Momin Khan Momin : Urdu Poetry
Karataa hai qatleaam vo agyaar ke liye
Das-bees roz marate hai do char ke liye
Dekha ajaabe-ranz, dile-jaar ke liye
Ashiq huye hai vo mere aajaar ke liye
Le tuu hi bhez de koyi paigame-talakh ab
Tazvij zahar hai tere beemar ke liye
aata nahin hai tuu to nishani hi bhej de
Taskine-izaatirabe-dile-zaar ke liye
Deta hun apane lab ko bhi gulrang ki misaal
bose jo khwab mein tere rukhsaar ke liye
Jeena ummide-vasal pe hizran mein sahal tha
marataa hun zindgaani-e-dushwar ke liye
मोमिन खां मोमिन
करता है कत्लेआम वो अगयार के लिए
दस-बीस रोज़ मरते है दो चार के लिए
देखा अजाबे-रंज, दिले-जार के लिए
आशिक हुए है वो मेरे आजार के लिए
ले तू ही भेज दे कोई पैगामे-तलख अब
तजवीज ज़हर है तेरे बीमार के लिए
आता नहीं है तू तो निशानी ही भेज दे
तसकीने-इजातिराबे-दिले-जार के लिए
देता हूँ अपने लब को भी गुलरंग की मिसाल
बोसे जो ख्वाब में तेरे रुख्सार के लिए
जीना उम्मीदे-वसल पे हिजरां में सहल था
मरता हूँ जिंदगानी-ए-दुश्वार के लिए
मायने:
अगयार=पराये, अज़ाबे-रंज=दुःख का श्राप, दिले-जार=परेशान दिल, आजार=दुःख, तस्कीन=राहत, इज़तिराब=बेचैनी, रुख्सार=गाल, वस्ल=मिलन, हिज़रा=बिछड़ना
परिचय: हाकिम मोमिन खां 'मोमिन' मिर्ज़ा ग़ालिब व जौक के समकालीन थे.मोमिन का दिल्ली में 1800 में जन्म हुआ था. वह कुशाग्र बुद्धि के थे और उनकी स्मरण शक्ति भी विलक्षण थी. मोमिन को कपूरथला के राजा ने साढ़े तीन सौ माहवार की पेशकश कर अपने दरबार में आमंत्रित किया. मोमिन ने मंजूर कर लिया, तो सफ़र के लिए हज़ार रुपये भी भिजवाए, लेकिन मोमिन को मालूम हुआ कि वहां एक गवैये को भी यही तनख्वाह है तो वहां जाना नामंज़ूर कर दिया.
वह ज़माना शब्द व शब्द के शिल्पी को समझने वाला था. लेकिन बाद में मेहंदी हसन साब ने उनकी गज़लें गा - गा कर उन्हें वो प्रसिद्धि दिलाई कि उनको इतनी इज्ज़त जीते जी नहीं मिली.
Karataa hai qatleaam vo agyaar ke liye
Das-bees roz marate hai do char ke liye
Dekha ajaabe-ranz, dile-jaar ke liye
Ashiq huye hai vo mere aajaar ke liye
Le tuu hi bhez de koyi paigame-talakh ab
Tazvij zahar hai tere beemar ke liye
aata nahin hai tuu to nishani hi bhej de
Taskine-izaatirabe-dile-zaar ke liye
Deta hun apane lab ko bhi gulrang ki misaal
bose jo khwab mein tere rukhsaar ke liye
Jeena ummide-vasal pe hizran mein sahal tha
marataa hun zindgaani-e-dushwar ke liye
मोमिन खां मोमिन
करता है कत्लेआम वो अगयार के लिए
दस-बीस रोज़ मरते है दो चार के लिए
देखा अजाबे-रंज, दिले-जार के लिए
आशिक हुए है वो मेरे आजार के लिए
ले तू ही भेज दे कोई पैगामे-तलख अब
तजवीज ज़हर है तेरे बीमार के लिए
आता नहीं है तू तो निशानी ही भेज दे
तसकीने-इजातिराबे-दिले-जार के लिए
देता हूँ अपने लब को भी गुलरंग की मिसाल
बोसे जो ख्वाब में तेरे रुख्सार के लिए
जीना उम्मीदे-वसल पे हिजरां में सहल था
मरता हूँ जिंदगानी-ए-दुश्वार के लिए
मायने:
अगयार=पराये, अज़ाबे-रंज=दुःख का श्राप, दिले-जार=परेशान दिल, आजार=दुःख, तस्कीन=राहत, इज़तिराब=बेचैनी, रुख्सार=गाल, वस्ल=मिलन, हिज़रा=बिछड़ना
परिचय: हाकिम मोमिन खां 'मोमिन' मिर्ज़ा ग़ालिब व जौक के समकालीन थे.मोमिन का दिल्ली में 1800 में जन्म हुआ था. वह कुशाग्र बुद्धि के थे और उनकी स्मरण शक्ति भी विलक्षण थी. मोमिन को कपूरथला के राजा ने साढ़े तीन सौ माहवार की पेशकश कर अपने दरबार में आमंत्रित किया. मोमिन ने मंजूर कर लिया, तो सफ़र के लिए हज़ार रुपये भी भिजवाए, लेकिन मोमिन को मालूम हुआ कि वहां एक गवैये को भी यही तनख्वाह है तो वहां जाना नामंज़ूर कर दिया.
वह ज़माना शब्द व शब्द के शिल्पी को समझने वाला था. लेकिन बाद में मेहंदी हसन साब ने उनकी गज़लें गा - गा कर उन्हें वो प्रसिद्धि दिलाई कि उनको इतनी इज्ज़त जीते जी नहीं मिली.
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