मीर तकी मीर
पत्ता-पत्ता, बूटा -बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने, बाग तो सारा जाने है
आशिक सा तो सदा कोई और न होगा दुनिया में
जी के जिया को इश्क में उसके अपना वारा जाने है
चारागरी बीमारी ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं
वरना दिलबर-ए-नादाँ भी इस दर्द का चारा जाने है
मेहर-ओ-वफ़ा-ओ-लुत्फ़-ओ -इनायत एक से वाकिफ इन में नहीं
और तो सब कुछ तंज़-ओ-किनाया रम्जो-इशारा जाने है
आशिक तो मुर्दा है हमेशा जी उठता है देखे उसे
यार के आ जाने को यकायक उम्र दो बारा जाने है
तशना-ए -खून है अपना कितना 'मीर' भी नादाँ तल्खीकश
दमदार आबे-तेग को उसके आबे-गवारा जाने है
मायने:
जियां=घातक, चारा=विकल्प, मेहरो-वफ़ा=कृपा-प्रेम, किनाया=संकेत, तशना=प्यास, तल्खी=कडवाहट, आबे तेग=तलवार की चमक
परिचय:
मोहम्मद मीर उर्फ़ मीर तकी मीर (1723 -1810) उर्दू और फारसी भाषा के महानतम शायरों में से थे. मीर का जन्म आगरा में हुआ था. प्यार और करुणा के महत्व के प्रति नज़रिए का मीर के जीवन पर गहरा प्रभाव पडा. इसकी झलक उनके शेरों में भी देखने को मिलती है.
Meer Taqi Meer
Patta-patta, buta-buta hal hamara jane hai
jane na jane gul hi na jane, bag to sara jane hai
Ashiq sa to sada koi aur na hoga duniya mein
ji ke jiya ko ishq mein uske apna wara jane hai
Charagari bimari-e-dil ki rasm-e-shahar-e-husn nahin
warna dilbar-e-nadan bhi is dard ka chara jane hai
Mehar-o-wafa-o-lutf-o-inayat ek se waqif in mein nahin
aur to sab kuch tanz-o-kinaya ramz-o-ishara jane hai
Ashiq to murda hai hamesha ji uthta hai dekhe use
yaar ke a jane ko yakayak umr do bara jane hai
tashna-e-khun hai apna kitanaa'Mir' bhi nadan talkheekash
damdar aab-e-teg ko uske aab-e-gawara jane hai
पत्ता-पत्ता, बूटा -बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने, बाग तो सारा जाने है
आशिक सा तो सदा कोई और न होगा दुनिया में
जी के जिया को इश्क में उसके अपना वारा जाने है
चारागरी बीमारी ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं
वरना दिलबर-ए-नादाँ भी इस दर्द का चारा जाने है
मेहर-ओ-वफ़ा-ओ-लुत्फ़-ओ -इनायत एक से वाकिफ इन में नहीं
और तो सब कुछ तंज़-ओ-किनाया रम्जो-इशारा जाने है
आशिक तो मुर्दा है हमेशा जी उठता है देखे उसे
यार के आ जाने को यकायक उम्र दो बारा जाने है
तशना-ए -खून है अपना कितना 'मीर' भी नादाँ तल्खीकश
दमदार आबे-तेग को उसके आबे-गवारा जाने है
मायने:
जियां=घातक, चारा=विकल्प, मेहरो-वफ़ा=कृपा-प्रेम, किनाया=संकेत, तशना=प्यास, तल्खी=कडवाहट, आबे तेग=तलवार की चमक
परिचय:
मोहम्मद मीर उर्फ़ मीर तकी मीर (1723 -1810) उर्दू और फारसी भाषा के महानतम शायरों में से थे. मीर का जन्म आगरा में हुआ था. प्यार और करुणा के महत्व के प्रति नज़रिए का मीर के जीवन पर गहरा प्रभाव पडा. इसकी झलक उनके शेरों में भी देखने को मिलती है.
Meer Taqi Meer
Patta-patta, buta-buta hal hamara jane hai
jane na jane gul hi na jane, bag to sara jane hai
Ashiq sa to sada koi aur na hoga duniya mein
ji ke jiya ko ishq mein uske apna wara jane hai
Charagari bimari-e-dil ki rasm-e-shahar-e-husn nahin
warna dilbar-e-nadan bhi is dard ka chara jane hai
Mehar-o-wafa-o-lutf-o-inayat ek se waqif in mein nahin
aur to sab kuch tanz-o-kinaya ramz-o-ishara jane hai
Ashiq to murda hai hamesha ji uthta hai dekhe use
yaar ke a jane ko yakayak umr do bara jane hai
tashna-e-khun hai apna kitanaa'Mir' bhi nadan talkheekash
damdar aab-e-teg ko uske aab-e-gawara jane hai
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