Dilnawaz
Suna tha log bade dilnawaz hote hai
Magar naseeb kahan karsaz hote hai
Suna hai peere-mugan se barha maine
Chhalak pade to pyale bhi saaz hote hai
Kisi ki zulf se vabistagi nahin achhi
Ye silsile dilenadan daraz hote hai
Vo aine ke mukabil ho jab khuda ban kar
Ada-o-naaz sarapaa namaz hote hai
'Adam' khuloos ke bandon mein ek khami hai
Sitam zarif bade jaldbaaz hote hai
दिलनवाज़
सुना है लोग बड़े दिलनवाज़ होते है
मगर नसीब कहाँ कारसाज़ होते है
सुना है पीरे-मुगां से ये बारहा मैंने
छलक पड़े तो प्यालें भी साज़ होते है
किसी की ज़ुल्फ़ से वाबिस्तागी नहीं अच्छी
ये सिलसिले दिलेनादा दराज़ होते है
वो आईने के मुकाबिल हो जब खुदा बन कर
अदा-ओ-नाज़ सरापा नमाज़ होते है
'अदम' ख़ुलूस के बन्दों में एक खामी है
सितम ज़रीफ़ बड़े जल्दबाज़ होते है
~ अब्दुल हमीद अदम
मायने:
दिलनवाज़ = दोस्त , कारसाज़ = काम करनेवाला , पीरे-मुगां = शराब देनेवाला बुज़ुर्ग, बारहा = बारबार, दराज़ = लंबे, मुकाबिल = सामने, ज़रीफ़ = चुटकुलेबाज़
परिचय:
१० अप्रेल १९१० को पाकिस्तान के गुजरावाला में जन्मे अब्दुल हमीद का उपनाम 'अदम' था. वे फौज के लेखा विभाग में अफसर थे. उन्होंने शायरी का आगाज़ १८-१९ बरस की उम्र में ही कर दिया था. शुरू में नज्में लिखी लेकिन बाद में तमाम उम्र गज़लें ही लिखते रहे. उनका पहला संग्रह 'नक़्शे दवाम' के नाम से प्रकाशित हुआ था. इसके बाद ४८ संग्रह प्रकाशित हुए है, जिनमे ३० हज़ार से ज्यादा शेर है. ये शेर नजीर अकबराबादी, मीर तकी मीर से ज्यादा हैं.
Suna tha log bade dilnawaz hote hai
Magar naseeb kahan karsaz hote hai
Suna hai peere-mugan se barha maine
Chhalak pade to pyale bhi saaz hote hai
Kisi ki zulf se vabistagi nahin achhi
Ye silsile dilenadan daraz hote hai
Vo aine ke mukabil ho jab khuda ban kar
Ada-o-naaz sarapaa namaz hote hai
'Adam' khuloos ke bandon mein ek khami hai
Sitam zarif bade jaldbaaz hote hai
दिलनवाज़
सुना है लोग बड़े दिलनवाज़ होते है
मगर नसीब कहाँ कारसाज़ होते है
सुना है पीरे-मुगां से ये बारहा मैंने
छलक पड़े तो प्यालें भी साज़ होते है
किसी की ज़ुल्फ़ से वाबिस्तागी नहीं अच्छी
ये सिलसिले दिलेनादा दराज़ होते है
वो आईने के मुकाबिल हो जब खुदा बन कर
अदा-ओ-नाज़ सरापा नमाज़ होते है
'अदम' ख़ुलूस के बन्दों में एक खामी है
सितम ज़रीफ़ बड़े जल्दबाज़ होते है
~ अब्दुल हमीद अदम
मायने:
दिलनवाज़ = दोस्त , कारसाज़ = काम करनेवाला , पीरे-मुगां = शराब देनेवाला बुज़ुर्ग, बारहा = बारबार, दराज़ = लंबे, मुकाबिल = सामने, ज़रीफ़ = चुटकुलेबाज़
परिचय:
१० अप्रेल १९१० को पाकिस्तान के गुजरावाला में जन्मे अब्दुल हमीद का उपनाम 'अदम' था. वे फौज के लेखा विभाग में अफसर थे. उन्होंने शायरी का आगाज़ १८-१९ बरस की उम्र में ही कर दिया था. शुरू में नज्में लिखी लेकिन बाद में तमाम उम्र गज़लें ही लिखते रहे. उनका पहला संग्रह 'नक़्शे दवाम' के नाम से प्रकाशित हुआ था. इसके बाद ४८ संग्रह प्रकाशित हुए है, जिनमे ३० हज़ार से ज्यादा शेर है. ये शेर नजीर अकबराबादी, मीर तकी मीर से ज्यादा हैं.
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