal dalo
Jo raaz na rakh paye hamraaz badal dalo

Tum ne b suni ho gi bari aam kahawat hy
Anjam ka jo ho khatra aghaz badal dalo

Pur-soz dilon ko jo muskan na de paye
Sur hi na mile jis mai wo saaz badal dalo

Dushman k iradon ko hy zahir agar karna
Tum khel wohi khelo andaz badal dalo

Ay dost karo himat kuch door sawera hy
Agar chahte ho manzil tu parwaaz badal dalo

4.
Aashiq K liye Yaksaan, Kaba ho k Butkhaana,
Yeh Jalwat-e-Janaanaa, Woh Khalwat-e-Janaanaa!

Behtar he Zamaany se, Firdous se Khhushtar he,
Ek Saaghar-e-May-e-Saaqi, Ek Humdam-e-Farzaana.

Hr Ek ki Nigaah Tujh pr, hr Ek ko Sukhan Tujh se,
Paida Teri Mehfil me Afsaany se Afsaana.

Yeh kon se Qaatil ne KhoonGashta kia Dill ko?
Ek Shehr-e-Tamanna ko Ghaarat kia Tarkaana.

Jibreel to Adna sa he Said-e-Zaboon Mera,
Yazdaan Tah-e-Daam Aay ae Himmat-e-Mardaana!

IQBAAL ne Minbar pe hr Raaz-e-Nihaan khola,
Na’Pukhhta hi uth Aaya Azz Khhalwat-e-Maikhaana…!!

5.
Aataa hai yaad mujhko guzraa huaa zamaanaa
vo baaG kii bahaaren vo sab ka chah-chahaanaa

aazaadiyaaN kahaaN vo ab apne ghoNsale kii
apanii Khushii se aanaa apanii Khushii se jaanaa

lagtii ho dil par, aataa hai yaad jis dam
shabnam ke aaNsuuon par kaliyon kaa muskuraanaa

vo pyaarii pyaarii surat, vo kaamiinii sii muurat
aabaad jis ke dam se thaa meraa aashiyaanaa